नई दिल्ली/भोपाल। लोकतंत्र में जनता के पैसे से होने वाले खर्च की जानकारी जनता तक पहुँचना एक स्वाभाविक और संवैधानिक अधिकार माना जाता है। लेकिन जब देश के प्रधानमंत्री आवास, 7 लोक कल्याण मार्ग, नई दिल्ली से जुड़ी व्यय संबंधी जानकारी को ‘सुरक्षा कारणों’ का हवाला देकर छिपाया जाता है, तो सवाल उठना स्वाभाविक है।
ऐसा ही एक मामला हाल ही में भोपाल के सामाजिक कार्यकर्ता और एमसीयू (माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय) के छात्र तनय शर्मा द्वारा उठाया गया है। तनय ने प्रधानमंत्री आवास पर हुए खर्चों के विवरण को सार्वजनिक कराने के लिए सूचना का अधिकार (RTI) कानून के तहत आवेदन दायर किया था, जिसे केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD) ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि यह जानकारी सुरक्षा कारणों से साझा नहीं की जा सकती।
तनय शर्मा ने जून 2025 में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग को भेजे गए आवेदन में वर्ष 2019 से 2025 के बीच प्रधानमंत्री आवास पर हुए मरम्मत, साज-सज्जा, नवीनीकरण और रखरखाव पर हुए खर्चों की वर्षवार जानकारी मांगी थी।
उन्होंने अपने आवेदन में स्पष्ट किया था कि उन्हें केवल लोक निधि (Public Fund) से संबंधित खर्चों का ब्यौरा चाहिए न कि भवन की सुरक्षा व्यवस्था, नक्शा या गोपनीय संरचना से जुड़ी कोई जानकारी। तनय के अनुसार, यह आवेदन पूरी तरह सार्वजनिक हित में था क्योंकि प्रधानमंत्री आवास भी जनता के पैसे से चलता है।
द मूकनायक से बातचीत करते हुए, तनय शर्मा ने कहा, "मैंने कोई गोपनीय सूचना नहीं मांगी थी। केवल यह जानना चाहा कि 2019 से अब तक प्रधानमंत्री आवास पर जनता के धन से कितना खर्च हुआ है। यह सवाल किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं, बल्कि जनता के पैसे की पारदर्शिता पर है।"
विभाग ने ‘सुरक्षा कारणों’ का हवाला देकर किया इंकार
तनय के मुताबिक, RTI आवेदन को पहले कई बार अन्य विभागों में भेजा गया, एक तरह से टालमटोल की प्रक्रिया चली।
आखिरकार 16 जुलाई 2025 को CPWD की ओर से जवाब आया, जिसमें कहा गया, “प्रधानमंत्री आवास (7 लोक कल्याण मार्ग) से जुड़ी सूचनाएँ सुरक्षा कारणों से आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(j) के अंतर्गत साझा नहीं की जा सकतीं।”
यह धारा आम तौर पर किसी व्यक्ति की निजी या गोपनीय जानकारी से संबंधित होती है, जिसे सार्वजनिक करने से उसकी निजता या सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या लोक धन से हुए खर्चों का ब्यौरा निजी या गोपनीय श्रेणी में आता है?
आवेदक की आपत्ति- “यह जनहित और संविधान दोनों के खिलाफ है”
तनय शर्मा ने विभाग के इस उत्तर को जनहित-विरोधी और असंवैधानिक करार देते हुए 5 अगस्त 2025 को प्रथम अपील दायर की है।
उन्होंने अपनी अपील में लिखा- “लोकतंत्र में जनता का पैसा जनता के सामने ही जवाबदेह होना चाहिए। जब संसद भवन, राष्ट्रपति भवन और अन्य मंत्रालय अपने खर्चों का ब्यौरा वेबसाइटों पर जारी करते हैं, तो प्रधानमंत्री आवास पर हुए खर्चों को सुरक्षा कारणों के नाम पर छिपाना पारदर्शिता के खिलाफ है।”
उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह की जानकारी रोकना न केवल RTI की भावना का उल्लंघन है, बल्कि सूचना के अधिकार को कमजोर करने की कोशिश भी है।
तनय ने अपनी अपील में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) और सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख किया है, जिनमें यह कहा गया है कि, “जब कोई सूचना सार्वजनिक धन या सरकारी व्यय से जुड़ी हो, तो उसे गोपनीयता के नाम पर नहीं रोका जा सकता, जब तक कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित न हो।”
2010 में CIC ने प्रधानमंत्री राहत कोष से जुड़ी सूचनाओं को सार्वजनिक करने का आदेश दिया था, यह कहते हुए कि “पब्लिक मनी पर जनता का अधिकार सर्वोच्च है।”
इसी तरह, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “सरकारी खर्च में पारदर्शिता लोकतंत्र की आत्मा है।”
इन निर्णयों के आलोक में तनय शर्मा का कहना है कि विभाग का कदम न केवल कानून की भावना के विपरीत है, बल्कि यह अकाउंटेबिलिटी से बचने की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
तनय शर्मा की अपील पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। विभाग की ओर से कोई उत्तर नहीं मिलने पर उन्होंने कहा है कि यदि उनकी अपील पर सुनवाई नहीं होती, तो वे इस मामले को केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) या दिल्ली उच्च न्यायालय तक लेकर जाएंगे।
तनय ने आगे कहा, “जनता के टैक्स का पैसा कहां और कितना खर्च हुआ, यह बताना किसी भी लोकतंत्र में अनिवार्य होना चाहिए। जब जनता अपने प्रतिनिधियों को जवाबदेह बना सकती है, तो सरकार के खर्च को क्यों नहीं?”
संवैधानिक दृष्टिकोण - जनता का पैसा, जनता का अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में नागरिकों को अभिव्यक्ति और सूचना पाने का मौलिक अधिकार दिया गया है।
वहीं सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 का उद्देश्य है कि सरकार और जनता के बीच खुलेपन और जवाबदेही की संस्कृति स्थापित की जाए।
जब सरकारी संस्थान खर्चों की जानकारी रोकते हैं, तो यह न केवल RTI कानून की भावना का उल्लंघन है, बल्कि जनता के जानने के अधिकार को भी सीमित करता है।
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