
नई दिल्ली/देहरादून: "हम भारतीय हैं, इसे साबित करने के लिए हमें कौन सा सर्टिफिकेट दिखाना होगा?" यह आखिरी शब्द थे त्रिपुरा के 24 वर्षीय एमबीए छात्र एंजेल चकमा के, जिसे देश की राजधानी से कुछ ही घंटों की दूरी पर स्थित देहरादून में कथित तौर पर सिर्फ इसलिए मार दिया गया क्योंकि वह 'अलग' दिखता था.
उत्तराखंड के देहरादून में हुई इस नृशंस हत्या ने एक बार फिर भारत के 'मेनलैंड' में पूर्वोत्तर (North East) के लोगों के खिलाफ गहरी जड़ें जमा चुकी नस्लीय नफरत (Racial Hate) को उजागर कर दिया है. 9 दिसंबर को हुए हमले के बाद जिंदगी और मौत से जूझते हुए 26 दिसंबर को एंजेल ने दम तोड़ दिया, लेकिन अपने पीछे वह देश की व्यवस्था और समाज के लिए कई चुभते हुए सवाल छोड़ गया है.
घटना 9 दिसंबर की शाम की है. देहरादून के प्रेमनगर थाना क्षेत्र में एंजेल चकमा अपने भाई के साथ खरीदारी करने निकले थे. वहां कुछ स्थानीय युवकों ने उन्हें घेर लिया. पुलिस रिपोर्ट्स और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, उनकी शारीरिक बनावट को लेकर उन पर नस्लीय टिप्पणियां (Racial Slurs) की गईं. उन्हें "चीनी" और "मोमो" जैसे अपमानजनक नामों से बुलाया गया.
जब एंजेल ने इसका विरोध किया और कहा कि वे भी भारतीय हैं, तो भीड़ ने उन पर हमला कर दिया. उन्हें चाकू मारा गया और मरने के लिए सड़क पर छोड़ दिया गया.
इस घटना ने पूर्वोत्तर भारत के समुदायों को झकझोर कर रख दिया है. इस बर्बरता पर मणिपुर की एक ट्राइबल महिला, एम. जोटे हमार (M. Joute Hmar) ने द मूकनायक को बताया, "जब चीन अरुणाचल पर दावा करता है, तो आप राष्ट्रवाद का शोर मचाते हैं. जब कोई अरुणाचली लड़की चीनी धरती पर खुद को भारतीय कहती है, तो आप ताली बजाते हैं और गर्व करते हैं. लेकिन जब पूर्वोत्तर का एक लड़का भारतीय धरती पर कहता है 'मैं भारतीय हूं', तो आप उसकी लिंचिंग कर देते हैं. उसे पीटते हैं, काटते हैं और मरने के लिए छोड़ देते हैं."
उसने द मूकनायक को आगे बताया, "वह (एंजेल चकमा) एक भारतीय सेना के जवान का बेटा था - किसी ऐसे व्यक्ति का जिसने वास्तव में इस देश की सेवा की. आपने भारत के लिए क्या किया है, सिवाय उसके बच्चों को मारने के? आपकी देशभक्ति चयनात्मक (Selective) है. आपका राष्ट्रवाद कायर है. सीमाओं पर शोर मचाने वाला, लेकिन घर में हत्यारा. पूर्वोत्तर के लोगों को अपनी ही जमीन पर कब तक विदेशी समझा जाएगा? आपके नस्लीय उन्माद (Racist Paranoia) के लिए और कितनी जानों की बलि दी जाएगी? हमारे प्रधान मंत्री माननीय 'मौन' बने हुए हैं, जो केवल वोटों के लिए ही शोर मचाते हैं."
इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण याचिका दायर की गई है. वकील अनूप प्रकाश अवस्थी ने शीर्ष अदालत से गुहार लगाई है कि 'नस्लीय टिप्पणी' (Racial Slur) को 'हेट क्राइम' (Hate Crime) की एक अलग श्रेणी के रूप में मान्यता दी जाए.
याचिकाकर्ता का कहना है कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) सहित नए आपराधिक कानूनों में पूर्वोत्तर के नागरिकों के खिलाफ नस्लीय हिंसा के मुद्दे को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया गया है. याचिका में 2014 में दिल्ली में अरुणाचल के छात्र निडो तानियाम की हत्या का भी जिक्र किया गया है, यह बताते हुए कि यह कोई "अकेली घटना" नहीं है, बल्कि एक लंबे समय से चली आ रही नफरत का परिणाम है.
याचिका में मांग की गई है:
नस्लीय अपराधों से निपटने के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर एक नोडल एजेंसी या आयोग का गठन हो.
मेट्रो शहरों और जिलों में विशेष पुलिस यूनिट बनाई जाए.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घटना पर दुख जताते हुए एंजेल के पिता तरुण प्रसाद चकमा को न्याय का भरोसा दिलाया है. पुलिस ने अब तक 5 आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जबकि एक नेपाल मूल का आरोपी फरार है, जिस पर इनाम घोषित किया गया है.
वहीं, इस मुद्दे पर राजनीति भी गरमा गई है. कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने सोशल मीडिया पर तीखा हमला बोलते हुए आरएसएस (RSS) और उसकी विचारधारा को कटघरे में खड़ा किया है. उन्होंने कहा, "यह सामान्य हो चुकी नफरत (Normalised Hate) का परिणाम है. जब संगठन अल्पसंख्यकों और पूर्वोत्तर के लोगों के खिलाफ रोजाना नफरत फैलाते हैं, तो उसका नतीजा सड़कों पर ऐसी हिंसा के रूप में दिखता है."
त्रिपुरा में भी इस घटना को लेकर भारी आक्रोश है. टिपरा मोथा पार्टी की छात्र शाखा (TISF) ने अगरतला में कैंडल मार्च निकालकर न्याय की मांग की है.
एंजेल चकमा एक सैन्य परिवार से आते थे. उनके पिता ने देश की सुरक्षा की, लेकिन देश की भीड़ उनके बेटे की सुरक्षा नहीं कर सकी. यह घटना सिर्फ कानून-व्यवस्था का मसला नहीं है, बल्कि उस मानसिकता का है जो अपनी ही सीमाओं के भीतर अपने ही लोगों को 'विदेशी' मानती है.
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