रायपुर- कड़ाके की ठंड में सुबह-सुबह तालाब के ठंडे पानी में स्नान, अधूरी भोजन व्यवस्था के बीच भूख मिटाने की कोशिशऔर टॉयलेट की लंबी कतारों में खड़े होकर इंतजार —ये किसी कहानी का हिस्सा नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की सहायक शिक्षिकाओं की वास्तविक जिंदगी है। न्याय पाने और अपनी नौकरी बचाने के लिए ये महिलाएं जिस संघर्ष से गुजर रही हैं, वह न केवल उनके हौसले की मिसाल है, बल्कि सरकारी व्यवस्था की खामियों को भी उजागर करता है।
प्रदेश में 2897 बीएड प्रशिक्षित सहायक शिक्षकों की नौकरियां संकट में हैं और पिछले तीन-चार सप्ताह से सैकड़ों प्रभावित शिक्षक रायपुर के तूता धरना स्थल पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इनमे पचास फीसदी तादाद महिलाओं की हैं. दो तीन सामुदायिक भवनों में सभी अडजस्ट करके ठहरे हुए हैं। कई शिक्षिकाएं अपने नन्हे बच्चों के साथ प्रदर्शन स्थल पर जमी हुई हैं, आसपास के सामुदायिक भवन, धर्मशाला, लॉज आदि में रहते हुए ये टीचर्स पुरुष शिक्षकों के साथ प्रदर्शन के नाना तरीकों में भी हिस्सा ले रही हैं साथ ही सबके लिए सामूहिक भोजन तैयार करने, बर्तन धोने आदि प्रबंधन भी संभाले हैं.
सुइयों जैसे चुभती सर्द हवा और ठंडी रातों से बचने के लिए रजाइयां और ऊनी कपड़े नाकाफी हैं, जिससे ये जाड़े में कांपने को मजबूर हैं। सैकड़ों की तादाद में लोगों के लिए रोजाना दो समय भोजन बनाना होता है, कई बार खाना कम पड जाता है, ऐसे में कभी आधा पेट खाकर भी रात काटनी पड़ती है, तो कभी लंबी कतारों में खड़े रहकर टॉयलेट के लिए अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है। पीरियड्स के दौरान तो इन टीचर्स की समस्या दोगुनी हो जाती है क्योंकि सेनिटरी पैड्स बदलना और इनका निस्तारण भी उनके लिए परेशानी का सबब है. बावजूद इन तमाम परेशानियों के , इनके चेहरे पर उम्मीद की चमक और अपने अधिकारों के लिए लड़ने का जज्बा बना हुआ है।
इस संघर्ष में एक युवा शिक्षिका हेमा सिंह की जान भी चली गई। जांजगीर-चांपा की रहने वाली हेमा की तीन महीने पहले कोंडागांव में अपनी पोस्टिंग के दौरान, कलेक्टर को ज्ञापन सौंपने के बाद लौटते समय सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई। उनके पिता देवनारायण सिंह धरने पर बैठे शिक्षकों को आशीर्वाद देने पहुंचे और भावुक होकर बोले, "ये सभी मेरे बच्चे हैं।"
ऐसी ही कहानियां आज हमारे सामने एक बड़ा सवाल खड़ा करती हैं—क्या सरकार इतनी संवेदनहीन है कि उन्हें इन महिलाओं का दर्द दिखाई नहीं देता और इनकी समायोजन की मांगे मुख्यमंत्री के दफ्तर तक नहीं पहुंच रही हैं या फिर जानबूझकर सरकार अंधी और बहरी बन बठी है?
500 से अधिक महिला शिक्षक सामुदायिक भवनों और किराए के होटलों में ठहरी हैं।
गरियाबंद जिले के भाटीगढ़ की ममता नेगी ने द मूकनायक को बताया, "हमारी नौकरी केवल हमारी आजीविका का साधन नहीं थी, बल्कि यह हमारे आत्मसम्मान से भी जुड़ी हुई थी। लेकिन सरकार ने हमारी सेवाएं समाप्त कर हमें बेरोजगारी के मुंह में धकेल दिया।"
ममता पिछले 28 दिनों से तूता धरना स्थल पर संघर्ष कर रही हैं। यहां की कठिन परिस्थितियों का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा, "यहां 600 से अधिक लोग रुके हुए हैं और केवल दो बाथरूम हैं। हमें सुबह 4 बजे से ही नहाने और पीने के पानी के लिए लाइन लगानी पड़ती है। इतनी कठिनाई के बावजूद हम उम्मीद लगाए बैठे हैं कि सरकार हमारी बात सुनेगी।"
आगे कहती हैं, "अगर भविष्य में हमारा समायोजन नहीं हुआ तो हम इस निराशा मन से कभी उभर नही पाएंगे, हम फिर से नौकरी करने की उम्मीद भी नही कर पाएंगे- ना हम आगे की पढ़ाई भी नही कर पाएंगे. ना चाहते हुए भी घर वाले हम पर शादी का दबाव बनाएंगे और इस तरह हम दुबारा सरकार पर भी भरोसा नहीं कर पाएंगे। हमे ये हमेशा अफसोस रहेगा की हम मेरिट में आ कर, एक साल अपनी सेवा दे के भी हम अपनी नौकरी नहीं बचा सके। हम निर्दोष होकर भी राजनीति के इस जाल में हम फंस के नौकरी से बाहर हो गए."
ममता नेगी ने बताया कि आंदोलन स्थल पर रात में सोने के लिए गद्दे तो हैं, लेकिन ओढ़ने के लिए पर्याप्त कंबल नहीं हैं। ठंड के कारण उन्हें ठीक से नींद नहीं आती, लेकिन अपने भविष्य और सम्मान की रक्षा के लिए वह डटी हुई हैं।
कांकेर जिले में चारामा की नीलम मंडावी, जो 24 वर्ष की हैं, ने बताया कि यहां की संख्या इतनी अधिक है कि सोने की जगह और बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। "हम खुली जगह में ठंड के मौसम में नहाने को मजबूर हैं। शौचालय की कमी के कारण सुबह लंबी लाइन लगानी पड़ती है। हमारे बीच कई महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ आई हैं, जो कड़ाके की ठंड में इस संघर्ष का हिस्सा बनी हुई हैं।"
उन्होंने कहा, "कभी-कभी खाने के लिए केवल चावल और दाल मिलती है, तो कभी हमें भूखे ही सोना पड़ता है। इसके बावजूद हम साहस और धैर्य के साथ डटे हुए हैं। हम चाहते हैं कि सरकार हमारे भविष्य के प्रति गंभीरता से सोचे।"
आगे कहती हैं, " हमे पता नही था कि धरना-प्रदर्शन इतना लंबा चलेगा, हम एक से दो दिन का ही अपना समान लेकर आये थे लेकिन यह धरना-प्रदर्शन को एक महीना को आने को आया है। गरम कपड़ा भी नही लाये हैं एक दुसरे के समान को उपयोग कर के इतने दिन तक संघर्ष कर रहे हैं यही उम्मीद के साथ कि हमने कोई गलती कि नही तो हमारे साथ कुछ गलत नही होगा।"
कोंडागांव की सुमन गंगासागर के परिवार में 5 सदस्य हैं, 28 वर्षीय सुमन अविवाहित हैं. वे बताती हैं, " सामुदायिक भवन में रुकने की व्यवस्था है लेकिन पानी की समस्या होने से हमें नहाने या फ्रेश होने के लिए बाहर जाना पढता है। शौच के लिए खुले में जाना असुरक्षित लगता है लेकिन कोई चारा नहीं है. भोजन की व्यवस्था ठीक है। खाने में हमें दाल चावल सब्जी मिलता है पर कभी कभी कम पड़ जाता है तो चावल और आचार के साथ ही खाना पढ़ता है।"
सुमन कहती हैं अगर समायोजन नहीं होता है तो मेरा इस न्याय व्यवस्था से भरोसा उठ जायेगा. "अगर भविष्य की बात करूं तो मुझे बिल्कुल भी सरकार से उम्मीद नहीं है कि वेकेंसी आयेगी भी या नहीं? और आएगी तो कब? अब मनोस्थिति उतनी अच्छी नहीं की मैं भविष्य में नौकरी की तैयारी फिर से शुरू कर सकू क्योंकि सरकार की राजनीति के कारण हम सब मानसिक रूप से प्रताड़ित हो रहे है। मेरी नौकरी नहीं बचेगी तो मैं और मेरा परिवार मताधिकार का त्याग कर देंगे। "
जिला बालोद के अर्जुंदा से आईं ममता ध्रुव एक छोटे से कमरे में 11 अन्य शिक्षिकाओ के साथ रहती हैं . ममता कहती हैं, " हमने छ.ग. के गजट पत्र ,भर्ती विज्ञापन देखकर बी.एड. कर शिक्षक भर्ती परीक्षा में हिस्सा लिया और मेरिट मे आये. हमारे भर्ती प्रक्रिया मे किसी भी प्रकार के कोर्ट केस के बारे मे जिक्र नही था। तो हमने अपनी मेहनत और नियमों की पालना करते हुए अपना जाॅब पायें। हमने किसी भी प्रकार की गलती की ही नही, फिर भी सरकार हमे कोर्ट का हवाला देते हुए हमारे पद से पदमुक्त कर दिया गया। जिसके कारण हमें ये दिन देखना पड़ रहा है जबकि सरकार के पास असीम शक्तियां है वे हमें समायोजित कर सकती है । उसी उम्मीद और भरोसा के कारण आज हम अपनी बातो को धरना-प्रदर्शन के माध्यम से पहुंचा रहे हैं और भविष्य मे हमे समायोजन मिलेगा ही क्योंकि सरकार पर हमे भरोसा है।
धरना स्थल पर कई लोग अनशन पर भी बैठे हैं. इसमें से कुछ महिलाएं भी हैं जिनकी अनशन और खराब मौसम की वजह से तबियत भी बिगड़ गई. ऐसे में साथी लोग ही अस्पताल ले जाते हैं. टीचर्स बताते हैं कि धरना स्थल पर कोई एम्बुलेंस की व्यवस्था नहीं है, दिन में एक दो बार चिकित्सा विभाग से कर्मी आकर अनशन करने वालों की जांच कर जाते हैं, इसके अलावा सरकार कोई सुध नहीं ले रही है, ना ही कोई जन प्रतिनिधि मिलने ही आया है.
जिला गरियाबंद की तारणी नायक मैनपुर निवासी हैं. उनके घर में सात सदस्य हैं और घर चलाने में तारणी की नौकरी से परिवार को एक बड़ा सहारा मिलता था. 25 वर्ष की तारणी से पूछा कि अगर समायोजन नहीं होता तो भविष्य में क्या करेंगी ? इस पर वे कहती हैं कि अगर समायोजन नहीं होता है तो किसी भी सरकारी नौकरी से तो भरोसा उठ ही जाएगा आगे का कोई बेकअप भी पता नहीं. अविवाहित शिक्षिकाओं का एक दर्द ये भी है कि अगर नौकरी नहीं मिली तो घरवाले शादी का दबाव बनायेंगे और फिर आत्म निर्भर होने और अपना करियर बनाने का सपना अधूरा रह जाएगा.
आन्दोलन में भाग ले रही कुछ टीचर्स के नन्हे बच्चे भी साथ हैं जो कडाके की ठण्ड में रहन सहन और खाने के नाकाफी बदोबस्त के कारण परेशान हो रहे हैं. एक शिक्षिका वर्षा ने बताया बड़े तो फिर भी जैसा जो मिल रहा है उससे पेट भर लें लेकिन मासूम बच्चों का क्या करें जो भूख से बिलखते हैं. ऐसे छोटे बच्चों के लिए रात को दूध गर्म कर देने की भी कोई व्यवस्था नहीं है, अपना गम कोई भी झेल जाता है लेकिन औलाद का दुःख देखा नहीं जाता.
शिक्षिकाओं ने द मूकनायक से अपनी पीड़ा शेयर करते हुए बताया कि उनका आंदोलन 14 दिसंबर से अनुनय यात्रा से शुरू हुआ. धरना-प्रदर्शन, मौन व्रत, गौ सेवा, स्वच्छता अभियान, खिचड़ी वितरण , मुंडन, जल समाधी, भूख हड़ताल, रैली एवं सभा,शव यात्रा, दंडवत प्रणाम यात्रा, छेरछेरा दान- इस तरह शांतिपूर्ण तरीके से हम अपनी बात को सरकार तक पहुंचानी की कोशिश की. बिना किसी गलती के जब पूरा देश नव वर्ष मना रहा था उसी दिन हमे हमारी नौकरी से बाहर कर दिया गया। क्या सरकार हमारे और हमारे परिवार के बारे मे थोड़ा-बहुत भी नही सोंच रही है? हमारी गलती क्या है? और सरकार यहां चुप्पी साधे बैठी है । जब तक हमारी मांगे पूरी नही हो जाती तब तक हम प्रदर्शन करते रहेंगें, बस हम अपने सरकार से यही कहना चाहते हैं कि हमे जल्द से जल्द समायोजित कर हम सभी बी.एड धारी सहायक शिक्षको को समायोजन का नई सौगात दें।
आन्दोलनरत टीचर्स के समर्थन में अब धरना स्थल पर उनके अभिभावक भी आने लगे हैं. ऐसी ही एक माता ने कहा कि जब जाड़े के इस मौसम में उनकी बच्ची घर से दूर अनजान लोगों के साथ अनजान जगह धरना दे रही है, सडकों पर गुहार लगा रहे हैं, ऐसे में एक मां होकर मैं घर में हाथ पर हाथ धरकर कैसे बैठ जाती, मैं भी इसलिए यहां आगई और तब तक नहीं जाउंगी जब तक सरकार हमारे बच्चों के साथ न्याय नहीं करेगी.
शिक्षकों की मुख्य मांग यह है कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेशों के कारण हो रहे टर्मिनेशन के बाद उनके समायोजन की दिशा में कदम उठाए। प्रदर्शनकारी शिक्षक यह मानते हैं कि सरकार के पास ऐसे समाधान मौजूद हैं जिनसे उनकी नौकरी बचाई जा सकती है।
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