
नोएडा- भारतीय कला जगत ने आज एक ऐसा स्तंभ खो दिया, जिसने संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की विरासत को पत्थर और कांस्य में अमर कर दिया। पद्मभूषण से सम्मानित प्रसिद्ध मूर्तिकार राम वनजी सुतार का 18 दिसंबर को नोएडा स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। वे 100 वर्ष के थे। लंबे समय से उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे सुतार की मूर्तियां न केवल भारत बल्कि विश्व स्तर पर सामाजिक न्याय और समानता के प्रतीक बनी हुई हैं, खासकर बाबा साहब की वे प्रतिमाएं जो लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं।
सुतार के निधन पर कला जगत स्तब्ध है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर लिखा, "राम सुतार जी के निधन से गहरा शोक। उनकी मूर्तियां भारत की आत्मा का प्रतीक हैं। विनम्र श्रद्धांजलि।" तेलंगाना के पूर्व सीएम के. चंद्रशेखर राव ने कहा, "हैदराबाद की अंबेडकर प्रतिमा उनके योगदान की अमर गवाही है।" महाराष्ट्र सीएम देवेंद्र फडणवीस और अन्य नेताओं ने भी शोक व्यक्त किया।
19 फरवरी 1925 को महाराष्ट्र के धुले जिले के गोंदूर गांव में एक साधारण विश्वकर्मा परिवार में जन्मे राम सुतार ने मुंबई के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से मूर्तिकला में प्रशिक्षण लिया। पिछले 60 वर्षों में उन्होंने 90 से अधिक स्मारकीय मूर्तियां रचीं, जिनमें स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (182 मीटर) जैसी विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा प्रमुख है। सुतार का हृदय हमेशा महापुरुषों पर था, विशेष रूप से बाबा साहब अंबेडकर पर, जिनकी मूर्तियां उन्होंने भारत और विदेशों में स्थापित कीं।
उन्होंने कहा था, "बाबा साहब की मूर्तियां बनाना मेरे लिए सामाजिक न्याय का प्रतीक रचने जैसा है।" उनके बेटे अनिल सुतार ने बताया कि पिता की कला ने अंबेडकर जी के वैश्विक संदेश को मजबूत किया। राम सुतार की अन्य प्रसिद्ध कलाकृतियों में संसद परिसर में ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए महात्मा गांधी और संसद परिसर में घोड़े पर सवार छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमाएं भी शामिल हैं।
सुतार को 1999 में पद्मश्री, 2016 में पद्मभूषण और महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी कृतियां अमेरिका, फ्रांस, अर्जेंटीना, इटली, रूस और मलेशिया जैसे देशों में फैली हुई हैं।
राम सुतार बाबा साहब की प्रतिमाओं के लिए विशेष रूप से विख्यात हैं। उनकी डिजाइन में अंबेडकर की संविधान सभा में खड़ी मुद्रा और बोधिसत्व अवतार का भाव स्पष्ट झलकता है। कुछ प्रमुख कृतियां इस प्रकार हैं:
तेलंगाना के हुसैन सागर झील के तट पर राज्य सचिवालय के निकट स्थित यह भव्य कांस्य प्रतिमा सुतार और उनके बेटे अनिल की संयुक्त रचना है। 14 अप्रैल 2023 को बाबा साहब की जयंती पर तत्कालीन मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने इसका अनावरण किया। 11.4 एकड़ क्षेत्र में फैला यह स्मारक 146 करोड़ रुपये की लागत से बना, जिसमें संग्रहालय और पुस्तकालय भी शामिल हैं। कुल ऊंचाई बेस सहित 175 फीट है, जो सामाजिक न्याय का प्रतीक बनी हुई है।
इंदु मिल्स कंपाउंड में बन रही यह दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची प्रतिमा (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी और स्प्रिंग टेम्पल बुद्ध के बाद) सुतार की महत्वाकांक्षी कृति है। कुल ऊंचाई 137.3 मीटर (450 फीट), जिसमें 30.5 मीटर (100 फीट) का पेडेस्टल शामिल है। मार्च 2018 में ठेका मिला, लेकिन विवादों और फंडिंग के कारण वर्तमान में 47% पूरा हुआ है। पूर्ण होने पर यह मई 2026 या मार्च 2027 तक तैयार होगी। यह डॉ. बी.आर. अंबेडकर मेमोरियल के रूप में समानता का वैश्विक संदेश देगी।
वाशिंगटन डीसी से 30 मील दूर मैरीलैंड के अकोकीक में अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर पर स्थित यह कांस्य प्रतिमा 15 अक्टूबर 2023 को अनावरण हुई। 360 टन स्टेनलेस स्टील और 114 टन कांस्य से बनी, यह भारत के बाहर बाबा साहब की सबसे ऊंची मूर्ति है। 13 एकड़ क्षेत्र में फैला स्मारक बौद्ध मूल्यों और समानता का प्रतीक है।
मुंबई के दादर में स्थापित ब्रॉन्ज स्टैच्यू, दिल्ली की अंबेडकर फाउंडेशन प्रतिमा और 10 से अधिक देशों में छोटी-बड़ी मूर्तियां भी सुतार ने बनाई हैं। पूर्व उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री मायावती ने भी दलित आइकॉन्स की कई मूर्तियां सुतार से बनवाईं। सुतार की ये रचनाएं न केवल ऊंचाई की मिसाल हैं, बल्कि बाबा साहब के संघर्ष और संविधान के मूल्यों को जीवंत करती हैं।
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