मणिपुर हिंसा ग्राउंड रिपोर्ट: आदिवासियों को 'बाहरी' बताने का नैरेटिव और पहाड़ी में बसे लोगों का सच

पहाड़ी में बसे ट्राइबल बाहुल्य चुराचांदपुर जिला प्रदेश में जातीय हिंसा के बाद सबसे संवेदनशील और चर्चा वाली जगह के रूप में उभरा है. हिंसा के बाद दो भागों में बंट चुके मणिपुर में चुराचांदपुर को संदेह की नज़रों से देखा जाने लगा है. यहां के ट्राइबल्स को बाहरी बताने का चलन शुरू हो गया है. द मूकनायक की पड़ताल यह बताती है कि चुराचांदपुर के सभी ट्राइबल कुकी नहीं हैं, कई ट्राइबल परिवार यहां देश की आज़ादी के पहले से रह रहे हैं.
आदिवासियों को 'अवैध अप्रवासी' बताने के नैरेटिव को चैलेन्ज करता चुराचांदपुर की पहाड़ी में, 1911 में बसा आदिवासियों का यह मोलवाईफे गांव (Muolvaiphei Village)
आदिवासियों को 'अवैध अप्रवासी' बताने के नैरेटिव को चैलेन्ज करता चुराचांदपुर की पहाड़ी में, 1911 में बसा आदिवासियों का यह मोलवाईफे गांव (Muolvaiphei Village)फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

चुराचांदपुर। मई में, पूर्वी भारत के राज्य मणिपुर में जातीय हिंसा की घटना के बाद घाटी के मैतेई खुलकर बोलने लगे कि पहाड़ी के कुकी समुदाय के लोग बाहरी (किसी अन्य देश के) हैं, सरकार इन्हें वापस भेजे। लेकिन जब द मूकनायक की टीम कुकी समुदाय बाहुल्य पहाड़ी में स्थित चुराचांदपुर जिले में पहुंची तो कई अतार्किक और मनगढंत बातों से परत दर परत पर्दा उठने लगा. 

पहाड़ी में बसे मोलवाईफे गांव (Muolvaiphei Village) के मुख्य सड़क के किनारे स्थापित किये गए पत्थर आने-जाने वाले लोगों को एक झलक में यह समझाने के लिए काफी थे कि यह गांव अपने आप में पहाड़ी के कई इतिहास समेटे हुए है. वैसे तो हम आगे किसी अनजान रिलीफ कैम्प की खोज में निकले थे लेकिन सड़क के किनारे लगे तीन पत्थरों ने द मूकनायक टीम का ध्यान आकर्षित कर लिया, और हम रुककर इसके पड़ताल में लग गए. 

मोलवाईफे गांव (Muolvaiphei Village) के बाहर स्थापित ये शिलाएं अनजान राहगीरों को आकर्षित  कर लेती हैं.
मोलवाईफे गांव (Muolvaiphei Village) के बाहर स्थापित ये शिलाएं अनजान राहगीरों को आकर्षित कर लेती हैं. फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

मोलवाईफे गांव (Muolvaiphei Village) में वर्तमान में लगभग 800 से ज्यादा घर हैं. गांव की कुल आबादी 2300 से भी अधिक है, जिसमें सबसे ज्यादा क्रिश्चियन हैं जो जनजातीय समुदाय के अंतर्गत आते हैं. गांव में अधिकांश मिजो (Mizo) और हमर (Hmar) जनजाति के लोग हैं. इसके अलावा, बहुत कम लेकिन हिन्दू घर भी हैं जो नेपाल और भारत के अन्य राज्यों से आकर यहां बस गए हैं. 

83 वर्षीय ललजारलिन दरंगवन (Lalzarlien Darngawn) मोलवाईफे गांव (Muolvaiphei Village) के दूसरे मुखिया हैं. इससे पहले उनके पिता स्वर्गीय लेखंम (Lienkhum) गांव के पहले मुखिया थे.

ललजारलिन ने बताया कि, उनके पिता 1911 में यहां आए तब इस पहाड़ी पर एक-दो लोगों का घर था. “मेरे पिता ने इस गांव को बसाया। उन्होंने पहली बार यहां धान की खेती की. तब से हम लोग यहीं रह रहे हैं,” ललजारलिन दरंगवन ने द मूकनायक को बताया।

ललजारलिन दरंगवन (Lalzarlien Darngawn) मोलवाईफे गांव के दूसरे विलेज चीफ हैं.
ललजारलिन दरंगवन (Lalzarlien Darngawn) मोलवाईफे गांव के दूसरे विलेज चीफ हैं. फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

ट्राइबल बाहुल्य क्षेत्र चुराचांदपुर आने से पहले द मूकनायक टीम ने मणिपुर के कई मैतेई बाहुल्य क्षेत्रों में स्थित राहत शिविरों की पड़ताल की थी जहां मैतेई लोगों में कुकी लोगों के खिलाफ गुस्सा दिखाई दिया। कुछ ने यहां के कुकी लोगों को बाहरी, वर्मा, म्यांमार से आने वाले लोग बताया। इस बात की स्पष्टता के लिए हमने ललजारलिन दरंगवन से पूछा कि इसमें कितनी सच्चाई है कि आप लोगों को बाहरी कहा जा रहा है? उन्होंने बड़ी ही विनम्रता से जवाब में कहा, “पूरी तरह गलत”.

उम्र के कई अनुभवों को देख चुके 83 वर्षीय ललजारलिन हमारे इस सवाल से थोड़ा आहत भी दिखे। जबकि उनका परिवार देश की आज़ादी से पहले ही यहां आकर बस चुका था. हमारी बात आगे बढ़ती उससे पहले उन्होंने द मूकनायक टीम से कहा, “आप लोग बैठिए मैं कुछ दिखाना चाहता हूँ”. कुछ देर इन्तजार के बाद जब वह अपने घर के एक कमरे से बाहर आए तो उनके हाथ में एक बड़े पन्नों वाली एलबम डायरी और कुछ दस्तावेज थे. एक क्षण ऐसा लगा कि न चाहते हुए भी अरसे बाद वह हमें ऐसा कुछ दिखाना चाह रहे हैं जिसे शायद वह वर्षों से किसी से साझा नहीं किये थे. 

गांव के दूसरे विलेज चीफ की डायरी से, ललजारलिन दरंगवन तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को, दिल्ली में शाल भेंट करते हुए.
गांव के दूसरे विलेज चीफ की डायरी से, ललजारलिन दरंगवन तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को, दिल्ली में शाल भेंट करते हुए. फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

एलबम की डायरी के शुरुआती पन्ने पलटते ही हम चौंक गए. एलबम में लगी एक फोटो तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को ललजारलिन द्वारा शॉल भेंट करते हुए की थी. उसके बाद ललजारलिन एलबम की एक के बाद एक तस्वीरों के साथ अपने अतीत के उन ऐतिहासिक पलों को दिखाने लगे जो सामान्य नहीं थे. एलबम की एक फोटो में ललजारलिन की तस्वीर उस समय की है जब वह 1978 में गणतंत्र दिवस पर ट्राइबल चीफ डेलीगेशन में प्रेजेंटेशन के लिए भी शामिल हुए थे. 

ललजारलिन दरंगवन 1978 में गणतंत्र दिवस पर ट्राइबल चीफ डेलीगेशन में प्रेजेंटेशन के लिए भी शामिल हुए थे. उस दौरान की तस्वीर दिखाते हुए।
ललजारलिन दरंगवन 1978 में गणतंत्र दिवस पर ट्राइबल चीफ डेलीगेशन में प्रेजेंटेशन के लिए भी शामिल हुए थे. उस दौरान की तस्वीर दिखाते हुए। फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

ललजारलिन ने द मूकनायक को 16 अगस्त 1956 में मणिपुर सरकार द्वारा प्रकाशित ‘मणिपुर गजट’ (Manipur Gazette) में मोलवाईफे को गांव का दर्जा प्राप्त होने का अभिलेख भी साझा किया। मणिपुर गजट में प्रकाशित गांवों के क्रम संख्या 131 पर मोलवाईफे को भी सूचीबद्ध किया गया है. जो यह साबित करता है कि एक गांव के लिए जो भी सरकारी मानक होने चाहिए वह मानक मोलवाईफे गांव ने 1956 में ही पूरा कर लिया था. जबकि गांव इससे पहले ही बस चुका था.

16 अगस्त, 1956 को मणिपुर गजट में प्रकाशित मोलवाईफे गाँव ने सरकारी अभिलेखों में गांव का दर्जा प्राप्त किया.
16 अगस्त, 1956 को मणिपुर गजट में प्रकाशित मोलवाईफे गाँव ने सरकारी अभिलेखों में गांव का दर्जा प्राप्त किया. फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

हालांकि, प्रदेश में हिंसा की घटनाओं के बाद पहाड़ी के समूचे ट्राइबल रहवासियों को अवैध प्रवासी बताने में मैतेई अभी भी पीछे नहीं हट रहे हैं.

ललजारलिन दरंगवन ने द मूकनायक को वह ऑर्डर की कॉपी भी साझा की जब उन्हें 11 जनवरी 2013 को चुराचांदपुर के डिप्टी कमिश्नर जंसिता लाजरस (Lacintha Lazarus) के आदेश पर मोलवाईफे गांव (Muolvaiphei Village) का चीफशिप उनके पिता की जगह ललजारलिन दरंगवन को ट्रांसफर करने का आदेश दिया गया था.

2013 को चुराचांदपुर के डिप्टी कमिश्नर जंसिता लाजरस द्वारा मोलवाईफे गांव का चीफशिप पिता से ट्रांसफर करके ललजारलिन दरंगवन को देने की आदेश कॉपी.
2013 को चुराचांदपुर के डिप्टी कमिश्नर जंसिता लाजरस द्वारा मोलवाईफे गांव का चीफशिप पिता से ट्रांसफर करके ललजारलिन दरंगवन को देने की आदेश कॉपी. फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

राजधानी इम्फाल से लगभग 45 किमी दूर मोयरॉग (Moirang) क्षेत्र में मैतेई समुदाय के खोयोल केथल कैम्प (Khoyol Keithel Camp) में रहने वाले IRB से रिटायर्ड रघु सिंह (66) जो एक आंतरिक रूप से विस्थापित के रूप में रह रहे हैं, द मूकनायक कोबताते हैं कि “कुकी लोग म्यांमार से आए हैं. कोई कुकी मणिपुरी नहीं है. वह जमीन पर अधिकार करने के लिए मारपीट कर रहे हैं. आप लोग जाकर आदरणीय प्रधानमंत्री जी से निवेदन कर दीजिए कि उन लोगों को भगा दो”, रघु सिंह को लगता है कि सभी कुकी बाहर से आए हुए हैं. 

जबकि, यहां यह उल्लेखनीय है कि हिंसा में कुकी और मैतेई दोनों पक्षों से सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है. हजारों लोग अपने घरों को छोड़कर विस्थापित हो चुके हैं. ऐसे में दोनों ओर से लोगों को लगता है कि सामने वाले पक्ष ने गलत किया है. 

नाम न प्रकाशित करने के आग्रह पर चुराचांदपुर जिले की एक सामाजिक संस्था की महिला चेयरपर्सन बताती हैं कि “देश की आज़ादी से पहले मोलवाईफे गांव बसा था. अवैध अप्रवासी बताकर यहां की सरकार ने कभी इस जगह का विकास नहीं किया। सभी अच्छे कॉलेज, संस्थाएं इम्फाल में स्थापित किये गए, लेकिन यहां कुछ भी नहीं है”.

सभी आदिवासी कुकी नहीं, सभी कुकी ‘बाहरी’ नहीं!

राज्य में हिंसा के बाद केंद्र और मणिपुर सरकार दोनों की ओर से पेश सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि हिंसा के दौरान मारे गए "अधिकांश लावारिस शव घुसपैठियों के हैं"। उनकी यह टिप्पणी भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मणिपुर में हिंसा पर आधे दिन तक चली सुनवाई के अंत में आई थी। सॉलिसिटर-जनरल के इस बयान के बाद मीडिया में खबरों का तांता लग गया. प्रदेश सहित पूरे देश में यह नैरेटिव बना दिया गया कि चुराचांदपुर के आदिवासी बाहरी हैं. जबकि ललजारलिन दरंगवन जैसे कई आदिवासी समुदाय के परिवार ऐसे हैं, जो मिजोरम से आए, वह भी आजादी से बहुत पहले, और यहीं बस गए।

सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता के इस बयान बाद एक अफवाह यह भी फैली कि चुराचांदपुर जिला, जो पहाड़ी में स्थित है, यहां रहने वाले सभी लोग कुकी हैं, जबकि यह सच नहीं है. द मूकनायक की टीम ने ग्राउंड रिपोर्ट में पाया कि यहां आदिवासी लोग अधिक संख्या में हैं लेकिन सभी आदिवासी कुकी समुदाय के नहीं हैं. चुराचांदपुर जिले में हिन्दू परिवार, बंगाली परिवार, मुस्लिम परिवार और बिहार के कई परिवार भी वर्षों से बसे हैं. लेकिन कुकी और मैतेई के बीच हुई हिंसा में चुराचांदपुर जिले की सभी सीमाओं पर भारी सुरक्षा बलों का कड़ा पहरा है. जिससे जिले से बाहर के लोगों और यहां के लोगों के बीच भौगोलिक दूरी के साथ-साथ वैचारिक ईर्ष्या व दूरी बन चुकी है. इस समस्या का हल यहां के लोगों को एक अलग प्रशासन होने में दिखता है. यहां के ट्राइबल मणिपुर सरकार से ‘सेप्रेट एडमिनिस्ट्रेशन’ [एक अलग प्रशासन] की मांग कर रहे हैं.

‘जब सीएम पैदा नहीं हुए थे उससे पहले से मेरी मेटर्नल ग्रैंड मदर यहां रह रही हैं, और हमें अवैध अप्रवासी कहते हैं’

एस डोंगथिन सांग (S Dongthin Sang) 30, जब भी मीडिया की ख़बरों में यह सुनते हैं कि पहाड़ी में बसे ट्राइबल्स को ‘अवैध अप्रवासी’ कहा जा रहा है तब वह जवाब के तौर पर अपनी नानी की उम्र और प्रदेश के सीएम के जन्म का जरूर उल्लेख करते हैं. वह कहते हैं कि जब सीएम पैदा नहीं हुए थे उससे कहीं पहले से मेरा परिवार यहां रह रहा है।

एस डोंगथिन सांग (S Dongthin Sang) के पूर्वज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे हैं. वह YVA (Young Vaiphei Association) की ओर से खोले गए कुकी समुदाय के राहत शिविर के वालंटियर हैं।
एस डोंगथिन सांग (S Dongthin Sang) के पूर्वज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे हैं. वह YVA (Young Vaiphei Association) की ओर से खोले गए कुकी समुदाय के राहत शिविर के वालंटियर हैं। फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

आईबी रोड चुराचांदपुर जिला अस्पताल के पीछे YVA (Young Vaiphei Association) की ओर से एक ब्यॉज हॉस्टल को कुकी समुदाय का रिलीफ कैम्प बनाया गया है. एस डोंगथिन सांग इस राहत शिविर के वालंटियर हैं. वह नेताओं के बयानों में बार-बार कहे जाने वाले शब्द ‘अवैध अप्रवासियों’ पर द मूकनायक को बताते हैं कि, “मणिपुर सीएम कहते हैं कि हम लोग अवैध अप्रवासी हैं. वह गलत हैं, मेरी नानी 1917 में पैदा हुई, तब तो सीएम पैदा भी नहीं हुए थे. तो हम लोगों को अवैध प्रवासी कैसे कह सकते हैं?” उन्होंने बताया कि उनकी नानी कॉपचिन (Kopchin), जो 105 साल की थीं, पिछले साल गुजर गईं.

S Dongthin Sang की नानी कॉपचिन की उम्र पिछले साल 105 साल थी. परिवार के कई सदस्य भारतीय सेना में हैं. आदिवासियों को बाहरी या अवैध अप्रवासी बताना उन्हें अखरता है.
S Dongthin Sang की नानी कॉपचिन की उम्र पिछले साल 105 साल थी. परिवार के कई सदस्य भारतीय सेना में हैं. आदिवासियों को बाहरी या अवैध अप्रवासी बताना उन्हें अखरता है. फोटो- राजन चौधरी, द मूकनायक

“हम भारतीय नागरिक हैं. मेरे पूर्वज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रह चुके हैं. मेरे परिवार के कई लोग भारतीय आर्मी में हैं. हम अवैध अप्रवासी नहीं हैं. प्रधानमंत्री मोदी जी आप एक महान नेता हैं, हम आपकी सराहना करते हैं, लेकिन आपने इस गंभीर मसले को नजरंदाज कर दिया. यह शर्मनाक है”, डोंगथिन सांग ने खुद के एक भारतीय नागरिक होने के गौरान्वित भरे स्वर में कहा. 

आपको बता दें कि प्रदेश में जातीय हिंसा की घटना के बाद हाल ही में 23 अगस्त को मणिपुर मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने एक बयान में कहा कि, "हम इस संघर्ष का राजनीतिक समाधान निकालेंगे। हम राज्य से अवैध अप्रवासियों को बाहर करना जारी रखेंगे।"

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