नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव शुरू होने ही वाले हैं, इसके लिए सभी राज्यों ने अपने-अपने स्तर पर कमर कस ली है। उत्तराखंड में 19 अप्रैल को 5 लोकसभा सीटों पर मतदान है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. बीवीआरसी पुरूषोत्तम ने कहा कि प्रदेश में मतदान प्रतिशत को बढ़ाने के लिए स्वास्थ्य महानिदेशक को गर्भवती महिलाओं के लिए डोली की व्यवस्था किए जाने के निर्देश दिए गए हैं।
सीईओ पुरूषोत्तम ने कहा कि, सभी मतदान कार्मिकों को चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने के लिए चिकित्सा विभाग से समन्वय किया गया है। पोलिंग पार्टियों को किस सुविधा और स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क करना है? इसके लिए बूथ लेवल हेल्थ मैनेजमेंट प्लान बनाया गया है। सभी जिला अस्पताल, सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के प्रभारी चिकित्सा अधिकारियों की जानकारी सभी पोलिंग पार्टियों तक उपलब्ध रहेगी। इसके अलावा, एंबुलेंस के साथ हेलीपैड की जानकारी भी दी जाएगी।
उन्होंने कहा कि, सभी विभागों को मतदाता जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने के साथ ही भारत निर्वाचन आयोग और सीईओ उत्तराखंड के सोशल मीडिया हैंडल को लगातार फॉलो करने की भी बात कही, ताकि मतदाता ज्यादा से ज्यादा मतदान करने के लिए जागरूक हों।
उत्तराखंड में 85 साल से ज्यादा आयु और दिव्यांग श्रेणी के 1,28,92 हैं। जिनमें से 11,275 वोटर अपने घरों से ही वोट दे चुके हैं। चुनाव आयोग ने घर से पोस्टल बैलेट से मतदान का पहला चरण पूरा कर लिया है। इस बार चुनाव आयोग मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए तमाम प्रयास कर रहा है। इसके तहत चुनाव आयोग गर्भवती महिलाओं मतदाताओं को भी मतदान केंद्र तक पहुंचने में सहूलियत देने जा रहा है।
इसके अलावा पोलिंग के दिन मतदान कर्मियों और मतदाताओं को मौसम खराब होने व लू से बचाव को लेकर सभी जरूरी प्रबंध करने के निर्देश दिए गए हैं। मतदान केंद्रों में शेड, पानी, कूलर, पंखों आदि की व्यवस्था करने को कहा गया है। उत्तराखंड में ऐसे 85 बूथ तैयार किए जा रहे हैं, जो महिला कार्मिकों की ओर से संचालित किए जाएंगे। जबकि, 70 पीडब्ल्यूडी बूथ मॉडल बूथ के रूप में तैयार किए जा रहे हैं, जिसे दिव्यांग कार्मिक संचालित करेंगे।
उत्तराखंड के टिहरी निवासी एक गर्भवती महिला द मूकनायक को बताती है कि, "वोट देना सभी के लिए बहुत जरूरी है। क्योंकि वोट हमारे आने वाले जीवन को प्रभावित करता है। सभी को वोट देना भी चाहिए। मैंने कभी डोली में जाकर वोट नहीं दिया। लेकिन इस बार देखते हैं क्या होता है। क्योंकि मैं गर्भवती हूं। तो वोट देने जाऊंगी या नहीं, अभी तय नहीं हो पाया है। पहाड़ों के रास्ते इतने अच्छे नहीं होते हैं। जितना आप वीडियो और टीवी पर देखते हैं। पहाड़ी जीवन बहुत ही कठिनाई पूर्ण होता है। गर्भवती होने के बाद वोट डालने जाना थोड़ा असुविधापूर्ण हो सकता है। क्योंकि यहां के रास्तों पर पत्थरों के गिरने का डर, छोटे-छोटे रास्ते, जंगली जानवर आदि का खतरा बना रहता है।"
"मैंने अपने पति से जाने के लिए बात की थी। लेकिन उन्होंने मन कर दिया। क्योंकि अभी मैं गर्भवती हूं। गर्भवती महिला के लिए चाहे पहाड़ों पर गाड़ी से क्यों न जाए। फिर भी उनके लिए वह डर का माहौल बना ही रहता है। और जब भी बात पहाड़ों की होती है,तो थोड़ा सोचना पड़ता है", महिला ने कहा.
मामले पर द मूकनायक ने निर्वाचन आयोग के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की। लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई।
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