अदालतों में करोड़ों पेंडिंग मामलों पर कानून मंत्री का चौंकाने वाला खुलासा

केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया कि देश के सभी राज्‍यों में जिला और ट्रिब्‍यूनल के स्‍तर पर मिलाकर 4.46 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।
देश की अदालतों पेंडिंग मामलों की संख्या करोड़ों में है.
देश की अदालतों पेंडिंग मामलों की संख्या करोड़ों में है.ग्राफिक- द मूकनायक

नई दिल्‍ली: 1 दिसंबर 2023 तक देश में पांच करोड़ से भी अधिक मामले अदालतों में पेंडिंग हैं। यह जानकारी केंद्र सरकार की तरफ से लोकसभा में दी गई. एक सवाल के जवाब में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि कुल 5,08,85,856 लंबित मामलों में से 80 हजार सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग हैं। इसके अलावा 61 लाख से अधिक मामले देश की 25 हाई कोर्ट के स्तर पर पेंडिंग हैं। केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया कि देश के सभी राज्‍यों में जिला और ट्रिब्‍यूनल के स्‍तर पर मिलाकर 4.46 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।

किन अदालतों में कितने मामले लंबित!

शुक्रवार को लोकसभा में जानकारी देते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि देश की विभिन्न अदालतों में लंबित 5 करोड़ से अधिक मामलों में सभी 25 उच्च न्यायालयों में लंबित 61 लाख से अधिक मामले शामिल हैं। इनमें सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित कुल 80,000 मामले शामिल हैं। कानून मंत्री मेघवाल ने बताया है कि देश के जिला और अधीनस्थ अदालतों में 4.46 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।

न्यायालयों में कितने जज स्वीकृत?

कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने लोकसभा में बताया कि भारतीय न्यायपालिका में न्यायाधीशों की कुल स्वीकृत संख्या 26,568 है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 34 है, वहीं उच्च न्यायालयों में यह आंकड़ा 1,114 न्यायाधीशों का है। जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 25,420 है।

रिक्तियों के संबंध में जानकारी सामने आई

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कानून मंत्री ने कहा है कि उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा भेजे गए न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए 123 प्रस्ताव आए हैं जिनमें से 12 दिसंबर तक 81 प्रस्ताव सरकार के स्तर पर प्रक्रिया के विभिन्न चरण में हैं। वहीं, शेष 42 प्रस्ताव उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम के विचाराधीन हैं। कानून मंत्री ने आगे बताया कि 201 रिक्तियों के संबंध में उच्च न्यायालय के कॉलेजियम से सिफारिशें अभी नहीं मिली हैं।

पॉक्सो केसेस भी है पेंडिंग

केंद्र सरकार की तमाम नीतियों, प्रयासों और वित्तीय प्रतिबद्धताओं के बावजूद पॉक्सो के मामलों की सुनवाई के लिए बनाई गई विशेष त्वरित अदालतों में 31 जनवरी 2023 तक देश में 2,43,237 मामले लंबित थे। अगर लंबित मामलों की इस संख्या में एक भी नया मामला नहीं जोड़ा जाए तो भी इन सारे मामलों के निपटारे में कम से कम नौ साल का समय लगेगा। अरुणाचल प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में पॉक्सो के लंबित मामलों के निपटारे में 25 से ज्यादा साल तक का समय लग सकता है। साथ ही 2022 में पॉक्सो के सिर्फ तीन फीसदी मामलों में सजा सुनाई गई। ये चौंकाने वाले तथ्य इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (आईसीपीएफ) की ओर से जारी शोधपत्र 'जस्टिस अवेट्स : ऐन एनालिसिस ऑफ द एफिकेसी ऑफ जस्टिस डेलिवरी मैकेनिज्म्स इन केसेज ऑफ चाइल्ड सेकिसुअल एब्यूज' से उजागर हुए हैं। यौन शोषण के शिकार बच्चों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से 2019 में एक ऐतिहासिक कदम के जरिए फास्ट ट्रैक स्पेशल अदालतों के गठन और हर साल इसके लिए करोड़ों की राशि देने के बावजूद इस शोधपत्र के निष्कर्षों से देश के न्यायिक तंत्र की क्षमता और दक्षता पर सवालिया निशान उठ खड़े होते हैं।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा हालात में जनवरी, 2023 तक के पॉक्सो के लंबित मामलों के निपटारे में अरुणाचल प्रदेश को 30 साल लग जाएंगे, जबकि दिल्ली को 27, पश्चिम बंगाल को 25, मेघालय को 21, बिहार को 26 और उत्तर प्रदेश को 22 साल लगेंगे। फास्ट ट्रैक स्पेशल अदालतों जैसी विशेषीकृत अदालतों की स्थापना का प्राथमिक उद्देश्य यौन उत्पीड़न के मामलों और खास तौर से यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम से मुड़े मामलों का त्वरित गति से निपटारा करना था। इनका गठन 2019 में किया गया और भारत सरकार ने हाल ही में केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में इसे 2026 तक जारी रखने के लिए 1900 करोड़ रुपए की बजटीय राशि के आबंटन को मंजूरी दी है।

सालभर में सिर्फ 28 मामलों को निपटाया

इन फास्ट ट्रैक स्पेशल अदालतों के गठन के बाद माना गया कि वे इस तरह के मामलों का सालभर के भीतर निपटारा कर लेंगी, लेकिन इन अदालतों में आए कुल 2,68,038 मुकदमों में से महज 8,909 मुकदमों में ही अपराधियों को सजा सुनाई जा सकी है। अध्ययन से यह उजागर हुआ है कि प्रत्येक फास्ट ट्रैक स्पेशल अदालत ने सालभर में औसतन सिर्फ 28 मामलों का निपटारा किया। इसका अर्थ यह है कि एक मुकदमे के निपटारे पर नौ लाख रुपए का खर्च आया। शोधपत्र के अनुसार, प्रत्येक विशेष अदालत से हर तिमाही 41-42 और साल में कम से कम 165 मामलों के निपटारे की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन आंकड़ों से लगता है कि गठन के तीन साल बाद भी ये विशेष अदालतें अपने तय लक्ष्य को हासिल करने में विफल रही हैं।

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