रायपुर: देश की आजादी की लड़ाई का जिक्र होते ही भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे महानायकों की तस्वीरें हमारी आंखों के सामने आ जाती हैं। इनकी कहानियां करोड़ों लोगों को प्रेरित करती हैं। लेकिन, इस संघर्ष में आदिवासी समुदाय के क्रांतिकारियों का योगदान भी कम नहीं था, हालांकि उनके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं।
इन्हीं गुमनाम नायकों को पहचान दिलाने और उनकी कहानियों को जन-जन तक पहुँचाने के मकसद से छत्तीसगढ़ के नया रायपुर में एक बेहद खास संग्रहालय तैयार किया गया है। 'शहीद वीर नारायण सिंह स्मारक एवं आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय' (Shaheed Veer Narayan Singh Memorial & Tribal Freedom Fighter Museum) सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि इतिहास का एक जीता-जागता दस्तावेज है।
पीएम मोदी ने किया था उद्घाटन
नया रायपुर के सेक्टर 24 में स्थित यह विशाल संग्रहालय 9.75 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी साल 1 नवंबर को किया था। आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा तैयार की गई इस परियोजना की कुल लागत 53.13 करोड़ रुपये आई है।
संग्रहालय का उद्देश्य आगंतुकों को आदिवासी क्रांतिकारियों के जीवन और संघर्ष का संपूर्ण अनुभव प्रदान करना है। यहाँ स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्षणों को दर्शाती आदमकद मूर्तियों से लेकर फांसी के आदेश वाले ऐतिहासिक दस्तावेज और विद्रोहियों द्वारा उपयोग किए गए हथियार भी प्रदर्शित किए गए हैं।
1774 से 1939 तक के संघर्ष की गवाही
यह संग्रहालय 16 दीर्घाओं (Galleries) में बंटा हुआ है, जहाँ सैकड़ों मूर्तियों के माध्यम से 1774 से लेकर 1939 के बीच आदिवासी समुदायों पर हुए अत्याचारों और उनके प्रतिरोध की अनकही कहानियों को बयां किया गया है।
जनजातीय विकास विभाग के प्रमुख सचिव, सोनमणि बोरा ने बताया, "यहाँ के डिजिटल अनुभव, शहीद वीर नारायण सिंह द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ इस्तेमाल की गई तलवार, उनका स्मारक और दंतेवाड़ा के प्रसिद्ध मां दंतेश्वरी मंदिर का डिजिटल दर्शन इस संग्रहालय को देखने वालों के लिए एक कभी न भूलने वाला अनुभव बनाते हैं।"
कला और संस्कृति का अद्भुत संगम
संग्रहालय का मुख्य प्रवेश द्वार सरगुजा क्षेत्र की पारंपरिक लकड़ी की नक्काशी से सजाया गया है। यहाँ 200 आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के नाम भी अंकित हैं, जो आगंतुकों को भीतर जाने से पहले ही गर्व का एहसास कराते हैं। आंगन में बिरसा मुंडा की एक आदमकद प्रतिमा स्थापित है। गौरतलब है कि बिरसा मुंडा की जयंती (15 नवंबर) को देश भर में 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
रिसेप्शन हॉल में एक दर्जन से अधिक डिजिटल स्क्रीन लगाई गई हैं, जिनमें एनिमेटेड वीडियो कहानियाँ चलती हैं। साथ ही, यहाँ एक मिनी-थियेटर भी है जहाँ वीर नारायण सिंह, गेंद सिंह, गुंडाधुर और रामाधीन गोंड जैसे आदिवासी नेताओं की जीवन गाथाओं पर आधारित लघु फिल्में दिखाई जाती हैं।
विभिन्न जनजातियों की झलक
जहां रिसेप्शन एरिया काफी रोशन है, वहीं गैलरीज में रोशनी को थोड़ा धीमा रखा गया है ताकि वहां रखी गई प्रतिमाएं जीवंत लगें। यहाँ विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों (PVTGs) जैसे कमार, बैगा, अबुझमाड़िया, पहाड़ी कोरवा और बिरहोर की संस्कृति, मान्यताओं, कला और कौशल को दर्शाया गया है। उनकी मूर्तियों के साथ-साथ पेंटिंग और दैनिक उपयोग की वस्तुएं भी प्रदर्शित की गई हैं।
इतिहास के पन्नों से: कैप्टन ब्लंट और वीर नारायण सिंह
टीआरटीआई (TRTI) के सहायक निदेशक अनिल विरुल्कर ने एक दिलचस्प ऐतिहासिक घटना का जिक्र करते हुए इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से बताया, "संग्रहालय में ईस्ट इंडिया कंपनी के कैप्टन ब्लंट की कहानी भी है। जब 1795 में उसने बस्तर में घुसने की कोशिश की थी, तो स्थानीय जनजातियों—गोंड, कोया, दोरला और माड़िया—ने अपने पारंपरिक हथियारों से हमला कर उसे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था।"
एक अन्य गैलरी में वीर नारायण सिंह के विद्रोह की कहानी है, जिन्होंने तब अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई थी जब उन्होंने भूख और गरीबी से जूझ रहे आदिवासियों को अपने गोदामों से अनाज देने से इनकार कर दिया था। यहाँ महात्मा गांधी की धमतरी यात्रा का भी उल्लेख मिलता है।
तकनीक के जरिए जुड़ाव
इतिहास को आधुनिक तकनीक से जोड़ने के लिए भी यहाँ विशेष इंतजाम किए गए हैं। टीआरटीआई की निदेशक हिना नेताम ने बताया, "हमने 'आदि वाणी' (Adi Vani) नाम का एक ऐप विकसित किया है, जिस पर गोंडी और हल्बी भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध है। इसके अलावा, हमने छत्तीसगढ़ी, गोंडी, हल्बी आदि स्थानीय भाषाओं में छोटी फिल्में और वीडियो भी बनाए हैं, जिन्हें संग्रहालय के इमर्सिव डोम और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म पर दिखाया जाएगा।"
यह संग्रहालय निश्चित रूप से उन लोगों के लिए एक ज्ञानवर्धक तीर्थ है जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी समाज के अतुलनीय योगदान को समझना चाहते हैं।
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