भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के सूखी सेवनिया इलाके में स्थित अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय को एक समय पर हिंदी भाषा के संवर्धन और उच्च शिक्षा के राष्ट्रीय मॉडल के रूप में देखा गया था। वर्ष 2011 में इस विश्वविद्यालय की स्थापना इस उद्देश्य से हुई थी कि हिंदी भाषा को शिक्षा, अनुसंधान और रोजगार का माध्यम बनाया जा सके। लेकिन, स्थापना के 14 साल बाद आज यह विश्वविद्यालय अपने ही उद्देश्य से भटकता हुआ दिख रहा है।
जहां एक ओर विश्वविद्यालय में करोड़ों रुपये की लागत से इमारतें खड़ी की जा चुकी हैं, लाखों रुपये शिक्षकों के वेतन पर खर्च किए जा रहे हैं, वहीं विद्यार्थियों की उपस्थिति नाममात्र की रह गई है। सत्र 2025-26 में एमए हिंदी जैसे प्रमुख पाठ्यक्रम में भी केवल चार विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया है। यही नहीं, कुल 1800 सीटों में से केवल 174 पर ही प्रवेश हुए हैं, जबकि बाकी सीटें खाली पड़ी हैं।
अक्टूबर 2020 में विश्वविद्यालय को नए भवन में स्थानांतरित किया गया था, जिसकी लागत करीब पांच करोड़ रुपये बताई गई थी। भवन का उद्घाटन बड़े समारोह में हुआ था और दावा किया गया था कि अब यह संस्थान देशभर के विद्यार्थियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगा।
लेकिन आज हकीकत यह है कि नए भवन की कक्षाओं में सन्नाटा पसरा है। अधिकांश विभागों में क्लासेस तो शुरू ही नहीं हो पा रहीं क्योंकि विद्यार्थी ही नहीं हैं।
विश्वविद्यालय के आंकड़े बताते हैं कि इस साल कुल 1800 सीटों पर सिर्फ 174 विद्यार्थियों ने दाखिला लिया। यह संख्या विश्वविद्यालय की क्षमता का मात्र 9.6 प्रतिशत है।
2023 में विश्वविद्यालय में 13 नियमित शिक्षकों की भर्ती की गई थी, जिनका वेतन औसतन एक लाख रुपये प्रतिमाह है। इसके अलावा 22 अतिथि विद्वान भी पदस्थ हैं, जिन्हें 33 हजार रुपये मासिक मानदेय दिया जा रहा है। यानी सिर्फ शिक्षकों के वेतन पर ही हर महीने लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। फिर भी अधिकांश विभागों में पढ़ाई ठप है, क्योंकि कई विषयों में एक भी विद्यार्थी नहीं है।
विश्वविद्यालय के 27 स्नातकोत्तर (पीजी) पाठ्यक्रमों में कुल 63 विद्यार्थी और 11 स्नातक (यूजी) पाठ्यक्रमों में 99 विद्यार्थी हैं। वहीं, 13 सर्टिफिकेट और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों में सिर्फ 12 विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया है।
जिन पाठ्यक्रमों में शून्य प्रवेश हुआ:
एमए (अर्थशास्त्र)
एमए (इतिहास)
एमए (भूगोल)
एमएससी (गणित)
एमएससी (पर्यावरण)
एमएफएससी
एमकाम
एमबीए
एमए (गाइडेंस एंड काउंसलिंग)
यूजी स्तर पर:
बीए योग
बीएससी (आधारभूत विज्ञान)
डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्सों में:
पंचकर्म
योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा
मत्स्य एवं मात्स्यिकी
नाट्यशास्त्र एवं रंगमंच
लोकसंगीत
डीसीए
पीजीडीसीए
इन सभी पाठ्यक्रमों में एक भी विद्यार्थी नहीं मिला है। इतना ही नहीं, 11 पाठ्यक्रम ऐसे हैं जिनमें केवल एक-एक विद्यार्थी ने प्रवेश लिया है।
विश्वविद्यालय का नाम हिंदी विश्वविद्यालय है, लेकिन हिंदी विषय में ही विद्यार्थी नहीं मिल रहे। इस साल एमए हिंदी में सिर्फ चार विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया है। यह आंकड़ा हिंदी के प्रचार-प्रसार के सरकारी दावों को कठघरे में खड़ा करता है।
विश्वविद्यालय के कुलगुरु (कुलपति) देव आनंद हिंडोलिया का कहना है कि स्थिति को सुधारने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा- “राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत हम आने वाले सत्र से नए रोजगारोन्मुखी कोर्स शुरू करने जा रहे हैं। विशेष रूप से इंजीनियरिंग को हिंदी माध्यम में शुरू करने की योजना है। इसके अलावा अधूरे छात्रावास और बस सुविधा को पूरा करने के लिए शासन को पत्र लिखकर अतिरिक्त बजट मांगा गया है। हमें उम्मीद है कि इससे विद्यार्थियों की संख्या बढ़ेगी।”
विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले कुछ विद्यार्थियों का कहना है कि यहां बुनियादी सुविधाएं तो हैं, लेकिन करियर गाइडेंस और रोजगार की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की जाती।
एमए हिंदी की एक छात्रा ने कहा, “हिंदी में पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन यहां क्लासेस नियमित नहीं होतीं। सेमिनार, वर्कशॉप और करियर काउंसलिंग का अभाव है। ऐसे में विद्यार्थी खुद ही आगे बढ़ने का रास्ता ढूंढते हैं।”
विश्वविद्यालय प्रशासन ने बताया कि प्रवेश प्रक्रिया में देशभर के विद्यार्थियों को शामिल करने के लिए ऑनलाइन आवेदन व्यवस्था की गई थी, लेकिन परिणाम निराशाजनक रहे।
उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, और छत्तीसगढ़ जैसे हिंदीभाषी राज्यों से भी विद्यार्थी नहीं आए।
इससे यह सवाल उठता है कि क्या विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा घट रही है, या फिर विद्यार्थियों में हिंदी माध्यम की उच्च शिक्षा के प्रति विश्वास कम हो रहा है?
विश्वविद्यालय परिसर में दो नए छात्रावास बनाए गए हैं और बस सुविधा भी शुरू की गई है। लेकिन वर्तमान में छात्रों की संख्या इतनी कम है कि ये सुविधाएं लगभग अनुपयोगी साबित हो रही हैं। विश्वविद्यालय सूत्रों के अनुसार, छात्रावास में मुश्किल से दर्जनभर विद्यार्थी रह रहे हैं, जबकि क्षमता सौ से अधिक की है।
राज्य सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में विश्वविद्यालय को बुनियादी ढांचे के विकास के लिए करोड़ों रुपये आवंटित किए हैं। फर्नीचर, स्मार्ट क्लासरूम, प्रयोगशालाएं, परिवहन और आवासीय सुविधाओं पर लगातार खर्च हो रहा है। फिर भी विद्यार्थी नहीं आने का अर्थ है कि यह निवेश अपनी मूल भावना पूरी नहीं कर रहा।
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