साध्वी प्रज्ञा के ‘टांग तोड़’ बयान पर बवाल, कांग्रेस और संगठनों ने जताया रोष, मध्य प्रदेश की सियासत में मचा बवाल

विवाद को लेकर महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और सामाजिक संगठनों ने भी तीखी आपत्ति जताई है।
भाजपा की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा के ‘टांग तोड़’ बयान पर बवाल
भाजपा की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा के ‘टांग तोड़’ बयान पर बवालInternet
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भोपाल। पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का एक ताज़ा बयान मध्य प्रदेश की राजनीति में बवंडर खड़ा कर रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में साध्वी प्रज्ञा अभिभावकों को यह कहते हुए दिखाई देती हैं कि यदि बेटियां परिवार की परंपराओं को ठुकराकर किसी विधर्मी घर में जाने की कोशिश करें, तो उन्हें ऐसी सख्त सजा दी जाए कि वे दोबारा ऐसा करने की हिम्मत ही न जुटा सकें। उन्होंने यहां तक कहा कि जरूरत पड़े तो बेटियों की टांगे तोड़ने में भी हिचकिचाना नहीं चाहिए। साध्वी प्रज्ञा वीडियो में यह भी कहती सुनाई देती हैं कि बच्चों के भले के लिए अनुशासन के नाम पर कभी-कभी मारना-पीटना जरूरी हो जाता है, ताकि वे भटकाव से बच सकें।

साध्वी प्रज्ञा के इस बयान के सामने आने के बाद प्रदेश की सियासत अचानक गरमा गई है। कांग्रेस ने बयान को महिलाओं की आज़ादी, सम्मान और संवैधानिक अधिकारों पर हमला बताते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के मीडिया सलाहकार केके मिश्रा ने साध्वी प्रज्ञा से सवाल किया कि क्या वह ऐसे ही दंड भाजपा नेताओं और उनके परिवारों पर भी लागू करेंगी, जिनके घरों में अंतरधार्मिक विवाह हुए हैं। कांग्रेस का आरोप है कि यह बयान नफरत फैलाने वाला, हिंसा को बढ़ावा देने वाला और लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है। पार्टी ने मांग की है कि इस बयान पर प्रशासन संज्ञान ले और कानूनी कार्रवाई की जाए।

विवाद को लेकर महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और सामाजिक संगठनों ने भी तीखी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि किसी भी वयस्क महिला को अपने जीवन, साथी और विवाह से जुड़े निर्णय लेने का पूरा अधिकार भारतीय संविधान देता है। ऐसे में बेटियों के खिलाफ हिंसा को वैध ठहराने जैसा बयान न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि खतरनाक पितृसत्तात्मक सोच को मजबूत करता है। संगठनों का कहना है कि इस तरह की बयानबाज़ी समाज में असहिष्णुता और हिंसा की मानसिकता को जन्म देती है और युवाओं को गलत दिशा में प्रेरित कर सकती है। उनका यह भी कहना है कि जनप्रतिनिधियों को अपने शब्दों की जिम्मेदारी समझते हुए संवेदनशील और संतुलित भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए।

क्या कहता है संविधान?

भारत का संविधान हर वयस्क नागरिक को यह मूल अधिकार देता है कि वह अपनी इच्छा से जीवनसाथी चुने—चाहे वह चयन अंतरधार्मिक (inter-faith) विवाह हो या अंतरजातीय (inter-caste)। संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (धर्म, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव निषेध) और 21 (जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) व्यक्ति को अपनी पसंद के साथी के साथ विवाह करने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। ऐसे विवाहों को कानूनी मान्यता देने के लिए विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act, 1954) बनाया गया है, जिसके तहत बिना धर्म बदले दो वयस्क आपसी सहमति से विवाह कर सकते हैं। इस अधिनियम का उद्देश्य है कि किसी भी धर्म या जाति से अलग होने के बावजूद, विवाह को वैधानिक सुरक्षा मिल सके और उसे राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त हो।

भारतीय न्यायपालिका ने भी कई ऐतिहासिक फैसलों में इस अधिकार को मजबूत किया है। सुप्रीम कोर्ट ने शफीन जहाँ बनाम केरल राज्य (हदीया केस, 2018) और लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2006) जैसे मामलों में स्पष्ट कहा कि दो बालिग यदि अपनी इच्छा से विवाह करना चाहते हैं, तो परिवार, समाज या राज्य उनके इस अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। न्यायालय ने यह भी माना कि अंतरजातीय व अंतरधार्मिक विवाह सामाजिक समरसता और प्रगतिशीलता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। इसलिए संविधान और कानून, दोनों स्तरों पर ऐसे विवाह न केवल मान्य, वैध और संरक्षित हैं, बल्कि किसी भी तरह की धमकी, हिंसा, या जबरन रोकथाम को कानून के खिलाफ माना जाता है।

पहले भी रहे विवाद

यह पहली बार नहीं है जब साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर अपने बयानों को लेकर चर्चा या विवाद के केंद्र में रही हों। वे इससे पहले नाथूराम गोडसे, धर्मांतरण, आतंकवाद और सुरक्षा बलों को लेकर दिए गए कई बयानों से राजनीतिक हलचलों को जन्म दे चुकी हैं। विश्लेषकों का मानना है कि इस बार भी उनका ताज़ा बयान न केवल सामाजिक सौहार्द पर, बल्कि संवैधानिक मूल्यों और क़ानूनी मर्यादाओं पर गंभीर प्रश्न खड़ा करता है।

वायरल वीडियो के बाद अब मामला बयानबाज़ी से आगे बढ़कर सड़कों और संस्थानों तक पहुंचता दिख रहा है। कांग्रेस कानूनी कदम उठाने की तैयारी में है, जबकि सामाजिक संगठन विरोध प्रदर्शनों की चेतावनी दे रहे हैं। आने वाले दिनों में यह विवाद और तेज़ हो सकता है, क्योंकि मुद्दा सीधे-सीधे महिलाओं की स्वतंत्रता, व्यक्तिगत अधिकारों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों से जुड़ता है।

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