द मूकनायक इन्वेस्टिगेशन: अडानी की खदान के लिए MP में कटेंगे 6 लाख पेड़? पढ़िए पर्यावरण के नाम पर जमीनों की हेराफेरी का पूरा सच

सिंगरौली के धिरोली कोल ब्लॉक में 'कागजी जंगल' का खेल: अडानी की कंपनी के लिए जिस जमीन पर होना था वृक्षारोपण, वहां पहले से खड़े हैं घने पेड़ और बस्तियां. पढ़िए द मूकनायक की ग्राउंड रिपोर्ट।
क्या मध्यप्रदेश में हो रहा जंगल घोटाला
क्या मध्यप्रदेश में हो रहा जंगल घोटाला The Mooknayak
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भोपाल। मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के धिरोली कोल ब्लॉक में कोयला खनन की आड़ में पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के नाम पर जमीनों की अदला-बदली का ऐसा खेल सामने आया है, जिसने प्रशासन और वन विभाग की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। द मूकनायक की पड़ताल में सामने आया है कि जिन जमीनों को जंगल बचाने के दावे के साथ प्रतिपूरक वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त बताया गया, वे ज़मीनें असल में हरित हैं। ज़मीनी और सैटेलाइट तस्वीरों में पथरीली, पहाड़ी और पहले से विकसित जंगल नजर आती हैं।

कोयला निकालने के बदले जंगल उगाने का यह फार्मूला अगर सही होता, तो तस्वीर कुछ और होती। लेकिन दस्तावेज़ों, कलेक्टरों के पत्रों और खसरा नंबरों की क्रॉस-वेरिफिकेशन के बाद जो हकीकत सामने आई है, वह पर्यावरण संरक्षण नहीं बल्कि ग्रीन कवर के नाम पर खेल की ओर इशारा करती है। सवाल यह नहीं है कि पेड़ लगाए जाएंगे या नहीं!! सवाल यह है कि क्या यह पूरी प्रक्रिया सिर्फ फाइलों में जंगल उगाने का तंत्र बन रही है?

द मूकनायक की यह जांच सिर्फ एक कोल ब्लॉक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस संभावित जंगल घोटाले की परतें खोलती है, जिसमें नियमों, रिपोर्टों और सरकारी मुहरों के बीच जंगल ज़मीन पर नहीं, काग़ज़ों में उगाए जा रहे हैं।

दरअसल, स्ट्राटाटेक मिनरल रिसोर्सेज प्राइवेट लिमिटेड को 3 मार्च 2021 को केंद्र सरकार ने धिरौली कोल ब्लॉक को मंजूरी दी। इसके बाद प्रशासन ने तेजी से प्रक्रिया आगे बढ़ाई। कुल खदान क्षेत्र 2672 हेक्टेयर में फैला है, जिसमें 544 हेक्टेयर निजी भूमि, 680 हेक्टेयर सरकारी भूमि, और लगभग 1400 हेक्टेयर वन भूमि शामिल है।

स्ट्राटाटेक मिनरल रिसोर्सेज प्राइवेट लिमिटेड को धिरोली कोल ब्लॉक विकसित करने की अनुमति दी गई है। यह कंपनी गौतम अडानी के अडानी कॉरपोरेट हाउस से जुड़ी है। इस खनन परियोजना के चलते अनुमान है कि 6 लाख से अधिक पेड़ काटे जाएंगे, ताकि कोयला खनन शुरू किया जा सके। जिसकी शुरुआत हो चुकी है, प्लान के तहत अबतक हज़ारों पेड़ों को काटा जा चुका है, और अभी भी कटाई जारी है।

पर्यावरणीय नियमों के तहत, जितने पेड़ काटे जाते हैं, उतने ही या उससे अधिक पेड़ अन्यत्र लगाए जाना अनिवार्य होता है। इसी नियम के तहत कंपनी ने मध्य प्रदेश के शिवपुरी, आगर मालवा और नीमच जिलों में बड़े पैमाने पर जमीन की मांग की।

‘जंगल निर्माण’ के लिए जमीन की तत्पर मंजूरी

कंपनी की मांग पर प्रशासन ने भी असाधारण तत्परता दिखाई। शिवपुरी और आगर मालवा जिलों के कलेक्टरों ने 114 खसरा नंबरों को वृक्षारोपण यानी जंगल निर्मित करने के लिए आरक्षित कर दिया। कुल मिलाकर 1014.77 हेक्टेयर जमीन वृक्षारोपण के लिए दे दी गई जिसमें-

शिवपुरी: 405.83 हेक्टेयर

आगर मालवा: 608.94 हेक्टेयर

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आगर-मालवा और शिवपुरी में 1014.77 हैक्टेयर भूमि वन निर्मित करने के लिए आरक्षित की गई। सोर्स- शासकीय वेबसाइट (प्रवेश पोर्टल)

कागजों में यह पूरी प्रक्रिया पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम दिखती है, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग निकली।

KML और सैटेलाइट इमेज ने खोली पोल

द मूकनायक ने इन सभी खसरा नंबरों की Keyhole Markup Language (KML) फाइल तैयार कर उन्हें गूगल अर्थ की सैटेलाइट इमेज से मिलाकर जांचा। जांच में सामने आया कि लगभग 193 हेक्टेयर जमीन पर पहले से ही घना जंगल, पेड़-पौधे, मंदिर, खेती योग्य भूमि, आवासीय क्षेत्र और मकान मौजूद हैं।

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गूगल अर्थ द्वारा KML फाइल की सेटेलाइट इमेजसोर्स- गूगल अर्थ

यानी जिन जमीनों को नया जंगल बनाने के लिए आरक्षित बताया गया है, वहां पहले से ही जंगल और बस्तियां, मंदिर तैयार खड़ी फसल (खेती) मौजूद हैं। यह सवाल अपने आप में गंभीर है कि जहां पहले से पेड़ हैं, वहां दोबारा वृक्षारोपण कैसे किया जाएगा?

खसरा नम्बरों की पड़ताल

कलेक्टर आगर–मालवा ने दिनांक 08 जून 2023 को एक पत्र स्ट्रेटाटेक मिनरल रिसोर्सेस प्राइवेट लिमिटेड (Stratatech Mineral Resources Pvt. Ltd.) के अधिकृत अधिकारी को लिखा था। पत्र का विषय आवंटित धिरोली कोल ब्लॉक में प्रभावित वन भूमि के एवज में वैकल्पिक/प्रतिपूरक वृक्षारोपण हेतु शासकीय राजस्व भूमि उपलब्ध कराने से संबंधित था।

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आगर मालवा कलेक्टर कार्यालय ने 608.94 हेक्टेयर भूमि की आरक्षितसोर्स- शासकीय वेबसाइट (प्रवेश पोर्टल)

इन्ही पत्र के साथ संलग्न तालिकाओं में जिला आगर–मालवा और शिवपुरी की कुल 1014.77 हेक्टेयर भूमि को वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त दिखाया गया है। इन तालिकाओं में जिन खसरा नंबरों को उनमें जिला आगर–मालवा (तहसील बड़ोद) के ग्राम झूपुरा, हटीपुरा, झालरा, मारखड़िया, नरला और तहसील आगर के ग्राम घानी खेड़ी शामिल हैं। इन गांवों के खसरा नंबर 511, 505, 506, 4, 5/2, 5/3, 9, 8, 170, 225, 55, 2/2 और 84 को वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त बताया गया है।

कलेक्टर, जिला शिवपुरी ने 3 जनवरी 2023 को ही पत्र क्रमांक 3240 के माध्यम से शिवपुरी वनमंडलाधिकारी, को पत्र लिखा, जिसमें धिरोली कोल ब्लॉक के लिए प्रभावित 1436.19 हेक्टेयर वन भूमि के एवज में शासकीय राजस्व भूमि को वैकल्पिक वृक्षारोपण हेतु उपलब्ध कराने का उल्लेख है। इस पत्र में तहसील बैराड़ के अंतर्गत आने वाले गांवों की भूमि को वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त बताया गया था।

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शिवपुरी कलेक्टर कार्यालय ने वन निर्माण के लिए आरक्षित की भूमिसोर्स- शासकीय वेबसाइट

पत्र के साथ संलग्न सूची में जिला शिवपुरी, तहसील बैराड़ के ग्राम बसई और ग्राम बूडदा के खसरा नंबरों को बृक्षरोपन के लिए आरक्षित किया। हमारी पड़ताल में इनमें प्रमुख रूप से खसरा नंबर 137, 150, 151, 152, 155, 1577, 1578, 1605, 1606, 1607, 1608, 1653 और 1654 शामिल हैं। इन खसरों को दस्तावेज़ों में पहाड़, पत्थरीली भूमि और पठार श्रेणी में दर्शाते हुए भी वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त बताया गया है।

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गूगल अर्थ (KML) में अधिकांश खसरा नम्बरों पर पूर्व से विकसित सोर्स- गूगल अर्थ

हालांकि, जब द मूकनायक प्रतिनिधि ने इन खसरा नंबरों की गूगल अर्थ और सैटेलाइट इमेजरी के माध्यम से पड़ताल की, तो अधिकांश स्थानों पर पथरीला, पहाड़ी और प्राकृतिक रूप से विकसित जंगल क्षेत्र दिखाई देता है। ऐसे भू-भाग पर बड़े पैमाने पर नए पौधे लगाना और उनका दीर्घकालीन संरक्षण व्यावहारिक रूप से बेहद कठिन प्रतीत होता है। इससे यह गंभीर सवाल खड़ा होता है कि जिन जमीनों को कागज़ों में प्रतिपूरक वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त दिखाया गया है, वहां वास्तव में पेड़ कैसे लगाए जाएंगे, या फिर यह पूरी प्रक्रिया केवल फाइलों और औपचारिकताओं तक ही सीमित रह जाएगी।

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आरक्षित भूमि पर बने घर, खेत और पूर्व निर्मित वनसोर्स- गूगल अर्थ (KML फाइल)

क्या है नियम?

देश में किसी भी खनन परियोजना के लिए पर्यावरणीय नियम बेहद सख्त हैं। यदि माइन के लिए वन भूमि का उपयोग किया जाता है तो वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत केंद्र सरकार से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य होता है। इस अनुमति के बदले संबंधित कंपनी को जितनी वन भूमि पर पेड़ काटे जाते हैं, उतनी ही या उससे अधिक भूमि पर प्रतिपूरक वनीकरण (Compensatory Afforestation) कराना होता है। गैर-वन भूमि उपलब्ध न होने की स्थिति में नियमों के अनुसार दुगुनी वन भूमि पर वृक्षारोपण की शर्त लागू की जाती है।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और ईआईए अधिसूचना, 2006 के तहत खनन परियोजनाओं को पर्यावरणीय स्वीकृति (EC) लेनी होती है। इस स्वीकृति में साफ तौर पर यह दर्ज रहता है कि कितने पेड़ काटे जाएंगे, उनके बदले कितने पौधे लगाए जाएंगे, वृक्षारोपण कहां होगा और पौधों के जीवित रहने की न्यूनतम प्रतिशत क्या होगी। आमतौर पर कंपनियों को स्थानीय प्रजातियों के पौधे लगाकर ग्रीन बेल्ट विकसित करने और कम से कम 80-90 प्रतिशत पौधों के जीवित रहने की जिम्मेदारी दी जाती है।

इसके अलावा CAMPA कानून, 2016 के तहत खनन कंपनी को प्रतिपूरक वनीकरण, पेड़ कटाई और नेट प्रेज़ेंट वैल्यू (NPV) की राशि राज्य या केंद्र के CAMPA फंड में जमा करनी होती है। यह राशि वन विभाग द्वारा वृक्षारोपण, संरक्षण और जैव-विविधता के कार्यों में खर्च की जाती है। नियमों के मुताबिक खदान बंद होने के बाद भी माइन क्लोजर प्लान के तहत क्षेत्र का पुनर्वनीकरण अनिवार्य है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पेड़ सिर्फ कागजों में नहीं, बल्कि ज़मीन पर भी सुरक्षित और जीवित रहें।

10 लाख प्रति हेक्टेयर जंगल निर्मित के लिए देगी कंपनी

जानकारी के अनुसार नियमों के तहत प्रति हेक्टेयर 10 लाख रुपये की दर से कंपनी को राशि जमा करनी होती है, ताकि खनन के कारण कटने वाले पेड़ों के बदले उतनी ही संख्या में नए पेड़ लगाए जा सकें। इसी प्रावधान के तहत शिवपुरी और आगर मालवा जिलों में कुल 1014.77 हेक्टेयर भूमि को वृक्षारोपण के लिए आरक्षित किया गया है। इस हिसाब से कंपनी को लगभग 101.47 करोड़ रुपये प्रतिपूरक वनीकरण के लिए जमा करने होंगे।

लेकिन यहीं से गंभीर सवाल खड़े होते हैं। जिन खसरों को वृक्षारोपण के लिए आरक्षित बताया गया है, उनमें से अधिकांश भूमि पथरीली है या पहले से ही जंगल के रूप में विकसित दिखाई पड़ रही है। ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट नहीं है कि इन क्षेत्रों में नए पौधे वास्तव में कैसे और कितनी प्रभावी ढंग से लगाए जाएंगे।

अपर मुख्य सचिव (वन) अशोक वर्णवाल (IAS) ने द मूकनायक से बातचीत में कहा कि इस पूरे मामले में सभी प्रक्रियाएँ नियमानुसार पूरी की गई हैं। जब उनसे यह सवाल किया गया कि जिस भूमि के अधिकांश हिस्से में पहले से वन क्षेत्र मौजूद है, वहाँ वृक्षारोपण किस प्रकार किया जाएगा, तो उन्होंने सवाल पूरा सुने बिना ही यह कहते हुए कि “मैं फोन पर बात नहीं कर सकता,” बातचीत समाप्त कर दी और फोन काट दिया।

पठारी जमीन पर जंगल?

शिवपुरी जिले के जिन खसरा नंबरों को वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त बताया गया है, उनमें से कई राजस्व रिकॉर्ड में ‘पठार’ के रूप में दर्ज हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक पठारी और पथरीली जमीन पर बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण न केवल कठिन है, बल्कि कई मामलों में व्यावहारिक रूप से असंभव भी होता है।

इसके बावजूद इन जमीनों को वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त घोषित कर देना, यह संकेत देता है कि चयन जमीन की प्रकृति देखकर नहीं, बल्कि कागजी संतुलन पूरा करने के लिए किया गया है।

शिवपुरी कलेक्टर रविंद्र कुमार चौधरी ने द मूकनायक से बातचीत में कहा कि उन्हें फिलहाल इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा, “अगर आपके द्वारा उठाए गए तथ्यों के अनुसार ऐसा कोई मामला है, तो इसकी जांच कराई जा सकती है।”

कलेक्टर चौधरी ने स्पष्ट किया कि वृक्षारोपण का कार्य कंपनी नहीं, बल्कि वन विभाग द्वारा किया जाएगा।

इस पूरे मामले पर द मूकनायक ने अडानी ग्रुप स्वामित्व वाली कंपनी स्ट्राटाटेक मिनरल रिसोर्सेज प्राइवेट लिमिटेड के क्लस्टर अधिकारी बच्चा प्रसाद से बातचीत की।

जब उनसे यह सवाल किया गया कि जिन जमीनों पर वन निर्मित (वृक्षारोपण) किया जाना प्रस्तावित है, वहां अधिकांश हिस्से में पहले से ही जंगल मौजूद है, तो उन्होंने कहा कि “हमें शासन से सभी आवश्यक अनुमतियां नियमानुसार प्राप्त हैं।”

इसके बाद जब हमने इस संबंध में आगे सवाल करना चाहा, तो बच्चा प्रसाद ने यह कहते हुए बातचीत रोक दी कि “अर्जेंट कॉल है, बाद में बात करूंगा,” और फोन काट दिया।

जंगल घोटाले की तैयारी?

द मूकनायक की पड़ताल से यह दिखाई देता है, कि यह मामला केवल लापरवाही का नहीं, बल्कि प्रशासनिक मिलीभगत से संभावित जंगल घोटाले की ओर इशारा करता है। एक तरफ सिंगरौली में लाखों पेड़ काटकर कोयला खनन किया जाएगा, और दूसरी तरफ पर्यावरणीय संतुलन के नाम पर ऐसी जमीनें दिखाई जाएंगी जहां या तो पहले से जंगल है या जहां वृक्षारोपण संभव ही नहीं।

धिरोली कोल ब्लॉक से जुड़ा यह मामला महज़ एक खनन परियोजना का नहीं, बल्कि पर्यावरणीय कानूनों और प्रक्रियाओं के सुनियोजित उल्लंघन का संकेत देता है। जिस तरह नियमों को कागज़ों में पूरा दिखाकर ज़मीनी सच्चाई से आंखें मूंदी गईं, वह प्रशासनिक जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करता है। द मूकनायक इस पूरे प्रकरण की आगे भी गहन पड़ताल करता रहेगा और तथ्य, दस्तावेज़ व ज़मीनी साक्ष्यों के आधार पर इसकी हर परत को सार्वजनिक करता रहेगा।

नोट: द मूकनायक के पास इस संबंध में संबंधित KML फ़ाइल और आवश्यक दस्तावेज़ उपलब्ध हैं।

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