MP के छिंदवाड़ा में मिलावटी सिरप से 11 मासूमों की मौत: डॉक्टर और कंपनी पर एफआईआर, विपक्ष ने की न्यायिक जांच की मांग

घटना के बाद नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सरकार पर तीखा हमला बोला और न्यायिक जांच की मांग की है।
MP के छिंदवाड़ा में मिलावटी सिरप से 11 मासूमों की मौत
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भोपाल। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में मासूम बच्चों की मौत का मामला अब बड़ा रूप ले चुका है। कफ सिरप पीने से हुई 11 बच्चों की मौत ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया है। आखिरकार प्रशासन ने सख्त कार्रवाई करते हुए शनिवार रात डॉक्टर प्रवीण सोनी और तमिलनाडु की श्रेसन फार्मास्युटिकल कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है। इसके बाद एसपी की स्पेशल टीम ने छिंदवाड़ा के राजपाल चौक से डॉ. सोनी को गिरफ्तार भी कर लिया।

यह कार्रवाई स्वास्थ्य विभाग के बीएमओ डॉ. अंकित सल्लाम की शिकायत पर की गई। पुलिस ने डॉक्टर और कंपनी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1940 की गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया है। जिन धाराओं में मामला दर्ज हुआ है, उनमें 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है।

सरकारी रिपोर्ट में पुष्टि: 46.2% जहरीला केमिकल पाया गया

शनिवार देर रात मध्यप्रदेश सरकार की जांच रिपोर्ट भी सामने आ गई। इसमें कोल्ड्रिफ (Coldrif) नामक कफ सिरप में 46.2 प्रतिशत डायएथिलिन ग्लायकॉल (DEG) पाया गया - जो बेहद जहरीला रसायन है। यह वही सिरप था, जो बच्चों को बुखार और खांसी में इलाज के दौरान दिया गया था। वहीं, दो अन्य सिरप नेक्स्ट्रो-डीएस (Nextro-DS) और मेफटॉल पी की रिपोर्ट ‘ओके’ आई है।

तमिलनाडु स्थित लैब की जांच में भी कोल्ड्रिफ सिरप में 48.6% DEG की पुष्टि हुई थी। विशेषज्ञों के अनुसार, गाइडलाइन के मुताबिक किसी भी सिरप में 0.1 प्रतिशत से ज्यादा DEG नहीं होना चाहिए। लेकिन जांच में यह मात्रा लगभग 500 गुना अधिक पाई गई- जो किडनी फेल्योर और ऑर्गन डैमेज का कारण बनती है।

कैसे हुआ खुलासा?

परासिया क्षेत्र में बीते सप्ताह बच्चों में अचानक उल्टियां, पेशाब बंद होना और बेहोशी के लक्षण दिखाई देने लगे। सभी बच्चे एक ही अस्पताल में इलाज करा रहे थे, जहां उन्हें समान ब्रांड की कफ सिरप दी गई थी। धीरे-धीरे 11 बच्चों की मौत हो गई।

स्वास्थ्य विभाग ने तुरंत दवाओं के नमूने एकत्रित कर जांच के लिए भेजे। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि इस्तेमाल की गई दवा मिलावटी (Adulterated) थी। यही से डॉक्टर और दवा कंपनी दोनों पर कार्रवाई का रास्ता खुला।

कौन-सी धाराओं में कार्रवाई?

बीएनएस की धारा 276: औषधियों में मिलावट, सजा एक वर्ष तक

बीएनएस की धारा 105(3): हत्या की श्रेणी में न आने वाला आपराधिक मानव वध, सजा 10 वर्ष तक

ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट, 1940 की धारा 27(ए)(iii): एडलट्रेटेड ड्रग से किसी की मृत्यु होने पर, सजा 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास

स्वास्थ्य विभाग की सख्ती और जांच के आदेश

बीएमओ डॉ. अंकित सल्लाम ने कहा कि यह घटना बेहद गंभीर है और पूरे मामले की वैज्ञानिक व चिकित्सकीय जांच जारी है। उन्होंने कहा, “यदि किसी अन्य अधिकारी या चिकित्सक की लापरवाही सामने आती है, तो उसके खिलाफ भी कठोर कार्रवाई की जाएगी।”

जिला प्रशासन ने सभी सरकारी और निजी अस्पतालों को संदिग्ध सिरप का उपयोग तत्काल बंद करने के निर्देश दिए हैं। सभी जगह दवाओं के स्टॉक की जांच भी शुरू कर दी गई है।

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का हमला: “प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है”

घटना के बाद नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सरकार पर तीखा हमला बोला और न्यायिक जांच की मांग की है। भोपाल में उन्होंने कहा, “मध्यप्रदेश की यह घटना प्रदेश की भ्रष्ट, लापरवाह और चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था का परिणाम है। आज अस्पतालों में बच्चे भी सुरक्षित नहीं हैं। कहीं चूहे काट रहे हैं, कहीं डॉक्टर नहीं हैं, और जो दवाएं हैं, वे नकली निकल रही हैं।”

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार सरदार वल्लभभाई पटेल नि:शुल्क औषधि वितरण योजना के तहत दवाओं का वितरण करती है। इन दवाओं की खरीद और परीक्षण मध्यप्रदेश ड्रग कॉर्पोरेशन के माध्यम से होता है। बावजूद इसके, नकली या अमानक दवाओं की बिक्री रुक नहीं रही है।

पुराने रिकॉर्ड भी डराते हैं

सिंघार ने नवंबर 2024 की CAG रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि छिंदवाड़ा और ग्वालियर सहित कई जिलों में 11 करोड़ से अधिक की 263 दवाएं एक्सपायर हो गई थीं।

विधानसभा में प्रस्तुत रिपोर्टों के अनुसार, अप्रैल 2021 से जून 2025 के बीच सरकारी प्रयोगशालाओं में जांचे गए 229 दवा नमूनों में से 138 अमानक पाए गए।

कई कंपनियों के लाइसेंस रद्द हुए, लेकिन अधिकांश मामलों में कार्रवाई अब भी लंबित है। उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि प्रदेश की दवा गुणवत्ता निगरानी प्रणाली बेहद कमजोर है।

उमंग सिंघार ने कहा कि सरकार के रवैये पर भी गंभीर सवाल उठते हैं, प्रोटोकॉल के अनुसार, दवा सैंपल की रिपोर्ट 72 घंटे में आ जानी चाहिए थी, लेकिन छह दिन लग गए। इस देरी ने और मौतों को न्योता दिया। उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला ने जल्दबाजी में कहा कि “सिरप से मौतें नहीं हुईं,” जबकि जांच पूरी नहीं हुई थी। बाद में जब रिपोर्ट आई, तब जाकर सरकार बैकफुट पर आई।

सिंघार ने आरोप लगाया कि अगस्त 2025 में विधानसभा में 139 अमानक दवाओं की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, लेकिन उस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

जांच की मांग

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि यह घटना अकेली नहीं है। पिछले साल इंदौर के बड़े सरकारी अस्पताल में भी नकली लाइफ-सेविंग ड्रग्स मिली थीं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ स्टॉक सीज किया गया।

उन्होंने कहा, “इस घटना की न्यायिक जांच कराई जाए ताकि दोषियों की जिम्मेदारी तय हो सके और यह सुनिश्चित हो कि भविष्य में ऐसी त्रासदी दोबारा न हो।”

मुख्य मांगें

मृत बच्चों के परिवारों को उचित मुआवजा दिया जाए।

प्रभावित बच्चों को नि:शुल्क और समुचित इलाज मिले।

दोषी डॉक्टरों और दवा कंपनियों पर आपराधिक मुकदमे चलाए जाएं।

राज्य के सभी अस्पतालों में उपलब्ध दवाओं की व्यापक जांच हो।

ड्रग कंट्रोल लैब्स को सशक्त और जवाबदेह बनाया जाए।

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