भीम संकल्प दिवस: जब वट वृक्ष के नीचे बैठ फूट-फूटकर रोये थे बाबा साहब!

बाबा साहेब के महासंकल्पों की गुजरात में गूंज। दलित और बहुजन संगठनों ने निकाली रैलियां, सभाओं में अंधविश्वास और भेदभाव की जंजीरों को तोड़ने का संकल्प दोहराया।
गुजरात के अमरेली में  संकल्प दिन उत्सव पर आयोजित कार्यक्रम
गुजरात के अमरेली में संकल्प दिन उत्सव पर आयोजित कार्यक्रम स्वयं सैनिक दल

वड़ोदरा: गुजरात के इस शहर में 23 सितंबर का दिन बहुजनों के लिए ऐतिहासिक और भावनात्मक महत्ता से परिपूर्ण दिन है। 106 साल पहले इसी शहर में बहुजनों के मसीहा बाबा भीम राव अम्बेडकर ने एक महासंकल्प लिया था। अर्थशास्त्र और कानून में ऊंची तालीम और गुजरात बड़ौदा राजघराने में प्रतिष्ठित सरकारी मुकाम हासिल करने के बावजूद बाबा साहेब को इस शहर में सिर छुपाने के लिए एक छत मय्यसर नहीं थी। दलित और अछूत कर उन्हें अपमानित किया गया, किराया देने के बावजूद उन्हें धर्मशाला के कमरे से सामान सहित बाहर निकाल दिया गया। बाबा साहेब ने 23 सितंबर 1917 को जो संकल्प लिया था, आज 106 वर्षों बाद भी पूरे गुजरात में उसकी गूंज रही और बहुजनों ने बाबा साहेब द्वारा दी गयी सीख को अपने जीवन मे उतारने की प्रतिबद्धता दोहराई। 

स्वयं सैनिक दल सहित विभिन्न बहुजन संस्थाओं व समूहों द्वारा शनिवार को गुजरात के सभी जिलों एवं तहसीलों में रैलियों, सभाओं का आयोजन किया गया। संकल्प भूमि ट्रस्ट द्वारा बड़ौदा में बाबा साहेब के स्मारक पर आयोजन किये गए। 

एसएसडी वालंटियर रागेश भाई ने बताया कि पहले वर्षों में बहुजन भी संकल्प दिवस के महत्व के बारे में जागरूक नहीं थे लेकिन एसएसडी ने कुछ वर्षों से जागरूकता का प्रचार प्रसार का काम किया है। अब 14 अप्रैल यानी बाबा साहेब का जन्मदिन, 6 दिसंबर उनका परिनिर्वाण दिवस और 23 सितंबर संकल्प दिवस पूरे गुजरात में पूर्ण सम्मान के साथ मनाया जाता है। सभी जिलों में सुबह से ही कार्यक्रम हुए, बुद्ध शोभायात्रा निकाली गई , हजारों की संख्या में महिला पुरुष बुजुर्गों और बच्चों ने आयोजनों में हिस्सा लिया। बाबा साहब की सिखावनियों को जीवन मे उतारने की शपथ दोहराई। रागेश भाई कहते हैं संकल्प भूमि भी अंधश्रद्धा का केंद्र बन रही है क्योंकि हिन्दू धर्म की जिन कुरीतियों से दूर रहने को बाबा साहेब ने कहा था, भक्ति पूजा पाठ और आडंबर नहीं करने की नसीहत दी थी, अब वही जगह लोग नारियल अगरबत्ती चढ़ाकर एक धार्मिक आस्था का स्थल बना रहे हैं जिसको लेकर भी एसएसडी लोगों में जागरूकता फैलाने का काम कर रही है। 

गुजरात के बड़ौदा में भीम संकल्प दिन उत्सव पर स्वयं सैनिक दल (SSD) की रैली सभा और सलामी कार्यक्रम
गुजरात के बड़ौदा में भीम संकल्प दिन उत्सव पर स्वयं सैनिक दल (SSD) की रैली सभा और सलामी कार्यक्रम स्वयं सैनिक दल

क्यों लेना पड़ा बाबा साहेब को संकल्प? 

वर्ष 1917 में गुजरात के बड़ौदा शहर में नौकरी करने आये बाबा साहेब अम्बेडकर जी को रहने के लिए मकान नहीं मिला । उन्हें बड़ौदा नरेश सयाजीराव गायकवाड़ ने प्रतिभाशाली, होनहार होने के कारण छात्रवृत्ति देकर कानून व अर्थशास्त्र के अध्ययन करने हेतु लंदन भेजा था। छात्रवृति के साथ अनुबंध यह था कि विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे बड़ौदा रियासत को अपनी दस वर्ष की सेवाएं देंगे।

अध्ययन कर उच्च शिक्षा हासिल करने के उपरांत अम्बेडकर करार के मुताबिक अपनी सेवाएँ देने हेतु बड़ौदा आए। बड़ौदा नरेश ने उन्हें सैनिक सचिव के पद पर तत्काल नियुक्त कर लिया। एक सामान्य सी घटना आग की लपटों की तरह पूरी रियासत में फैल गयी। बस एक ही चर्चा चारों ओर थी कि बड़ौदा नरेश ने एक 'अछूत' व्यक्ति को सैनिक सचिव बना दिया है।

राजकोट में हुई रैली और महासभा
राजकोट में हुई रैली और महासभा स्वयं सैनिक दल

विडम्बना यह थी कि इतने उच्च पद पर आसीन अधिकारी को भी मातहत कर्मचारी दूर से फाईल फेंककर देते चपरासी पीने के लिए पानी भी नहीं देता। यहां तक की बड़ौदा नरेश के उस आदेश की भी अनदेखी कर दी गयी जिसमें कहा गया था कि इस उच्च अधिकारी के रहने की उचित व्यवस्था की जाए। दिवान उनकी मदद करने से स्पष्ट ही इन्कार कर चुका था । इस उपेक्षा और तिरस्कार के बाद अब उन्हें रहने व खाने की व्यवस्था खुद ही करनी थी। किसी हिंदू लॉज या धर्मशाला में उन्हें जगह नहीं मिली । आखिरकार बाबा साहेब अम्बेडकर जी एक पारसी धर्मशाला में अपना असली नाम छुपाकर एवं पारसी नाम बताकर दैनिक किराये पर रहने लगे। जाति ने धर्मशाला में भी उनका पीछा नहीं छोड़ा।

मनुवादी मानसिकता के लोगों ने जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया व उनका सामान बाहर फेंक दिया। बहुत निवेदन करने के बाद बाबा साहेब को धर्मशाला खाली करने के लिए आठ घंटे की मोहल्लत दी गयी। चूंकि उस समय बड़ौदा नरेश मैसूर जाने की जल्दी में थे, अतः बाबा साहेब को दीवान जी से मिलने की सलाह दी गयी लेकिन दीवान उदासीन बने रहे। विवश होकर बाबा साहेब ने दुखी मन से बड़ौदा नरेश को अपना त्याग-पत्र सौंप दिया और रेल्वे स्टेशन पंहुचकर बम्बई जाने वाली ट्रेन का इंतजार करने लगे। ट्रेन चार-पांच घंटे विलम्ब से चल रही थी। तब पास में ही कमाठी बाग के वट वृक्ष के नीचे एकांत में बैठकर वह अपने साथ हुए अन्याय को याद करके फूट-फूट कर खूब रोये। उनकी आवाज सुनने वाला उस वृक्ष के अलावा कोई नहीं था।

लाखों-लाख प्रतिभा से योग्य, प्रतिभावान एवं सक्षम होकर भी वह उपेक्षित थे | उनका दोष केवल इतना था कि वह अछूत थे । उन्होने सोचा कि मैं इतना उच्च शिक्षित हूं, विदेश में पढ़ा हूं, तब भी मेरे साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है तो देश के करोड़ों अछूत लोगों के साथ क्या हो रहा होगा ?”

वो तारीख थी 23 सितम्बर 1917, बाबा साहेब ने सोचा कि मुझे और मेरे समाज को इन्ही जातियों / छुआछूत के कारण अपमानित होना पड़ रहा है। और अब मैं इन जातियों को ही खत्म कर दुंगा और सभी को न्याय, स्वतंत्रता, बंधुत्व और समानता का अधिकार दिलाऊंगा। और जब उनके आंसू थमे तो उस समय बाबा साहेब ने एक विराट संकल्प लिया.

इस स्थान पर लिया था बाबा साहेब ने संकल्प
इस स्थान पर लिया था बाबा साहेब ने संकल्प

"अब मैं कोई नौकरी नहीं करूंगा तथा अपना पूरा जीवन इस देश से छुआछूत निवारण और समानता कायम करने के कार्य करने में लगाऊंगा”

बाबा साहब अम्बेडकर

यह एक साधारण संकल्प नहीं था बल्कि महान संकल्प था, न तो यह संकल्प साधारण था न ही इसको लेने वाला व्यक्ति खुद साधारण था। बाबा साहब के इस संकल्प से उपजे संघर्ष ने भारत के करोड़ों लोगों के जीवन की दिशा बदल दी। बाबा साहब ने जीवनभर संघर्ष किया व उत्पीड़ित लोगों को जीने का नया रास्ता दिखाया।

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