जाति और धर्म के नाम पर हो रहे कलह के बीच देशवासियों को समानता, सौहार्द और प्रेम का सन्देश देने के उद्देश्य से हर साल की तरह इस बार भी 'ढाई आखर प्रेम' राष्ट्रीय सांस्कृतिक जत्था कई गांवों और शहरों से निकलेगा. इस बार 28 सितंबर को शहीद भगत सिंह की जयंती पर राजस्थान के अलवर से यह काफिला शुरू होगा और 30 जनवरी, 2024 को शहीद दिवस पर महात्मा गांधी को याद करते हुए दिल्ली में समाप्त होगा।
भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की मेजबानी में 'पीपुल्स थिएटर' के नारे को आगे बढ़ाते हुए 'जत्था' (मार्च) 120 दिनों तक चरणबद्ध तरीके से 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पैदल यात्रा करेगा। जत्था हजारों बच्चों, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों, किसानों, मेहनतकश लोगों, श्रमिकों, कलाकारों और कारीगरों और सूक्ष्म उद्यमियों से मिलेगा और प्रेम, समानता, न्याय, मानवता और भाईचारे के मूल्यों को साझा करेगा।
इस अवधि के दौरान, इप्टा और मानवता के पक्ष में सभी प्रगतिशील, लोकतांत्रिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन और व्यक्ति पदयात्रा करेंगे और सार्वजनिक संवाद में शामिल होंगे।
भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) का गठन 1943 में एक राष्ट्रीय सांस्कृतिक संगठन के रूप में हुआ जिसका उद्देश्य भारत के लोगों के बीच सांस्कृतिक जागृति पैदा करना है। एकजुटता का संदेश फैलाने के लिए इप्टा ने अब तक देश के विभिन्न हिस्सों में 20 से अधिक सांस्कृतिक यात्राएं आयोजित की हैं।
आखरी यात्रा 2022 में निकली थी, जो रायपुर (छत्तीसगढ़) से शुरू होकर इंदौर (मध्य प्रदेश) में समाप्त हुई। 44 दिनों यानि सवा महीने चलाने वाली इस यात्रा में पाँच राज्यों – छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश की कई जगहों में इप्टा का संदेश पहुंचाया। इस यात्रा में गीत, कविता, रंगमंच और नए समय को संबोधित करती सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों के साथ प्रेम, सौहार्द और आपसी सम्मान के मिले-जुले धागों को बुना।
इस बार आयोजन में इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) के साथ जन नाट्य मंच , जन संस्कृति मंच, प्रगतिशील लेखक संघ (PWA), जनवादी लेखक संघ, दलित लेखक संघ,अनहद कारवां-ए-मोहब्बत, प्रतिध्वनि , संगवारी, AIDWA - अलवर, भारत परिवार-अलवर शामिल हैं.
इस यात्रा का उद्देश्य अपने लोगों से गहरी समझ बनाना, संवाद करना, विविध रूपों और स्थायी रूप से जुड़ने और जोड़ने की गंभीर सार्थक पहल है। यह जत्था पूरे देश में पैदल यात्रा कर गाँव-गाँव से गुज़रेगा। इस जत्था के रास्तों में मिलने वाले लोगों के सम्मान में यात्री गीत गाएंगे, नृत्य करेंगे, नाटक प्रस्तुत करेंगे, हथकरघा से बनीं चीज़ें लोगों से साझा करेंगे जिन्हें आज लोग विस्मृत कर चुके हैं.
अपनी माटी में रंगे प्रेम के धागों को बुनने और बांटने वाले समाज सुधारकों, संतों, कलाकारों, लोक-कलाकारों, कवियों और आज़ादी के दीवानों को याद करते उनके जन्म और कर्मस्थली जाएंगे। ‘ढाई आखर प्रेम” जत्था समता, न्याय और एकजुटता को फिर से पाने और जीने की कोशिश के साथ इसे पुनः समाज में स्थापित करने का प्रयास है जिसे नफरत, विभाजन,अहंकार और पहचान की वर्तमान राजनीति ने बड़ी क्रूरता से कमज़ोर कर दिया है।
आयोजक बताते हैं, बतौर आम नागरिक हम कठिन दौर से गुज़र रहे हैं पर फिर भी हमारी उम्मीदें और सपने कबीर के छंदों और गांधी की प्रार्थनाओं में ज़िंदा हैं, सांस लेते हैं और हमारे दिलों में धड़कते हैं। किसान, कलाकार, श्रमिक, बुद्धिजीवी, ज़मीनी कार्यकर्ता और युवा अपने बुनियादी मूल्यों को पुनर्जीवित करके, पोषित करके एक साथ निकलेंगे, एक साथ आएंगे, वे मिलकर हमारे घर, समाज और देश के धर्म-निरपेक्ष ताने-बाने को कसेंगे, संरक्षित करेंगे।
यह जाथा हमारी आने वाली नस्लों के लिए ऐसी दुनिया को बनाने का ख़्वाब है जो सिर्फ़ ख़यालों तक नहीं बल्कि ज़मीन पर उतारने का हौसला है. जत्था शहीदों को याद करने, समाज सुधारकों के रास्ते पर चलने की सीखों को जीने का, भक्ति और सूफी परंपरा के हमारे पुरखों को जीने और बरतने का संकल्प होगा। भाषा, जाति, लिंग और धर्म के आधार पर भेद को मिटाने का साहस असल में प्रेम और उम्मीद की अभिव्यक्ति होगी ।
'ढाई आखर प्रेम' का मार्च, जनता के दिलों में गूंजने वाले बापू, भगत सिंह, अशफाक, बिस्मिल और सैकड़ों शहीदों के लोकाचार का आह्वान करेगा। यात्री उस भारत का आह्वान करेंगे जो अभी भी अम्बेडकर और नेहरू के सपने को आगे बढ़ाता है, जो विवेकानन्द की विश्व बंधुत्व और रवीन्द्रनाथ टैगोर के मानवतावादी आदर्शों में विश्वास करता है। अंधविश्वास और रूढ़िवाद के खिलाफ वैज्ञानिक चेतना जगाने के लिए ईश्वर चंद विद्यासागर, राम मोहन रॉय, पेरियार, ई वी रामासामी और गोविंद पानसरे जैसे लोगों के तर्क और ज्ञान को याद करेंगे। 'ढाई आखर प्रेम' सांस्कृतिक मार्च गीतों और प्रदर्शनों के माध्यम से भाईचारे, प्रेम और मानवता के मूल्यों का जश्न मनाएगा।
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