विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन से निकलकर मेन कैंपस (आर्ट फैकल्टी) की तरफ जाती सड़क के दोनों तरफ की दीवारें और बड़े-बड़े पोस्टर बता रहे थे कि विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव का प्रचार जोरों पर है। आर्ट फैकल्टी के गेट नंबर चार के दोनों तरफ धरना चल रहा था और पैरामिलिट्री की तैनाती की गई थी। देश की नामी यूनिवर्सिटी की ऐसी तस्वीर अब आम हो चली है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलत राम कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग में एडहॉक शिक्षक रही डॉ. ऋतु सिंह पिछले पांच दिन से धरना पर बैठी हैं। वे दौलत राम की प्रिंसिपल डॉ. सविता रॉय की बर्खास्तगी की मांग कर रही हैं।
डॉ. ऋतु सिंह एक दलित शिक्षक हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट से पीएचडी पूरी करने के एक महीने बाद ही दौलत राम कॉलेज में एससी कैटेगरी में एडहॉक की वैकेंसी निकली जिसमें उन्होंने आवेदन किया और जॉइनिंग होने पर वे असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाने लगीं। अगस्त 2019 से अगस्त 2020 तक उन्होंने कॉलेज में पढ़ाया। लेकिन 2020 में उन्हें कॉलेज से हटा दिया गया। ऋतु सिंह का आरोप है कि उन्हें जातिगत आधार पर हटाया गया और एक साल (2019 से 2020) जब उन्होंने कॉलेज में पढ़ाया था उस दौरान भी कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. सविता रॉय ने उनके साथ जातिगत भेदभाव किया। हटाए जाने के विरोध में ऋतु सिंह ने उस वक़्त कॉलेज के बाहर धरना दिया जो दस दिन से ज़्यादा चला। लेकिन कोविड गाइडलाइन की वजह से उन्हें धरने से उठना पड़ा। तब से वे लगातार क़ानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। और अब एक बार फिर प्रिंसिपल सविता रॉय की बर्खास्तगी की मांग को लेकर धरने पर बैठी हैं।
डॉ. ऋतु सिंह ख़ुद ही बताती हैं कि ” मैं परेशान हो कर कॉलेज के बाहर प्रोटेस्ट पर बैठ गई, मेरे पास कोई चारा नहीं बचा था, कोई कितना सहेगा, पहले से ही ”संस्थानिक हत्याएं” हो रही थीं। रोहित वेमुला, पायल तड़वी जैसे केस हुए थे। मुझे समझ नहीं ही नहीं आ रहा था कि ये सब मेरे साथ कैसे हो रहा है। मैंने डूटा (Delhi University Teacher Association) से गुज़ारिश की कि मेरा साथ दो। मेरे साथ ग़लत व्यवहार हो रहा है। ग़लत तरीके से मुझे निकाला गया है। ये गैर कानूनी (illegal termination) था। जबकि उस वक़्त (कोविड चल रहा था) MHRD (Ministry of Human Resource Development) की गाइडलाइन्स थी कि एडहॉक टीचर या कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर अगर कोई है तो उसे हटा नहीं सकते, रिप्लेस नहीं कर सकते, किसी की सैलरी नहीं रोक सकते।”
ऋतु आगे बताती हैं कि जब ये मामला कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट की तरफ से प्रिंसिपल से सख्त सवाल पूछे गए। लेकिन इसी दौरान प्रिंसिपल की तरफ से कोर्ट में एक चिट्टी पेश की गई जिसमें कहा गया कि डॉ. ऋतु सिंह से छात्र नाखुश हैं। वे क्लास में भाषाणबाज़ी करती हैं। ये मामला हाईकोर्ट के साथ ही एससी कमीशन में भी गया। प्रिंसिपल की तरफ से एससी कमीशन में भी 35 बच्चों के द्वारा साइन किया एक पत्र पेश कर कहा गया कि छात्र खुश नहीं है। जबकि बाद में जांच में पता चला कि जिन 35 बच्चों के साइन वाला पत्र पेश किया गया था उन 35 छात्रों को डॉ ऋतु सिंह ने कभी पढ़ाया ही नहीं था। ऋतु कहती हैं कि ”जांच अधिकारी ने जांच की तो पता चलता है कि वे 35 छात्र मेरे पढ़ाए हुए तो छोड़िए पूरे कॉलेज में नहीं मिले, और फिर इस मामला में चार्जशीट होती हुई।
मामला अब तक
ये केस एससी कमीशन पहुंचा
कई गंभीर धाराओं के साथ मामला दर्ज हो चुका है
चार्जशीट भी दायर की जा चुकी है. लेकिन प्रिंसिपल पर कार्रवाई तो दूर उल्टा इस बीच डॉ. सविता रॉय प्रिंसिपल एसोसिएशन की जनरल सेक्रेटरी बन जाती हैं।
वहीं डॉ. ऋतु सिंह 2020 से कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगा रही हैं। वे बताती हैं कि ” मैं बस इंसाफ के लिए भाग रही हूं। मुझे एससी, एसटी एक्ट में मुकदमा दर्ज करवाने में एक साल लग गया। इतना आसान नहीं होता हमारे लिए इंसाफ मिलना। मुझे ग़ैर कानूनी तरीके से निकाल दिया गया (illegal termination)। मेरे साथ जातिगत व्यवहार किया गया। मुझे तंग किया गया। आपत्तिजनक शब्द कहे गए। मेरी FIR दर्ज नहीं की गई। वहीं मैंने वीसी को लिखा, यूनिवर्सिटी को लिखा कि मुझे न्याय दो। पर मेरी कोई सुनवाई नहीं हुई। दलितों की कहीं नहीं सुनी जाती। इसलिए मैंने ठान लिया जो हो सो हो।”
लगातार कानूनी लड़ाई लड़ रही ऋतु सिंह के मुताबिक उन्हें बस तारीख़ पर तारीख़ मिल रही है। ना तो प्रिंसिपल को गिरफ़्तार किया गया, ना ही उन्हें पद से हटाया गया। इसलिए अब वो प्रिंसिपल सविता रॉय को सस्पेंड करवाने की मांग के साथ एक बार फिर धरने पर हैं।
वे कहती हैं कि मैं यहीं (DU) से पढ़ी हूं। इसी आर्ट फैकल्टी के सामने दौलत राम कॉलेज है जहां से मुझे निकाल दिया गया। मेरे पास क्या जगह बची, मैं कहां जाऊं। इसलिए मैं सड़क पर बैठी हूं न्याय के लिए।” मैंने अपने समाज से कहा है कि मुझे न्याय चाहिए। मैंने अपने समाज से एक ही गुहार लगाई अगर आप रोहित, पायल के साथ मेरी तस्वीर नहीं देखना चाहते तो मेरा साथ दें। क्या यूनिवर्सिटी को दिखाई नहीं दे रहा। क्या प्रशासन को नहीं दिख रहा? सारे नियम क्या दलितों के लिए हैं? न आप पढ़ सकते हो, न सोसाइटी में बैठ सकते हो। एक तो भारत में औरत होना ही सामाजिक स्तर पर दोयम दर्जे का नागरिक होना है। दूसरा अगर औरत दलित समाज से आती है तो उसे जीने का अधिकार नहीं है। पढ़ने का अधिकार नहीं है। और जब पढ़-लिख जाती है, आवाज़ उठाती है तो उसका ऐसा हाल होता है।’’
डॉ. ऋतु सिंह के धरने के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने पर कुछ बुजुर्ग महिलाएं उनके समर्थन में धरना स्थल पहुंची थीं। हमने उन में से कुछ से बात की। नाहरपुर से आईं बुजुर्ग दयावती कहती हैं कि वो ”ऋतु बेटी को न्याय दिलाने की लड़ाई में साथ देने के लिए आई हैं।” हमारी बेटी सड़क पर बैठी है। हमें शर्म आती है इसलिए हम उसका साथ देने के लिए आए ताकि उसे जल्द से जल्द इंसाफ मिले। हमारे बच्चों के साथ ऐसे करेंगे तो वो कैसे आगे बढ़ पाएंगे।”
इस धरने को समर्थन देने पहुंची एक सामाजिक कार्यकर्ता सोनू ने कहा कि ” दलित औरतें तो हर जगह प्रताड़ित होती हैं। कहीं खेत में, कहीं कुएं पर पानी भरते हुए, कहीं उनकी बच्चियां स्कूलों में। उनकी आवाज़ तो यहां तक पहुंच भी नहीं पाती। कौन उठाएगा, जब प्रोफेसर जैसी, डॉक्टर जैसी लड़कियों के साथ ऐसा हो रहा है तो गांव-देहात की बच्चियों की बात कौन करता होगा। हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। हम चांद पर पहुंच गए लेकिन हमारी चांद जैसी बेटियां प्रताड़ित हो रही हैं।’’
श्याम बाबू भी ऋतु सिंह के धरने को समर्थन देने के लिए उनके साथ पिछले पांच दिन से धरने पर बैठे हैं। उन्होंने कहा कि ” जब तक न्याय नहीं मिल जाएगा ये धरना जारी रहेगा” वे आगे कहते हैं कि ”जैसा कि हम लगातार देख रहे हैं कि बहुजन समाज पर इतना अत्याचार हो रहा है। जगह-जगह उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। हमें मिलकर मनुवादियों को जवाब देना होगा।’’
हमने देखा कि डॉ. ऋतु के समर्थन में लोग आ रहे थे। अपनी बात रख रहे थे। लेकिन इस धरने का क्या असर होगा ये तो वक़्त ही बताएगा। यहां बहुत ही हैरानी की बात है कि जिस प्रिंसिपल पर मामला दर्ज हो गया है। चार्जशीट दायर हो चुकी है। उसपर कोई कार्रवाई कैसे नहीं हुई। हमने ये समझने के लिए ऋतु सिंह की लीगल टीम के सीनियर वकील महमूद प्राचा से बात की। उन्होंने कहा कि, ”ऋतु के केस में तो FIR ही बहुत मुश्किल से हुई थी। पुलिस जो जांच कर रही है वो दबाव में कर रही है। कोर्ट ने जांच अधिकारी के बारे में बहुत ही सख्त टिप्पणी की है। इसमें अब तक दो IO (Investigation officer) बदल चुके हैं। एक तो कोर्ट के आदेश पर ही बदले गए हैं और जो तीसरी हैं वो भी आरोपी को बचाने की कोशिश कर रही हैं। प्रिंसिपल के खिलाफ, रजिस्ट्रार के खिलाफ और पांच-छह प्रोफेसर के खिलाफ आरोप हैं, जिन्होंने मिलकर 35 छात्र जिनका कोई वजूद नहीं हैं ये बता कर कि इन छात्रों ने शिकायत की है कि ये अच्छा नहीं पढ़ाती हैं; जांच में ये पाया गया कि वो 35 बच्चे कभी दौलत राम कॉलेज के छात्र थे ही नहीं, जिनके नाम लिखे हुए हैं।”
ऋतु को SC, ST एक्ट के तहत मामला दर्ज करवाने में लंबा समय लग गया। प्राचा बताते हैं कि ये भी एक बड़ा उल्लंघन है जबकि मौखिक शिकायत पर भी तुरंत कार्रवाई शुरू कर देनी चाहिए थी।
ऋतु सिंह की इस लड़ाई में भले ही उन्हें लोगों का समर्थन मिल रहा है लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी के SC और ST समुदाय से आने वाले टीचर बहुत कम दिखे जिस पर प्राचा करते हैं कि ”कोई हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है, क्योंकि ऐसा माहौल बना दिया गया है।’’
दौलत राम कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. सविता रॉय पर लग रहे इन आरोपों पर उनका क्या कहना है ये जानने के लिए हमने उनसे सम्पर्क करने की कोशिश की लेकिन ख़बर लिखने तक हम उन तक नहीं पहुंच पाए।
सौजन्य : News click | समाचार मूलरूप से में newsclick.in प्रकाशित हुआ है ! मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता व जागरूकता के उद्देश्य से प्रकाशित !
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