भारत में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) के छात्रों का ड्रॉपआउट रेट शून्य के करीब, शिक्षा के क्षेत्र में जगी नई उम्मीद

राज्यसभा में पेश आंकड़ों ने दी खुशखबरी: विशेष पिछड़ी जनजातियों (PVTG) के बच्चे अब नहीं छोड़ रहे स्कूल, एमपी और छत्तीसगढ़ ने मारी बाजी।
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आदिवासी शिक्षा में बड़ा बदलाव! 2024-25 में PVTG छात्रों का ड्रॉपआउट रेट गिरकर सिर्फ 0.02% रह गया है।(Ai Pic)
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नई दिल्ली: भारत के सुदूर और सबसे वंचित आदिवासी समुदायों के लिए शिक्षा के क्षेत्र से एक बेहद उत्साहजनक खबर सामने आई है। वर्ष 2024-25 में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) के छात्रों के बीच स्कूल छोड़ने की दर (ड्रॉपआउट रेट) मात्र 0.02 प्रतिशत दर्ज की गई है। यह ऐतिहासिक आंकड़ा साबित करता है कि देश के सबसे पिछड़े आदिवासी समूहों के लिए चलाए जा रहे आवासीय विद्यालय और कल्याणकारी योजनाएं अब धरातल पर रंग ला रही हैं।

संसद में पेश किए गए चौंकाने वाले आंकड़े

बुधवार को राज्यसभा में राज्य मंत्री दुर्गादास उइके ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के नामांकन और रिटेंशन (छात्रों के स्कूल में बने रहने) से जुड़े आंकड़े पेश किए। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत सरकार द्वारा आदिवासी बच्चों, विशेषकर पीवीटीजी (PVTG) समुदाय के बच्चों को शिक्षा प्रणाली से जोड़े रखने के प्रयास सफल हो रहे हैं।

इस वर्ष देश भर में कुल 1,38,336 आदिवासी छात्रों ने नामांकन कराया। इनमें से 4,552 छात्र पीवीटीजी समुदाय से थे, जो अनुसूचित जनजातियों में भी सामाजिक और आर्थिक रूप से सबसे अधिक हाशिए पर माने जाते हैं।

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सबसे आगे

जनजातीय आबादी वाले बड़े राज्यों ने नामांकन के मामले में अपना दबदबा बनाए रखा है। मध्य प्रदेश (25,056) और छत्तीसगढ़ (24,767) ने मिलकर कुल आदिवासी नामांकन का एक-तिहाई से भी अधिक हिस्सा अपने नाम किया। इसके अलावा, ओडिशा (11,530), गुजरात (11,525), महाराष्ट्र (10,092) और आंध्र प्रदेश (9,891) में भी छात्रों की भागीदारी काफी मजबूत रही।

विशेष रूप से, मध्य प्रदेश ने पीवीटीजी शिक्षा में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। राज्य में 929 पीवीटीजी छात्रों का नामांकन हुआ और ड्रॉपआउट रेट केवल 0.01 प्रतिशत रहा। यह सफलता वहां के छात्रावासों, छात्रवृत्तियों और सामुदायिक निगरानी की प्रभावशीलता को दर्शाती है।

सामान्य आदिवासी औसत से बेहतर है पीवीटीजी का प्रदर्शन

आंकड़े एक दिलचस्प और सकारात्मक रुझान की ओर इशारा करते हैं: जहां-जहां पीवीटीजी छात्रों का नामांकन हुआ है, वहां उनके स्कूल छोड़ने की दर न के बराबर है। विभिन्न राज्यों में पीवीटीजी ड्रॉपआउट रेट इस प्रकार रहे:

  • आंध्र प्रदेश: 0.09 प्रतिशत

  • छत्तीसगढ़: 0.04 प्रतिशत

  • कर्नाटक: 0.02 प्रतिशत

  • महाराष्ट्र: 0.05 प्रतिशत

  • राजस्थान: 0.01 प्रतिशत

  • तमिलनाडु: 0.04 प्रतिशत

शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि आवासीय विद्यालय, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT), पोषण सहायता और स्थानीय भाषा में शिक्षण जैसी केंद्रित योजनाओं ने इन बच्चों को गरीबी और भौगोलिक अलगाव के बावजूद स्कूल में बनाए रखा है।

कुछ क्षेत्रों में चिंता के बादल

हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर तस्वीर उजली है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं। उत्तर प्रदेश में कुल ड्रॉपआउट रेट सबसे अधिक 2.02 प्रतिशत दर्ज किया गया। इसके बाद दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव (1.45 प्रतिशत) और ओडिशा (0.75 प्रतिशत) का स्थान रहा। कई पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों में पीवीटीजी-विशिष्ट डेटा में कमी देखी गई, जो यह संकेत देता है कि वहां ट्रैकिंग सिस्टम को और मजबूत करने की आवश्यकता है।

नीतिगत सफलता और भविष्य की राह

पीवीटीजी छात्रों के बीच लगभग शून्य ड्रॉपआउट रेट को एक बड़ी नीतिगत जीत माना जा रहा है। यह दर्शाता है कि सामान्य कार्यक्रमों की तुलना में सूक्ष्म-लक्षित (micro-targeted) हस्तक्षेप अधिक प्रभावी होते हैं। हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि पीवीटीजी नामांकन की संख्या अभी भी सीमित है। अगला बड़ा लक्ष्य रिटेंशन से समझौता किए बिना इन बच्चों की पहुंच और नामांकन संख्या को बढ़ाना होगा।

एक अधिकारी ने इस उपलब्धि पर टिप्पणी करते हुए कहा, “जैसे-जैसे भारत आदिवासी समुदायों के लिए सार्वभौमिक माध्यमिक शिक्षा की ओर बढ़ रहा है, 2024-25 के आंकड़े एक महत्वपूर्ण सीख देते हैं—जब मदद अंतिम छोर तक पहुंचती है, तो सबसे कमजोर वर्ग के बच्चे भी शिक्षा की मुख्यधारा में बने रहते हैं।”

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