भोपाल। मध्यप्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर में पुजारी-पुरोहित और कर्मचारियों की नियुक्तियों पर सवाल खड़े हो गए हैं। उज्जैन निवासी सारिका गुरु द्वारा इंदौर हाईकोर्ट में लगाई गई याचिका में दावा किया गया है कि मंदिर समिति ने 300 से अधिक कर्मचारियों और 40 से ज्यादा मंदिरों में कार्यरत पुजारी की नियुक्तियां गैरकानूनी और अपारदर्शी तरीके से की हैं।
सारिका गुरु का कहना है कि मंदिर समिति ने न तो अखबारों में विज्ञप्ति प्रकाशित की और न ही चयन के लिए कोई टेस्ट या इंटरव्यू आयोजित किया। सीधे-सीधे अपने मनपसंद लोगों को नौकरी दे दी गई।
इस मामले पर 1 सितंबर 2025 को हुई सुनवाई में इंदौर हाईकोर्ट ने उज्जैन कलेक्टर से तीन माह के भीतर जवाब मांगा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नियुक्तियों की प्रक्रिया और उसकी वैधता को साबित करने वाले दस्तावेज पेश करने होंगे।
कानूनी जानकारों का कहना है कि यदि मंदिर समिति नियुक्तियों में पारदर्शिता साबित नहीं कर पाती है तो बड़ी संख्या में नियुक्तियां रद्द हो सकती हैं।
सारिका गुरु ने 2023 में मंदिर समिति से सूचना का अधिकार (RTI) के तहत यह जानकारी मांगी थी कि, पुजारी-पुजारी और कर्मचारियों की नियुक्ति किस आधार पर की गई? क्या किसी समाचार पत्र में विज्ञापन प्रकाशित हुआ? चयन हेतु क्या कोई परीक्षा या साक्षात्कार आयोजित किए गए? नियुक्तियों के लिए किन मापदंडों का पालन किया गया? लेकिन मंदिर समिति ने यह कहते हुए जानकारी देने से मना कर दिया कि दस्तावेज "गोपनीय" हैं।
इसके बाद उन्होंने राज्य सूचना आयोग में अपील दायर की। 30 अक्टूबर 2023 को आयोग ने जवाब दिया, लेकिन नियुक्तियों से जुड़े दस्तावेज फिर भी उपलब्ध नहीं कराए गए। आखिरकार सारिका गुरु ने 12 नवंबर 2023 को इंदौर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
याचिकाकर्ता ने यह भी गंभीर आरोप लगाया है कि महाकाल परिसर के 19 मंदिरों में एक ही पुजारी नियुक्त है। उनका कहना है कि जब शासन का नियम है कि कोई व्यक्ति एक समय में केवल एक मंदिर में पूजा-पाठ कर सकता है, तो 19 मंदिरों की जिम्मेदारी एक ही व्यक्ति को कैसे दी जा सकती है? यह न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही है, बल्कि श्रद्धालुओं की भावनाओं से भी खिलवाड़ है।
सारिका गुरु ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि मंदिर परिसर में एक व्यक्ति भरत जोशी ने अधिकारियों से सांठगांठ कर 19 मंदिरों पर कब्जा कर लिया है और उन्हें ठेके पर सौंप दिया है। इससे सरकारी नियमों और धार्मिक परंपराओं का उल्लंघन हो रहा है।
याचिकाकर्ता के अनुसार महाकाल मंदिर समिति में नियुक्त पुजारी और पुरोहितों की सूची को देखने से स्पष्ट होता है कि अधिकांश नियुक्तियां रिश्तेदारी और भाई-भतीजावाद के आधार पर की गई हैं।
उदाहरण के लिए, गौरव शर्मा के प्रतिनिधि उनके चाचा और चचेरे भाई हैं। दिलीप शर्मा की ओर से उनके भतीजे और रिश्तेदार प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। विजय शर्मा के प्रतिनिधि उनके पुत्र हैं। कैलाश नारायण शर्मा के प्रतिनिधि उनके बेटे और भतीजे हैं। यानी नियुक्तियों में खुलापन और निष्पक्षता के बजाय एक ही परिवार या वंश विशेष का वर्चस्व दिख रहा है।
महाकालेश्वर मंदिर हिंदू धर्म के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। महाकाल की भस्म आरती विश्व प्रसिद्ध है। ऐसे में मंदिर की व्यवस्था और नियुक्तियां केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक महत्व भी रखती हैं।
मंदिर समिति का गठन इसीलिए किया गया था कि यहाँ पारदर्शी तरीके से संचालन हो सके। लेकिन यदि आरोप सही साबित होते हैं तो समिति की साख और विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल खड़ा होगा।
द मूकनायक से बातचीत में सारिका गुरु ने कहा, कि विश्व प्रसिद्ध महाकाल मंदिर में अब तक हुई सभी नियुक्तियों की निष्पक्ष जांच कराई जानी चाहिए। यदि जांच में यह साबित होता है कि नियुक्तियां नियमों के विरुद्ध और अवैध तरीके से की गई हैं, तो उन्हें तत्काल रद्द किया जाए।
उन्होंने मांग की कि भविष्य में मंदिर में होने वाली हर नियुक्ति पूरी तरह से पारदर्शी प्रक्रिया के तहत की जाए, ताकि किसी भी तरह की पक्षपात या अनियमितता की गुंजाइश न रहे। इसके लिए उन्होंने स्पष्ट किया कि नियुक्तियों की प्रक्रिया में सार्वजनिक विज्ञप्ति जारी हो, लिखित परीक्षा आयोजित की जाए और साक्षात्कार भी अनिवार्य रूप से लिया जाए। उनके अनुसार, केवल इसी तरीके से योग्य और पात्र उम्मीदवारों को अवसर मिल सकेगा और मंदिर प्रशासन पर उठ रहे सवाल भी समाप्त होंगे।
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