रायपुर - छत्तीसगढ़ में बीएड पास सहायक शिक्षकों ने अपनी नौकरी की सुरक्षा और समायोजन की मांग को लेकर छेरछेरा पर्व पर दान मांगा । पारंपरिक लोकगीतों और उत्सव के मौके पर, शिक्षकों ने सरकारी कार्यालयों और आम जनता से "रोजगार का दान" मांगा।
"अरन बरन कोदो दरन, जभे देबे तभे टरन..."- यह लोकगीत छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। इसी धुन पर शिक्षक अपनी नौकरी की गुहार लगाने निकले। उनका कहना था कि जैसे छेरछेरा के दिन दान मांगा जाता है, वैसे ही वे भी इस त्योहार पर अपने भविष्य की सुरक्षा का दान मांग रहे हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश के 2897 बीएड प्रशिक्षित सहायक शिक्षक अपनी नौकरी की सुरक्षा के लिए बीते तीन सप्ताह से राजधानी रायपुर के तूता धरना स्थल पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इनमे से अधिकांश आदिवासी समुदाय के शिक्षक हैं, सरकार की बेरुखी और संवादहीनता ने उनकी आजीविका को संकट में डाल दिया है।
हर रोज शिक्षक अलग अलग तरीकों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं जिसमें पुरुष शिक्षकों ने सामूहिक मुंडन और महिला शिक्षकों ने अपने बाल दान कर सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने की कोशिश की। प्रदर्शन स्थल पर सद्बुद्धि हवन हुए ताकि सरकार की संवेदनहीनता से जगाया जा सके। इसके अलावा तूता धरना स्थल के करीब एक तालाब में जल सत्याग्रह भी किया गया.
बीएड और डीएड प्रशिक्षित शिक्षकों की योग्यता को लेकर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 10 दिसंबर, 2024 को एक महत्वपूर्ण आदेश दिया कि प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्ति के लिए डीएड उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इस फैसले के बाद बीएड प्रशिक्षित सहायक शिक्षकों की सेवाएं समाप्त करने का आदेश जारी किया गया। इन शिक्षकों का कहना है कि सरकार ने भर्ती विज्ञापन में दोनों योग्यताओं को मान्यता दी थी, फिर अब बीएड शिक्षकों को बाहर करना अन्यायपूर्ण है। न्यायालय ने आदेश दिया है कि दो सप्ताह के भीतर डी.एल.एड धारकों की नियुक्ति की जाए। इस आदेश से मौजूदा बी.एड शिक्षकों की नौकरी खतरे में पड़ गई है, जिन्होंने पिछले कई महीनों से सेवाएं दे रहे हैं।
आंदोलनरत सहायक शिक्षकों का आरोप है कि प्रदेश सरकार उनके समायोजन और नौकरी की सुरक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठा रही है। शिक्षकों का कहना है कि वे सभी बीएड योग्यताधारी हैं जो बीते 1.5 साल से राजकीय विद्यालयों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा बीएड की जगह डीएड पास कैंडिडेट्स को नियुक्ति देने के आदेश के कारण उनकी नौकरियां खतरे में पड़ गई हैं। यह लड़ाई केवल उनकी नौकरियों की नहीं है, बल्कि एक ऐसी प्रक्रिया के खिलाफ है जो भविष्य में हर युवा और हर नौकरीपेशा व्यक्ति के अधिकारों को खतरे में डाल सकती है।
रविवार 12 जनवरी को शिक्षकों ने माना बस्ती के हनुमान मंदिर से लगभग 4 किमी चल कर बोरियाकला के शदाणी दरबार तक दंडवत प्रणाम यात्रा की। फोरलेन हाइवे पर यात्रा के आते ही वाहनों की लंबी कतार लग गई। सहायक शिक्षकों ने कहा कि एक तरफ प्रदेश युवा दिवस मना रहा है और दूसरी ओर शासन युवाओं को बेरोजगार बना रहा है।
शिक्षकों के आंदोलन को राजनीतिक समर्थन भी मिल रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शिक्षकों के संघर्ष का समर्थन करते हुए इसे दुखद बताया। बघेल ने विडियो शेयर किया जिसमे उन्होंने लिखा , " यह दृश्य देखकर बेहद कष्ट हो रहा है. युवाओं के आदर्श स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के दिन छत्तीसगढ़ के युवा सड़कों पर दंडवत होकर सरकार से निवेदन हेतु अनुनय यात्रा निकाल रहे हैं. लेकिन यह संवेदनहीन और निर्लज्ज सरकार करोड़ों खर्च कर "युवा महोत्सव" मनाने का ढोंग कर रही है. इन युवाओं को इस निर्लज्ज सरकार ने नए साल में शिक्षक की नौकरी से निकालकर बेरोजगार कर दिया है. यदि सरकार चाहे तो इन्हें दूसरे पदों पर समायोजित किया जा सकता है. हम सब छत्तीसगढ़वासी अपने युवाओं के साथ हैं. "फ़ाइव स्टार" आयोजनों में मस्त सरकार को समय आने पर करारा जवाब देंगे."
कांग्रेस नेता व सांसद प्रियंका गांधी ने शिक्षकों की दंडवत यात्रा का वीडियो साझा कर भाजपा सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने इसे अमानवीय करार दिया।
ये शिक्षक 2018 में एनसीटीई (राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद) के नियमों के तहत भर्ती हुए थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद उनकी योग्यता पर सवाल उठे, जिसके चलते बर्खास्तगी के आदेश जारी किए गए। शिक्षक अब इस आदेश को अन्यायपूर्ण मानते हुए इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं। द मूकनायक से बात करते हुए कोंडागांव के शिक्षक सुमित बोरकर ने बताया कि कई टीचर्स को टर्मिनेशन आर्डर मिल चुके हैं, शेष को इस सप्ताह तक मिलने की आशंका है. सरकार ने कोर्ट में प्रभावशाली पैरवी नहीं की जिसके कारण आज हम पर ये हाल है.
अपने 2.5 साल के बेटे के साथ आन्दोलन में शामिल वर्षा ठाकुर ने बताया कि वो पिछले 1 महीने से अपने घर से निकली हुई है. 34 वर्षीय वर्षा के पति प्राइवेट नौकरी करते हैं और ये सरकारी नौकरी ही उनके जीवन का सबसे बड़ा सहारा था जिसे भी सरकार ने ले लिया है. " अब मुझे खिन नौकरी नहीं मिल सकती क्योंकि मेरी उम्र बीत चुकी है, मैं क्या करुँगी कुछ सेविंग नहीं है , आगे क्या होगा मुझे कुछ मालूम नहीं है" - वर्षा ने रूआंसे स्वरों में कहा.
वर्षा वतर्मान में कुर्मी छतरी भवन में एक हाल में 70 अन्य महिला टीचर्स के साथ रह रही हैं. इसी तरह दो और सामुदायिक भवन हैं जहाँ आन्दोलनरत शिक्षकों ने अपना अस्थायी आवास बनाया है. ये सभी धरना स्थल पर सामूहिक भोजन बनाते हैं जिसमे केवल चावल और दाल बनती है. कडाके की ठण्ड में अपनी नौकरियों को बचाने के लिए लगातार आवाज उठा रहे ये शिक्षक इस आस में है कि सरकार इनकी पुकार सुनेगी. हालाकि अभी तक भाजपा सरकार से किसी मंत्री, सांसद या विधायक इनकी सुध नहीं ली है ना ही कोई मिलने आया है.
छेरछेरा छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख पारंपरिक पर्व है, जिसे पौष पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।छेरछेरा त्यौहार नई फसल की होने की ख़ुशी में मनाई जाती है. इस दिन सभी किसान भाइयो के घर में धान की नई फसल होने से धान की ढेरी लगी रहती है. युवा और बच्चे गाना गाते नाचते – बजाते, घर – घर जाकर धान मांगते है.
किसानअपनी नई फसल की खुशी में अन्न दान करते हैं। बच्चों और युवाओं की टोलियां सुबह-सुबह घर-घर जाकर "अरन बरन कोदो दरन, जभे देबे तभे टरन" गाते हुए अन्न मांगती हैं।
कोदो एक अनाज है, जो छत्तीसगढ़ में गैर-सिंचिंत पड़ती जमीन में खेत बनने से पहले बोई जाती है। जिसे चावल की तरह पकाया जाता है, जो छेरछेरा लेने वाली टोली मांगने जाती है ।
अरन बरन कोदो दरन, जभे देबे तभे टरन, यह पंक्ति छंद बिरवा में है.
छंद बिरवा में यह पंक्ति इस तरह से है:
अरन-बरन कोदो-दरन, देबे जभे तभे टरन, छेरछेरा ह आज हे, मांगे मा का लाज हे...कोठी के जी धान ला, देवन हमला दान ला, दान करे धन बाढथे, धन हा थिरवाँन लइका मन सब आय हें, हेर-हेर चिल्लाय हें...सूपा मा भर धान ला, धरमिन देथे दान ला...ढोलक-मांदर ला बजा, मांगन आवय बडा मजा...डंडा नाचन झूम के, गाँव ल पूरा घूम के।
कृषि प्रधान राज्य छत्तीसगढ़ में इस पर्व का विशेष महत्व है। यह त्योहार न केवल फसल की उपज और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करता है, बल्कि ग्रामीण समुदाय की एकजुटता और समृद्धि का भी प्रतीक है।
पूरे देश में जहां अलग अलग प्रान्तों में मकर संक्रांति के विविध रूप जैसे लोहड़ी, पोंगल, छेरछेरा आदि मनाये जा रहे हैं, इनमे दान पुण्य का बेहद महत्व है. दान मांगने वालों को खाली हाथ नहीं लौटाया जाता है और इसी लोक भावना के तहत ही सहायक शिक्षकों ने छेरछेरा पर रोजगार का दान मांगा .
शिक्षकों के इस आन्दोलन से सरगुजा और बस्तर संभाग में शिक्षण व्यवस्था बुरी कदर प्रभावित है, 22 दिसंबर से ये सभी टीचर्स सामूहिक अवकाश पर हैं जिससे इनकी गैर मौजूदगी में गरीब बच्चों की पढाई प्रभावित हो रही है. ये सभी टीचर्स ऐसे स्कूलों में लगे हुए थे जहां एक या दो शिक्षक ही कार्यरत हैं, ऐसे में सहायक शिक्षकों के आन्दोलन से एकल टीचर वाले स्कूलों में पढाई ठप ही हो चुकी है.
शिक्षकों ने साफ किया है कि अगर उनकी समायोजन की मांग पूरी नहीं हुईं, तो वे आगे भी विरोध जारी रखेंगे।
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