MP: आदिवासी नेताओं ने कहा- समुदाय को हाशिए पर धकेल रही हैं सरकारी नीतियां

भोपाल में आदिवासी विकास परिषद की बैठक में जल, जंगल और जमीन के अधिकारों के लिए संघर्ष का आह्वान
MP: आदिवासी नेताओं ने कहा- समुदाय को हाशिए पर धकेल रही हैं सरकारी नीतियां
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भोपाल। राजधानी भोपाल में रविवार को रविन्द्र भवन में मध्यप्रदेश आदिवासी विकास परिषद की एक अहम बैठक आयोजित की गई, जिसमें प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। बैठक का संयोजन विनोद इरपाचे ने किया, जबकि इसकी अध्यक्षता तुलसीराम धूमकेती ने की। इसमें रमा काकोडिया, आर बी बट्टी, शोभाराम भलावी, चैन सिंह बरकडे, रत्नेश मरावी, नरेंद्र सिंह सैयाम और नीरज बारिवा जैसे कई प्रमुख नेता शामिल हुए। बैठक का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समुदाय के सामने बढ़ती समस्याओं और उनके अधिकारों के हनन पर चर्चा करना था।

बैठक में आदिवासी समाज पर हो रहे अत्याचार, शिक्षा और रोजगार से जुड़ी समस्याओं, और जल, जंगल और जमीन के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया गया। नेताओं ने कहा कि सरकार की नीतियां आदिवासी समुदाय को हाशिए पर धकेल रही हैं। विकास के नाम पर उनकी जमीनें छीनी जा रही हैं, जबकि उन पर निर्भर उनकी आजीविका को नष्ट किया जा रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जल, जंगल और जमीन केवल संसाधन नहीं, बल्कि आदिवासी समाज के अस्तित्व और पहचान का आधार हैं।

शिक्षा की स्थिति पर चर्चा करते हुए नेताओं ने बताया कि छात्रवृत्ति योजनाओं में पारदर्शिता की कमी और समय पर राशि नहीं मिलने के कारण आदिवासी छात्र अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। छात्रावासों की स्थिति भी बेहद दयनीय है। गांवों से आने वाले आदिवासी बच्चों के लिए पर्याप्त संख्या में छात्रावास नहीं हैं, और जो उपलब्ध हैं, उनमें बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। इन परिस्थितियों में आदिवासी छात्रों का शिक्षा से वंचित रहना गंभीर चिंता का विषय है।

रोजगार के मुद्दे पर भी नेताओं ने सरकार की उदासीनता की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि स्थानीय उद्योगों और परियोजनाओं में आदिवासी युवाओं को प्राथमिकता नहीं दी जा रही है। सरकार बड़े उद्योगों को जमीन तो दे देती है, लेकिन उन उद्योगों में स्थानीय आदिवासी युवाओं को रोजगार की गारंटी नहीं दी जाती। सरकारी नौकरियों में भी आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व बेहद कम है, जो उनके हकों के प्रति सरकारी उदासीनता को दर्शाता है।

आदिवासी समुदाय पर अत्याचार और उनके अधिकारों के हनन की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। महिलाओं पर हिंसा और शोषण की घटनाएं चिंताजनक रूप से बढ़ी हैं। जंगलों की कटाई और जमीन अधिग्रहण से आदिवासी समाज का विस्थापन हो रहा है। जब भी समुदाय अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाता है, तो उन्हें दबाने की कोशिश की जाती है। नेताओं ने कहा कि सरकार की यह उदासीनता आदिवासी समाज को और अधिक हाशिए पर धकेल रही है।

बैठक में निर्णय लिया गया कि आने वाले समय में आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए व्यापक आंदोलन शुरू किया जाएगा। जिला स्तर पर जनजागरण अभियान चलाने और भोपाल में एक विशाल रैली आयोजित करने की रणनीति बनाई गई। नेताओं ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आंदोलन केवल प्रदेश तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर ले जाया जाएगा।

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सरकार को चेतावनी दी कि अगर आदिवासी समुदाय की समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो उन्हें सड़कों पर उतरकर आंदोलन करना पड़ेगा। बैठक के अंत में सभी नेताओं ने एकजुट होकर आदिवासी समाज के अधिकारों की रक्षा और उनके लिए संघर्ष करने का संकल्प लिया। यह बैठक न केवल आदिवासी समाज के लिए, बल्कि उनके अस्तित्व और पहचान की रक्षा के लिए एक निर्णायक पहल साबित हो सकती है।

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