अधिकांश आईआईटी और आईआईएम में 90% फैकल्टी सामान्य वर्ग से: SC/ST और OBC के लिए जगह कहाँ?

देश के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण नीति की अनदेखी पर AIOBCSA ने दागे तीखे सवाल
कई आईआईएम और आईआईटी में 90% से अधिक फैकल्टी पद सामान्य वर्ग के व्यक्तियों द्वारा भरे गए हैं, जो आरक्षण नीति का स्पष्ट उल्लंघन है।
कई आईआईएम और आईआईटी में 90% से अधिक फैकल्टी पद सामान्य वर्ग के व्यक्तियों द्वारा भरे गए हैं, जो आरक्षण नीति का स्पष्ट उल्लंघन है।Asif Nisar
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नई दिल्ली - भारत के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों में विविधता और समावेशिता की स्थिति बेहद चिंताजनक है। भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के प्रतिनिधित्व की कमी ने आरक्षण नीति के पालन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

हाल ही में, ऑल इंडिया ओबीसी स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AIOBCSA) ने नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें राज्यसभा सांसद पी. विल्सन और एआईओबीसीएसए के राष्ट्रीय अध्यक्ष किरण कुमार गौड़ ने इस विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने खुलासा किया कि कई आईआईएम और आईआईटी में 90% से अधिक फैकल्टी पद सामान्य वर्ग के व्यक्तियों द्वारा भरे गए हैं, जो आरक्षण नीति का स्पष्ट उल्लंघन है।

AIOBCSA ने शिक्षा मंत्रालय से फैकल्टी भर्ती प्रक्रियाओं की स्वतंत्र समीक्षा और आरक्षण नीति का सख्त पालना की मांग की है.
AIOBCSA ने शिक्षा मंत्रालय से फैकल्टी भर्ती प्रक्रियाओं की स्वतंत्र समीक्षा और आरक्षण नीति का सख्त पालना की मांग की है.

चौंकाने वाले आंकड़े: आरक्षण नीति की अनदेखी

AIOBCSA द्वारा सितंबर 2024 में प्राप्त आरटीआई जवाबों में खुलासा हुआ कि आईआईएम इंदौर में 97.2% फैकल्टी सामान्य वर्ग से हैं, जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। आईआईएम उदयपुर और आईआईएम लखनऊ में भी 90% से अधिक फैकल्टी सामान्य वर्ग से हैं।

आईआईटी में भी यही स्थिति है। आईआईटी बॉम्बे और आईआईटी खड़गपुर में 90% से अधिक फैकल्टी सामान्य वर्ग से हैं। आईआईटी मंडी, गांधीनगर, कानपुर, गुवाहाटी और दिल्ली जैसे संस्थानों में भी 80-90% फैकल्टी सामान्य वर्ग से हैं।

कुल मिलाकर, 13 आईआईएम में 82.8% फैकल्टी सामान्य वर्ग से हैं, जबकि एससी 5%, एसटी 1%, और ओबीसी 9.6% हैं। 21 आईआईटी में सामान्य वर्ग का प्रतिनिधित्व 80%, एससी का 6%, एसटी का 1.6%, और ओबीसी का 11.2% है। ये आंकड़े आरक्षण के तहत निर्धारित 27% ओबीसी, 15% एससी, और 7.5% एसटी कोटे से बहुत कम हैं।

इसके अलावा, सैकड़ों आरक्षित पद खाली पड़े हैं। सात आईआईएम में 256 फैकल्टी पद खाली हैं, जिनमें से 88 ओबीसी, 54 एससी और 30 एसटी के लिए आरक्षित हैं। वहीं, 11 आईआईटी में 1,557 पद खाली हैं, जिनमें 415 ओबीसी, 234 एससी और 129 एसटी के लिए आरक्षित हैं।

कई आईआईएम और आईआईटी में 90% से अधिक फैकल्टी पद सामान्य वर्ग के व्यक्तियों द्वारा भरे गए हैं, जो आरक्षण नीति का स्पष्ट उल्लंघन है।
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प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए सांसद पी. विल्सन ने इसे संविधान का खुला उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा, “आरक्षण नीति की यह उपेक्षा केवल एक गलती नहीं है; यह हाशिए पर मौजूद समुदायों को व्यवस्थित रूप से बाहर रखने का प्रयास है। शिक्षा मंत्रालय को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए।”

एआईओबीसीएसए के राष्ट्रीय अध्यक्ष किरण कुमार गौड़ ने कहा कि इस असमानता को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। संगठन ने शिक्षा मंत्रालय से निम्नलिखित मांगें कीं:

  1. फैकल्टी भर्ती प्रक्रियाओं की स्वतंत्र समीक्षा

  2. आरक्षण नीति का सख्त अनुपालन

  3. फैकल्टी रोस्टर को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करना

  4. आरक्षित पदों को जल्द से जल्द भरना

  5. आरक्षण मानदंडों की निगरानी के लिए जवाबदेही तंत्र स्थापित करना

प्रेस कॉन्फ्रेंस में एआईओबीसीएसए के राष्ट्रीय सलाहकार इंजी. अल्ला रामकृष्ण, राष्ट्रीय संयोजक पंकज राजेशेखर कुशवाहा, और राष्ट्रीय सचिव पुष्प राज समेत कई प्रमुख प्रतिनिधि उपस्थित थे।

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आईआईटी पटना और आईआईएम जम्मू जैसे संस्थानों का उदाहरण देते हुए वक्ताओं ने कहा कि आरक्षण नीति का सही कार्यान्वयन संभव है, बशर्ते कि संस्थानों में प्रतिबद्धता हो।

सांसद पी. विल्सन ने कहा, “यदि हमारे प्रमुख संस्थान विविधता और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित नहीं कर सकते, तो हम उन समुदायों को विफल कर रहे हैं जिनके लिए ये नीतियां बनाई गई हैं।”

एआईओबीसीएसए की मांगें यह स्पष्ट करती हैं कि अब केवल दिखावे के कदम पर्याप्त नहीं होंगे। भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों को अपनी प्रणालीगत खामियों को दूर कर आरक्षण नीति को पूरी तरह से लागू करना होगा ताकि ये संस्थान वास्तव में राष्ट्र की विविधता का प्रतिनिधित्व कर सकें।

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