नई दिल्ली: मिशन सेव कॉन्स्टिटूशन (MSC) के राष्ट्रीय कन्वीनर, अम्बेडकरवादी लॉयर और सामाजिक कार्यकर्ता महमूद प्राचा ने अयोध्या के बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को लेकर ऐसे गंभीर और चौंकाने वाले आरोप लगाए हैं जो न्यायपालिका की मूलभूत प्रक्रियाओं और साख पर ही सवाल खड़े करते हैं।
GM न्यूज़ नेटवर्क के साथ एक विस्तृत बातचीत में प्राचा ने दावा किया कि 2019 का वह फैसला, जिसने राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ किया था, वास्तव में उस पांच सदस्यीय संविधान पीठ के जजों ने नहीं लिखा था जिसने उसे सुनाया था, बल्कि यह एक "बाहरी ताकत" द्वारा लिखा गया था। उन्होंने तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ समेत अन्य जजों पर कठोर प्रहार करते हुए न्यायिक प्रक्रिया से लेकर नैतिकता तक गंभीर सवाल उठाए हैं।
उन्होंने इसकी वैधता पर ही सवाल खड़े करते हुए कहा कि इसीलिए उन्होंने यह जजमेंट रद्द करने की मांग को लेकर पटियाला हाउस कोर्ट में एक सिविल सूट दायर किया हुआ है।
प्राचा ने फैसले की आंतरिक विसंगतियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि जजमेंट स्वयं इस बात को स्वीकार करती है कि बाबरी मस्जिद के पक्षकारों ने मुकदमा ठीक से नहीं लड़ा। उनके शब्दों में, "जजमेंट ये थी कि एक तो जो बाबरी मस्जिद का पक्ष था उन्होंने केस ठीक से नहीं लिखा। पढ़ा-लड़ा। जानबूझ के हारने के लिए केस लड़ा। ये जजमेंट के अंदर ही साफ-साफ लिखा हुआ नजर आ जाएगा।"
लेकिन उनका सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन परिस्थितियों के बावजूद, जब हिंदू पक्ष कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाया कि मस्जिद एक मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी, तो फैसला उनके पक्ष में क्यों गया? वह पूछते हैं, "लेकिन फिर भी हिंदू पक्ष कोई भी सबूत नहीं दे पाया कि कोई मंदिर तोड़ के मस्जिद वहां बनाई गई थी। लेकिन फिर भी दे दो इन्हें... अगर कोई उनका हक ही नहीं था तो पांच एकड़ जमीन क्यों दे रहे हैं? मतलब ये तो बांट रहे हैं। हम तो मालिक हैं भाई। पांच एकड़ जगह दे देंगे। क्यों दी?" प्राचा के लिए, यही इस पूरे फैसले का सार है।
इस पूरे मामले का सबसे विस्फोटक पहलू प्राचा द्वारा जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ पर लगाया गया आरोप है। प्राचा ने दावा किया कि चंद्रचूड़ ने महाराष्ट्र में एक भाषण दिया था, जहां उन्होंने इस फैसले का राज खोल दिया था।
प्राचा के अनुसार, "चंद्रचूड साहब ने महाराष्ट्र में एक भाषण दिया । वहां उन्होंने राज खोला कि यह जजमेंट किसी जज ने नहीं लिखी थी। मैं बैठा था जो मूर्ति है उसके सामने, भगवान के सामने अपने और वहां से मुझे जजमेंट का निर्देश मिला और वो जजमेंट है।"
यह बयान यदि सही है, तो यह न केवल इस विशेष फैसले की वैधता को प्रश्नित करता है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया के मूल सिद्धांतों पर ही चोट करता है। प्राचा ने इसी आधार पर एक सिविल सूट दायर किया है। वह कहते हैं, "तो चंद्रचूड साहब ने खुद माना है। उन्होंने जजमेंट नहीं लिखी। इसकी बुनियाद पे मैंने एक सिविल सूट भी डाल रखा है के जो बाबरी मस्जिद की जजमेंट है वो बाहर की किसी ताकत की लिखी हुई है। जजों ने नहीं लिखी है संविधान के अनुरूप। ये केस पेंडिंग है अभी भी पटियाला हाउस में।"
प्राचा ने जस्टिस चंद्रचूड़ की बुद्धिमत्ता और योग्यता पर सीधा हमला बोलते हुए अत्यंत कठोर टिप्पणी की। "मैं इनको यह कह रहा हूं चंद्रचूड़ साहब अगर जज ना होते, इनको चपरासी की नौकरी ना मिलती कहीं जितनी इनकी समझ है," उन्होंने कहा।
उन्होंने न्यायपालिका में पारिवारिक वर्चस्व का आरोप लगाते हुए कहा, "ये तो सीजीआई रहे हैं। जज हैं। अब सीजीआई हैं तो इनके पिताजी भी सीजेआई थे। और इनके सुपुत्र भी जज बनेंगे। अब पूरी ताकत लगाई इन्होंने।" प्राचा ने दावा किया कि मुंबई के बॉम्बे हाईकोर्ट के जजों ने उन्हें बताया कि चंद्रचूड़ के बेटे वहां प्रैक्टिस करते हैं और जब चंद्रचूड़ चीफ जस्टिस थे तो उनके बेटे के लिए रास्ता आसान बनाया गया। उन्होंने व्यंग्य कसा, "अब इनका बेटा भी चीफ जस्टिस बनेगा अगर बन जाता है अभी जज तो।"
प्राचा ने फैसले के बाद जजों को मिले कथित 'पुरस्कारों' की एक लिस्ट पेश की। उन्होंने कहा, "जजमेंट लिखने के बाद पार्टी तो भले ही जजों ने की हो... और बहुत सारी विचित्र-विचित्र प्रकार की चीजों का... प्रयोग किया हो जैसे नज़र साहब गवर्नर बन गए, राज्यसभा मिल गई गोगोई साहब को, चंद्रचूड़ साहब तो है ही महान उनको घर भी मिला हुआ है और एक और घर मिल गया, गाड़ियों के नंबर भी मिल गए, सब मिल गया।"
प्राचा का आरोप है कि इस फैसले को देने के बाद जस्टिस एस. ए. नज़र गवर्नर बनाए गए, जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा का सदस्य बनाया गया और जस्टिस चंद्रचूड़ को आवंटन जैसे लाभ मिले।
प्राचा ने देश की न्यायपालिका में साफ तौर पर दो गुटों का जिक्र किया। उन्होंने कहा, "इस देश में दो प्रकार की कैटेगरीज हैं जजों की। एक है चंद्रचूड़ साहब और उनका ग्रुप, एक है जज लोया साहब और उनके जैसे लोग।"
उनके मुताबिक, "चंद्रचूड़ साहब जज लोया साहब के एकदम विपरीत प्रकार के जजेस की एक पूरी ग्रुप है बड़ी सी, जिसमें यशवंत वर्मा साहब भी एक बड़े मुखर उनके मेंबर हैं।" प्राचा ने जस्टिस यशवंत वर्मा पर नकदी मामले में आरोपों का हवाला देते हुए कहा कि सरकार पूरी ताकत से उन्हें बचा रही है, और जो भी जज उनकी मदद कर रहा है, वह 'चंद्रचूड़ लॉबी' का हिस्सा है, जबकि जो उनके खिलाफ हैं वो 'जज लोया की कैटेगरी' में आते हैं।
प्राचा ने अपनी आलोचना को एक व्यापक संदर्भ में रखते हुए आज की न्यायपालिका की एक बड़ी समस्या की ओर इशारा किया। उन्होंने दावा किया कि अब कई जज अपने फैसले खुद नहीं लिखते, बल्कि यह काम उनके लॉ रिसर्चर्स करते हैं।
उन्होंने बताया, "अभी लॉ रिसर्चरर्स रख लिए सबने। जो एक--दो साल के वकील होते हैं... अब आप मुझे ये बताओ के जजमेंट में किस प्रकार की रिसर्च करनी है। कोई जज अगर रिसर्चर को बताता है, इसका मतलब अपनी वो किस तरफ का, क्या उसके दिमाग में चल रहा है वो उसको बताता है ना? दो साल के बच्चे को... अपना माइंड दिया ना उसे? इस प्रकार की जजमेंट्स आ रही हैं।"
उन्होंने कहा कि इन रिसर्चर्स को 80-80,000 रुपए महीने दिए जाते हैं और उनसे दिन-रात काम कराया जाता है। "जब काम इतनी ज्यादा वो कर रहे हैं... तो जजेस क्या करते होंगे, इससे ज्यादा मैं कुछ बोलना नहीं चाहता.."। प्राचा के मुताबिक इसी वजह से कई बार जजों को अपने ही फैसलों की जानकारी नहीं होती और मीडिया में बयान देकर वे फंस जाते हैं, जैसा कि चंद्रचूड़ के साथ हुआ।
महमूद प्राचा के इन गंभीर आरोपों और खुलासों से बाबरी मस्जिद मामले का वह फैसला, जिसे देश का अंतिम निर्णय माना जा रहा था, एक बार फिर विवादों के केंद्र में आ गया है। उनका यह कहना कि फैसला जजों ने नहीं लिखा और चंद्रचूड़ द्वारा 'मूर्ति के सामने निर्देश' मिलने की बात कही जाना, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गहरा प्रहार है।
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