भोपाल। मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर एक बार फिर संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक सौहार्द से जुड़े विवाद के केंद्र में आ गया है। यह विवाद इस बार किसी राजनीतिक दल या सामाजिक संगठन से नहीं, बल्कि न्यायालय से जुड़े एक वरिष्ठ अधिवक्ता से जुड़ा है। ग्वालियर बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और लंबे समय से अधिवक्ता संघ के सक्रिय सदस्य अनिल मिश्रा के खिलाफ क्राइम ब्रांच ने एफआईआर दर्ज की है, जिसमें उन पर डॉ. भीमराव आंबेडकर के खिलाफ विवादित टिप्पणी करने का आरोप है।
यह मामला उस वक्त चर्चा में आया जब सोशल मीडिया पर डॉ. आंबेडकर से जुड़ी एक आपत्तिजनक वीडियो क्लिप और फोटो वायरल हुई। आरोप है कि यह पोस्ट स्वयं अधिवक्ता अनिल मिश्रा द्वारा एक व्हाट्सएप ग्रुप में साझा की गई थी। मिश्रा, जो इससे पहले भी आंबेडकर प्रतिमा स्थापना के मुद्दे पर विवादों में रह चुके हैं, अब एक बार फिर विवादों में हैं।
मामले की शुरुआत 5 अक्टूबर की सुबह हुई, जब ग्वालियर क्राइम ब्रांच की सोशल मीडिया मॉनिटरिंग टीम को एक व्हाट्सएप ग्रुप में आपत्तिजनक वीडियो दिखा।
इस वीडियो में डॉ. भीमराव आंबेडकर के संबंध में विवादित और अपमानजनक टिप्पणी दिखाई दी, जिसके साथ एक छेड़छाड़ किया गया फोटो भी साझा किया गया था।
क्राइम ब्रांच ने तत्काल मामले की जांच शुरू की और पाया कि उक्त कंटेंट अनिल मिश्रा के मोबाइल नंबर से अपलोड हुआ था। इसके बाद तकनीकी साक्ष्यों की पुष्टि कर पुलिस ने मामला दर्ज किया। एफआईआर में उल्लेख है कि यह कार्रवाई जिला कलेक्टर एवं दंडाधिकारी द्वारा 2023 में जारी आदेश के उल्लंघन के तहत की गई।
ग्वालियर कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी द्वारा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 के तहत आदेश जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि- “जिले की सीमा में ऐसा कोई भी कार्य, सामग्री, पोस्टर, वीडियो या सोशल मीडिया गतिविधि नहीं की जाएगी, जिससे सामाजिक, धार्मिक या सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़े।”
इसके तहत किसी भी व्यक्ति को फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्विटर (एक्स) आदि प्लेटफॉर्म पर भड़काऊ या विभाजनकारी पोस्ट अपलोड या फॉरवर्ड करने की मनाही थी। इस आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए क्राइम ब्रांच और साइबर टीम को निगरानी की जिम्मेदारी दी गई थी। इसी निगरानी के दौरान अनिल मिश्रा का वीडियो सामने आया, जिसे प्रशासन ने कलेक्टर के आदेश का सीधा उल्लंघन” माना।
क्राइम ब्रांच ने मिश्रा पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 223, 353(2) और 196(1) के तहत मामला दर्ज किया है। धारा 223, किसी समुदाय या समूह की भावनाओं को ठेस पहुंचाने या उनके खिलाफ भड़काऊ बयान देना। 353(2) लोक शांति भंग करने या सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डालने वाली हरकतें। 196(1), दंडाधिकारी द्वारा जारी किसी आदेश या अधिसूचना का उल्लंघन करना। इन धाराओं के तहत दोष सिद्ध होने पर तीन साल तक की सजा और आर्थिक दंड दोनों का प्रावधान है।
ओबीसी महासभा के केंद्रीय सदस्य अधिवक्ता धर्मेंद्र कुशवाहा ने द मूकनायक से बातचीत में कहा, “संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर पर की गई अभद्र टिप्पणी न केवल एक महान व्यक्तित्व का अपमान है, बल्कि यह पूरे देश के संविधान, लोकतंत्र और समानता की भावना पर आघात है। बाबा साहब ने जिस समाज की कल्पना की थी, वह न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर आधारित थी, लेकिन आज भी कुछ लोग उनके विचारों और योगदान को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक शिक्षित समाज में भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो सोशल मीडिया जैसे माध्यमों का इस्तेमाल कर नफरत और विभाजन फैलाने का काम कर रहे हैं।
ऐसे लोगों की यह मानसिकता दर्शाती है कि वे न तो संविधान के मूल्यों को समझते हैं और न ही देश के सामाजिक ढांचे की गरिमा का सम्मान करते हैं। यह टिप्पणी केवल दलित समाज का नहीं, बल्कि हर संवैधानिक नागरिक का अपमान है, क्योंकि डॉ. आंबेडकर ने जो संविधान बनाया, उसने हर भारतीय को समान अधिकार दिए।
हम प्रशासन से मांग करते हैं कि ऐसे लोगों पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए ताकि यह एक उदाहरण बने कि कोई भी व्यक्ति संविधान निर्माता के खिलाफ अपमानजनक भाषा का प्रयोग करने का दुस्साहस न कर सके। समाज में शांति, सौहार्द और न्याय व्यवस्था को बनाए रखना प्रशासन की जिम्मेदारी है, और जब कोई व्यक्ति जानबूझकर सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई अनिवार्य हो जाती है।
उन्होंने कहा, "बाबा साहब आंबेडकर हमारे देश के आत्मसम्मान और विचार की पहचान हैं। उनके योगदान को नकारने या नीचा दिखाने की कोशिश देश की एकता और संवैधानिक मर्यादा पर सीधा प्रहार है। ओबीसी महासभा ऐसे बयानों की कड़ी निंदा करती है और यह स्पष्ट करती है कि हम डॉ. आंबेडकर के विचारों और उनके बनाए संविधान की रक्षा के लिए हर स्तर पर संघर्ष करेंगे।"
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