नई दिल्ली - राज्यसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को लेकर दिए बयान पर विवाद बढ़ गया है। जहाँ एक और विपक्षी दल और अम्बेडकरवादी संगठन लगातार शाह के बयान की निंदा कर रहे हैं, देशभर में उनके पुतले जलाए जा रहे हैं और उग्र प्रदर्शन हो रहे हैं. इन सबके बीच अप्रवासी भारतीयों में भी घटना को लेकर गहरा रोष है. अपनी नाराजगी दिखाने के लिए NRI अंबेडकरवादियों ने गुरूवार को एक ऑनलाइन पिटीशन शुरू किया जो देखते ही देखते तेजी से लोगों का समर्थन प्राप्त कर रहा है.
NRI अंबेडकरवादियों द्वारा शुरू की गई इस ऑनलाइन याचिका को गुरुवार को कुछ ही घंटों में सैकड़ों हस्ताक्षर मिल गए। यह याचिका भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को संबोधित है और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा डॉ. भीमराव अंबेडकर पर की गई टिप्पणी पर कार्रवाई की मांग करती है।
याचिका में अमित शाह की कथित टिप्पणियों की कड़ी निंदा की गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये टिप्पणियां डॉ. अंबेडकर की विरासत और उनके योगदान को कमतर दिखाने की कोशिश हैं। याचिका में लिखा है : " डॉ. अंबेडकर की विरासत केवल एक समुदाय का गर्व नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र की धरोहर है। यह आवश्यक है कि हर नागरिक, विशेष रूप से सत्ता में बैठे लोग, उनके योगदान का सम्मान करें और उनकी महानता को मान्यता दें।"
सार्वजनिक माफी: अमित शाह से उनकी टिप्पणी के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगने और इससे हुई आहत भावनाओं को स्वीकार करने की मांग।
अंबेडकरवादी मूल्यों की पुष्टि: सरकार से यह सुनिश्चित करने की अपील कि डॉ. अंबेडकर द्वारा स्थापित न्याय, समानता और बंधुत्व के मूल्यों का सम्मान किया जाएगा।
शिक्षा और जागरूकता: डॉ. अंबेडकर के योगदान के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए विशेष कदम उठाने की सिफारिश।
यह याचिका अमेरिका, कनाडा और यूके सहित कई देशों में रहने वाले NRI अंबेडकरवादी संगठनों और व्यक्तियों का सपोर्ट प्राप्त कर रही है। कुछ ही घंटों में इसे दुनियाभर से सैकड़ों लोगों का समर्थन मिल गया।
अकादमिक, सामाजिक कार्यकर्ता और पेशेवर लोग इस याचिका का समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि डॉ. अंबेडकर की सोच आज भी जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में प्रासंगिक है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि डॉ. अंबेडकर का संविधान और न्यायपूर्ण समाज का दृष्टिकोण भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव है। उनकी विरासत को कम करने की कोई भी कोशिश समाज के ताने-बाने को कमजोर कर सकती है।
याचिका में राष्ट्रपति से संविधान की संरक्षक के रूप में हस्तक्षेप करने की मांग की गई है।
यह ऑनलाइन याचिका दिखाती है कि डॉ. अंबेडकर की विरासत केवल भारत तक सीमित नहीं है। NRI समुदाय भी इसे अपना मानता है और इसकी सुरक्षा के लिए कदम उठा रहा है।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने लिखा, " संसद में (18-12-2024) दिए गए आपके बयान से हमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि हम पहले से ही आपकी पार्टी की मानसिकता को जानते हैं। लेकिन अब पूरा देश देख चुका है कि भारतीय संविधान के निर्माता के प्रति आपका सम्मान कितना कम है। उसी संसद में खड़े होकर, जो संविधान के तहत चलती है, उनकी स्मृति को "आदत" कहना आपके अहंकार को दर्शाता है। इस बेशर्मी के लिए बधाई, श्री शाह!
राष्ट्र को यह कहकर गुमराह करने की कोशिश न करें कि "मुझे बाबासाहेब के प्रति गहरा सम्मान है, और मेरे शब्दों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया।" हम भोले नहीं हैं। अपने शब्दों को स्वीकार करें और राष्ट्र के सामने खड़े हों।
हमारे लिए अंबेडकर कोई "फैशन" नहीं हैं, बल्कि अनंत प्रेरणा हैं। जब तक हमारी सांसें चलेंगी, जब तक यह धरती पर सूरज और चांद चमकते रहेंगे, अंबेडकर की विरासत अमर रहेगी। जितना आप उनकी स्मृति को मिटाने की कोशिश करेंगे, उतना ही वह हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी। आपके चाटुकार भले ही आपके अहंकार पर ताली बजा रहे हों, लेकिन याद रखें: इस देश के करोड़ों लोग, जिन्हें बाबासाहेब के कारण समानता और गरिमा मिली है, आपकी निंदा कर रहे हैं।"
पत्र में आगे लिखा , " अगर डॉ. अंबेडकर का जन्म न हुआ होता, तो शायद मुझे आज मुख्यमंत्री बनने का अवसर नहीं मिलता—शायद मैं अपने गांव में मवेशी चरा रहा होता। हमारे वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे जी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बन पाते; शायद वे कलबुर्गी के किसी कारखाने में मजदूरी कर रहे होते। हमारा हर कदम, हमारी हर गरिमा, बाबासाहेब और उनके दिए संविधान की देन है।
सिर्फ मैं ही नहीं—बाबासाहेब के योगदान के बिना, आप भी आज गृह मंत्री नहीं होते। शायद आप अपने गृहनगर में कबाड़ का व्यवसाय चला रहे होते। आपके सहयोगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी शायद अब भी रेलवे स्टेशन पर चाय बेच रहे होते। बाबासाहेब का दृष्टिकोण ही हमें सबको ऊंचा उठाने का कारण है। शायद प्रधानमंत्री स्वयं इस बात को मानेंगे, और आपको भी मानना चाहिए।
आपकी अंबेडकर के प्रति नफरत इतिहास जानने वालों के लिए नई बात नहीं है। आपके वैचारिक संगठन आरएसएस ने बाबासाहेब के जीवनकाल में उनके लिखे संविधान को क्यों खारिज कर दिया था? ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि आरएसएस के नेताओं जैसे हेडगेवार, गोलवलकर और सावरकर ने संविधान के खिलाफ क्या बयान दिए थे। आप इन सच्चाइयों को दबाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन इन्हें मिटा नहीं सकते। संसद में दिया गया आपका बयान आरएसएस की उस पुरानी विचारधारा का ही विस्तार है।
अब मैं आपको आपके ही लहजे में जवाब देता हूं। आपकी पार्टी और उसका वैचारिक परिवार अब "मोदी... मोदी... मोदी" का जाप करने का एक नया फैशन विकसित कर चुका है। अगर आप भगवान का नाम उतनी ही बार लेते जितनी बार आप मोदी का नाम लेते हैं, तो शायद आपको स्वर्ग में जगह मिल जाती—सिर्फ सात जन्मों के लिए नहीं, बल्कि सौ जन्मों के लिए। शायद आपके वे पाप, जो आपने सत्ता से चिपके रहने के लिए किए हैं, माफ भी हो जाते।"
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