भोपाल: राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने मध्य प्रदेश में आदिवासियों की जमीन खरीद के मामले में विधायक संजय पाठक के खिलाफ चल रही जांच को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। आयोग ने इस हाई-प्रोफाइल मामले में जांच की गति से असंतुष्ट होकर चार जिलों के कलेक्टरों को 'रिमाइंडर नोटिस' (स्मरण पत्र) भेजा है।
कलेक्टरों को आयोग का अल्टीमेटम
आयोग ने उमरिया, कटनी, जबलपुर और सिवनी के जिला कलेक्टरों को सख्त निर्देश दिए हैं कि वे मामले की जांच पूरी कर 30 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें। आयोग ने अपने नोटिस में स्पष्ट किया है कि यदि तय समय सीमा के भीतर रिपोर्ट नहीं सौंपी गई, तो संबंधित अधिकारियों को आयोग के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर जवाब देना पड़ सकता है।
क्या है पूरा मामला?
यह पूरा विवाद विधायक संजय पाठक द्वारा कथित तौर पर 1,134.60 एकड़ जमीन की खरीद से जुड़ा है। आयोग ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए जांच शुरू की थी। इससे पहले, 15 सितंबर को जारी एक पत्र के माध्यम से आयोग ने डिंडोरी सहित पांच जिलों के कलेक्टरों से जवाब तलब किया था। अब आयोग ने चार जिलों के अधिकारियों को दोबारा नोटिस भेजकर कार्रवाई में तेजी लाने को कहा है।
कर्मचारियों के नाम पर जमीन खरीदने का आरोप
इस मामले की शिकायत दीवांशु मिश्रा ने दर्ज कराई थी। शिकायत में गंभीर आरोप लगाए गए हैं कि विधायक पाठक ने बैगा और अन्य आदिवासी समुदायों की बेशकीमती जमीनों को हथियाने के लिए अनुचित तरीकों का इस्तेमाल किया। आरोप है कि विधायक ने यह जमीनें सीधे अपने नाम पर न लेकर अपने आदिवासी कर्मचारियों के नाम पर खरीदी हैं, ताकि कानून की पकड़ से बचा जा सके।
शिकायतकर्ता ने विशेष रूप से चार कर्मचारियों—नत्थू कोल, पहलाद कोल, राकेश गोंड और राकेश सिंह गोंड—की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। शिकायत में मांग की गई है कि इन चारों की वित्तीय स्थिति, बैंक खातों के विवरण और संपत्तियों की गहनता से जांच की जाए, ताकि यह पता चल सके कि क्या वे वास्तव में इतनी जमीन खरीदने की क्षमता रखते हैं या यह कोई 'बेनामी' लेन-देन है।
जाति बदलकर जमीन खरीदने का दावा
मामले में एक और चौंकाने वाला पहलू सामने आया है। आरोपों के मुताबिक, जमीन की खरीद-फरोख्त को सुविधाजनक बनाने के लिए जाति के दस्तावेजों में भी हेरफेर किया गया। दावा किया गया है कि नत्थू कोल नामक कर्मचारी ने डिंडोरी में अपनी जाति बदलकर खुद को 'गोंड' समुदाय का बताया। शिकायतकर्ता का कहना है कि ये कर्मचारी जमीन की रजिस्ट्री को आसान बनाने के लिए अक्सर अपनी जाति संबंधी पहचान बदलते रहते हैं।
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