बेंगलुरु- सिविल राइट्स एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट ( Directorate of Civil Rights Enforcement (DCRE) द्वारा की गई एक विस्तृत जांच में भारतीय प्रबंध संस्थान (IIM) बैंगलोर के निदेशक, डीन (फैकल्टी), और छह अन्य संकाय सदस्य के खिलाफ जाति आधारित भेदभाव और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करने के आरोपों की पुष्टि हुई है।
यह रिपोर्ट, जो 26 नवंबर 2024 को कर्नाटका के सामाजिक कल्याण विभाग को सौंपी गई, भारत के प्रमुख शैक्षिक संस्थानों में जातिवाद से जुड़ी समस्याओं को उजागर करती है।
समाज कल्याण आयुक्त के 9 दिसंबर के आदेश के बावजूद, बैंगलोर पुलिस आयुक्त ने अभी तक एफआईआर दर्ज करने के आदेश नहीं दिए हैं जिसकी वजह से माइको लेआउट पुलिस स्टेशन ने भी कोई एफआईआर दर्ज नहीं की, जिससे प्रशासनिक निष्क्रियता पर सवाल उठ रहे हैं।
मामला प्रोफेसर गोपाल दास से जुड़ा है, जो IIT खड़गपुर के स्नातक और मार्केटिंग के globally recognized scholar हैं। उन्होंने अप्रैल 2018 में IIM बैंगलोर में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में जॉइन किया था। दास, जो दलित समुदाय से हैं, ने आरक्षण का लाभ नहीं लिया है ।
उन्होंने संस्थान में शीर्ष प्रदर्शन करने वालों में से एक के रूप में खुद को स्थापित किया है, और लगातार पांच वर्षों तक स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के शीर्ष 2% प्रोफेसरों में शामिल होने के लिए मान्यता प्राप्त की है। हालांकि, अपने उत्कृष्ट अकादमिक रिकॉर्ड के बावजूद, दास ने आरोप लगाया कि उन्हें अपनी जाति के कारण संस्थागत उत्पीड़न और अवसरों से वंचित किया गया।
जनवरी 2024 में, प्रोफेसर दास ने भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की, जब वे आईआईएम बैंगलोर की यात्रा पर थीं। इस मुलाकात में, और बाद में एक औपचारिक पत्र के माध्यम से, दास ने अपने साथ हुए भेदभावपूर्ण व्यवहार के बारे में विस्तार से बताया।
इनमें उन्होंने बताया कि उनकी दलित पहचान के कारण उन्हें संस्थागत गतिविधियों से बाहर रखा गया, वैकल्पिक पाठ्यक्रम और पीएचडी कार्यक्रमों से हटने के लिए मजबूर किया , और संस्थागत संसाधनों तक पहुंचने से प्रतिबंधित किया गया था। दास ने यह भी बताया कि उनकी जाति का खुलासा बड़े पैमाने पर ईमेल के माध्यम से किया गया था, जिससे उन्हें अपमान और लक्षित उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।
उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें "निम्न जाति" का सदस्य बताया गया था, जो उनकी गरिमा और अधिकारों का उल्लंघन था। प्रोफेसर दास की शिकायत के बाद, राष्ट्रपति कार्यालय ने कर्नाटक के मुख्य सचिव को एक औपचारिक जांच शुरू करने का निर्देश दिया।
मार्च 2024 में, सिविल राइट्स एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट ने अपनी जांच शुरू की, जिसमें जातिगत भेदभाव के साक्ष्य मिले। हालांकि, दास ने दावा किया कि जांच शुरू होने के बाद उन्हें और भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। 15 मई 2024 को उन्होंने सामाजिक कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि इसके परिणामस्वरूप उन्हें एक शो-कॉज नोटिस जारी किया गया, जिसमें उन्हें मीडिया से संपर्क करने का आरोप लगाया गया।
जाति का सार्वजनिक रूप से प्रकट करना: प्रोफेसर दास की जाति को डॉ. ऋषिकेश टी. कृष्णन, निदेशक, और डॉ. दिनेश कुमार, डीन (फैकल्टी) द्वारा मेल के माध्यम से जानबूझकर प्रकट किया गया।
समान अवसरों का उल्लंघन: कार्यस्थल पर अवसरों से वंचित किया गया और संस्थान की गतिविधियों से बाहर किया गया।
शिकायत निवारण प्रणाली की कमी: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों और कर्मचारियों के लिए शिकायत निवारण प्रणाली की स्थापना में विफलता।
यह रिपोर्ट 26 नवंबर 2024 को सामाजिक कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को सौंपी गई। इसके बाद सामाजिक कल्याण आयुक्त ने बैंगलोर पुलिस आयुक्त बी दयानंद को 9 दिसंबर को एफआईआर दर्ज करने को लेकर पत्र (No. Sakani/CS-1/CR-4/2024-25) लिखा। लेकिन बैंगलोर पुलिस आयुक्त ने अभी तक एफआईआर दर्ज करने के आदेश नहीं दिए हैं, माइको लेआउट पुलिस स्टेशन ने एफआईआर दर्ज नहीं की, जिससे प्रशासनिक निष्क्रियता का सवाल खड़ा हो गया है।
इस बीच, बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. देवी प्रसाद शेट्टी सहित सभी आरोपियों ने कर्नाटक हाई कोर्ट में DCRE जांच पर रोक लगाने के लिए आवेदन किया। प्रसिद्ध कार्यकर्ता अनिल वागड़े ने बताया कि डॉ. शेट्टी से भी DCRE जांच में सवाल किए गए थे, लेकिन जांच समाप्त होने से पहले उन्होंने कर्नाटका हाई कोर्ट से स्थगन आदेश प्राप्त किया।
जबकि हाई कोर्ट ने अधिकांश आरोपियों के लिए स्थगन आदेश खारिज कर दिया, डॉ. शेट्टी को अस्थायी राहत प्रदान की। कर्नाटका के महाधिवक्ता इस स्थगन आदेश को हटाने के लिए काम कर रहे हैं, जिससे सभी आरोपियों के लिए गंभीर कानूनी परिणाम हो सकते हैं।
आईआईएम बंगलौर जैसे प्रीमियर शैक्षिक संस्थान में जातिवाद के मसले पर सामाजिक कार्यकर्ताओं और शैक्षिक समुदाय के सदस्यों ने संस्थागत सुधारों की मांग की है, जिसमें हाशिए पर पड़े समूहों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए मजबूत शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना शामिल है।
BANAE के राष्ट्रीय अध्यक्ष नागसेन सोनारे ने द मूकनायक को बताया, जैसा कि सामाजिक कल्याण विभाग ने DCRE जांच के बाद निर्देशित किया था, सोनारे ने एक सप्ताह पहले बैंगलोर पुलिस आयुक्त बी. दयानंद को पत्र लिखकर IIM बैंगलोर के निदेशक, डीन, और अन्य संकाय सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अपील की थी, लेकिन, अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
कर्नाटका सरकार पर दबाव बढ़ रहा है कि वह कानूनी प्रक्रिया को तेज करें और जवाबदेही सुनिश्चित करें। ADGP की रिपोर्ट ने प्रोफेसर दास के आरोपों की पुष्टि की है और अब सभी की नजरें पुलिस आयुक्त की कार्रवाई और हाई कोर्ट में हो रही सुनवाई पर हैं।
इस मुद्दे पर कारवाई की जानकारी हासिल करने के लिए द मूकनायक ने बैंगलोर पुलिस आयुक्त बी दयानंद से जरिये इमेल और Whatsapp पर कई मैसेज भेजे लेकिन IPS अधिकारी से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। पुलिस विभाग के इस मामले में बरती जा रही ढिलाई और देरी पर आलोचना हो रही है।
यह मामला, जिसमें भारत के एक प्रमुख संस्थान में जातिवाद का आरोप है, राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित कर रहा है और न्याय की मांग तेज हो गई है। BANAE और अन्य संगठनों ने न्याय सुनिश्चित करने तक अपनी कोशिशें जारी रखने का वादा किया है।
भारतीय प्रबंधन संस्थान बेंगलुरु (IIMB) ने अपने एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गोपाल दास द्वारा लगाए गए जातिगत भेदभाव के आरोपों को सख्ती से खारिज कर दिया है।
यह बयान द मूकनायक द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट के बाद आया है, जिसमें बताया गया कि नागरिक अधिकार प्रवर्तन निदेशालय (DCRE) की जांच रिपोर्ट में संस्थान पर उल्लंघन की पुष्टि की गई थी। IIMB ने अपने बयान में समावेशिता, विविधता और समान अवसर के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है और यह स्पष्ट किया है कि संस्थान ने हमेशा संवैधानिक मूल्यों का पालन किया है और भेदभाव रहित वातावरण बनाए रखा है।
IIMB ने स्पष्ट किया कि डॉ. दास के आरोप तब सामने आए जब उनकी प्रोमोशन आवेदन को डॉक्टोरल (शोध) छात्रों द्वारा उनके खिलाफ दर्ज की गई उत्पीड़न की शिकायतों के कारण रोक दिया गया। संस्थान ने बताया कि एक आंतरिक जांच, जिसमें एक प्रतिष्ठित एससी समुदाय के अकादमिक शामिल थे, ने छात्रों की शिकायतों को सही पाया। इसके बाद, IIMB की विविधता और समावेश शिकायत निवारण समिति (DIGRC) ने डॉ. दास की उत्पीड़न और भेदभाव की शिकायतों की जांच की और उन्हें निराधार पाया।
IIMB ने बयान में कहा कि 2018 में डॉ. दास की नियुक्ति के बाद से संस्थान ने उन्हें पर्याप्त समर्थन दिया है। उन्हें उनके अनुभव और योग्यता के आधार पर सहायक प्रोफेसर के बजाय एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया। इसके अलावा, उन्हें प्रतिस्पर्धी प्रोत्साहन और जिम्मेदारियों जैसे इंस्टीट्यूशनल रिव्यू बोर्ड के चेयरपर्सन, करियर डेवलपमेंट सर्विसेज कमेटी के सदस्य और विविधता और समावेश समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया। साथ ही, उन्हें अपनी पसंद के कोर्स पढ़ाने की स्वतंत्रता दी गई।
IIMB ने नागरिक अधिकार प्रवर्तन निदेशालय (DCRE) की चल रही जांच को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि उसे जांच रिपोर्ट की प्रति प्राप्त नहीं हुई है। हालांकि, मीडिया रिपोर्ट्स में संस्थान पर आरोप लगाए जाने पर चिंता व्यक्त की। IIMB ने कहा कि उसने अपनी आंतरिक जांच के सभी साक्ष्य DCRE को सौंप दिए हैं। संस्थान ने एक समावेशी अकादमिक समुदाय और उत्कृष्टता की विरासत बनाए रखने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। साथ ही, यह आश्वासन दिया कि वह कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श लेकर उचित कदम उठाएगा।
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