MP: खरगोन में फॉस्फोराइट माइनिंग विवाद : हाईकोर्ट में याचिका, हजारों पेड़ कटने और नर्मदा प्रवाह पर संकट की आशंका!

फॉस्फोराइट एक फॉस्फेट युक्त तलछटी चट्टान है। इसका मुख्य उपयोग उर्वरक उत्पादन में किया जाता है, जिससे कृषि उपज में वृद्धि होती है। इसके अलावा यह पशु आहार पूरक, औद्योगिक रसायनों, खाद्य परिरक्षकों और दवाइयों के निर्माण में भी काम आता है।
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भोपाल। मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के बड़वाह तहसील के मोदरी गांव में केंद्र सरकार ने करीब 700 हेक्टेयर जमीन को फॉस्फोराइट खनन के लिए चिन्हित किया है, जिनमें से 133 हेक्टेयर भूमि पर सीधे खनन कार्य प्रस्तावित है। इस निर्णय के खिलाफ स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं और धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं ने इंदौर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका पर मंगलवार को सुनवाई होगी।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि मोदरी क्षेत्र में फॉस्फोराइट की उपलब्धता अत्यंत सीमित है। यहां मात्र 0.04 प्रतिशत से 0.53 प्रतिशत तक खनिज मिलने की संभावना जताई गई है। जबकि झाबुआ, आलीराजपुर और मेघनगर क्षेत्र में यह खनिज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। यह तथ्य टेंडर दस्तावेजों में ही दर्ज है। ऐसे में मोदरी जैसे सघन वन क्षेत्र में खनन की आवश्यकता नहीं है।

याचिका दायर करने वालों में इंदौर के पर्यावरण संरक्षक अजय रघुवंशी, महू की दुर्गाशक्ति पीठ के पंडित शरद कुमार मिश्र, राधाकांताचार्य महाराज, महंत सुखदेवानंद और विवेक दुबे शामिल हैं।

जंगल और नर्मदा पर संकट की आशंका

याचिकाकर्ताओं ने अदालत में कहा कि यदि यहां खनन होता है तो हजारों पेड़ों की बलि चढ़ेगी। इससे जंगल का पारिस्थितिकी तंत्र टूटेगा और वन्य जीवों का जीवन संकट में आ जाएगा। ऐसे में जंगली जानवर भोजन और आश्रय की तलाश में गांव-शहरों की ओर पलायन करेंगे।

इसके अलावा, यहां की सघन हरियाली और प्राकृतिक जलस्रोत सीधे तौर पर नर्मदा नदी के प्रवाह को सहारा देते हैं। खनन कार्य से यह प्रवाह प्रभावित होगा और जैव संतुलन बिगड़ने के साथ प्राकृतिक आपदाओं, जैसे भूस्खलन, बाढ़ या अतिवृष्टि की आशंका भी बढ़ जाएगी। याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि न केवल अभी माइनिंग रोकी जाए बल्कि भविष्य में भी यहां खनन पर स्थायी रोक का आदेश दिया जाए।

जैव विविधता से समृद्ध क्षेत्र

मोदरी गांव और आसपास का जंगल विभिन्न वन्य प्रजातियों का प्राकृतिक घर है। यहां कई तरह के सर्प पाए जाते हैं, जिनमें, भारतीय कोबरा, दबौया, गोनस, अफई, करैत, धामन, जलधारी, मोरपंखी, दोमुंहा सांप, लाल दोमुंही सांप, कुकरी सांप, अजगर और धुल नागिन जैसी प्रजातियां प्रमुख हैं।

इसके अलावा, यहां इंडियन पैराडाइस फ्लायकेचर सहित कई दुर्लभ पक्षी और लगभग 35 प्रकार की तितलियां पाई जाती हैं।

वनस्पतियां और पेड़ों की विविधता

मोदरी क्षेत्र में बड़ी संख्या में स्थानीय और धार्मिक महत्व रखने वाले वृक्ष मौजूद हैं। इनमें बिल्व पत्र, सफेद पलाश, खेर, सागवान, बरगद, पीपल, नीम, खाखरा और पारिजात प्रमुख हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि खनन कार्य के लिए इन पेड़ों का कटना न केवल पर्यावरण बल्कि स्थानीय संस्कृति और परंपरा के लिए भी नुकसानदेह होगा।

फॉस्फोराइट का महत्व

फॉस्फोराइट एक फॉस्फेट युक्त तलछटी चट्टान है। इसका मुख्य उपयोग उर्वरक उत्पादन में किया जाता है, जिससे कृषि उपज में वृद्धि होती है। इसके अलावा यह पशु आहार पूरक, औद्योगिक रसायनों, खाद्य परिरक्षकों और दवाइयों के निर्माण में भी काम आता है। इस कारण से यह खनिज विभिन्न उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

मोदरी गांव में प्रस्तावित खनन को लेकर एक ओर जहां सरकार इसे उद्योग और कृषि के लिए आवश्यक खनिज की आपूर्ति से जोड़ रही है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण संरक्षक और सामाजिक संगठन इसे नर्मदा और जंगलों की सुरक्षा का प्रश्न मान रहे हैं।

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