
लखनऊ/नगीना: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर "धर्म बनाम संविधान" की बहस छिड़ गई है। नगीना लोकसभा सीट से सांसद और आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद ने उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा एक कथावाचक को 'गार्ड ऑफ ऑनर' (Guard of Honour) दिए जाने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने इसे न केवल प्रशासनिक चूक बताया, बल्कि संविधान पर खुला हमला करार दिया है।
क्या है पूरा मामला?
18 दिसंबर को दोपहर 12:30 बजे, चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल (X) पर एक वीडियो साझा किया। इस वीडियो में उत्तर प्रदेश पुलिस के कर्मी कथावाचक पुंडरीक गोस्वामी को सलामी (Guard of Honour) देते हुए नजर आ रहे हैं। इस वीडियो को शेयर करते हुए सांसद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और यूपी पुलिस को कटघरे में खड़ा किया है।
चंद्रशेखर ने अपने पोस्ट में लिखा, "भारत कोई मठ नहीं, बल्कि एक संवैधानिक गणराज्य है। और राज्य किसी धर्म-विशेष की जागीर नहीं।"
"संविधान के प्रति जवाबदेही खत्म, धार्मिक सत्ता के आगे नतमस्तक प्रशासन"
भीम आर्मी चीफ ने आरोप लगाया कि प्रदेश में आस्था को संविधान से और कथावाचकों को संवैधानिक पदों से ऊपर बैठाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सलामी और परेड राज्य की संप्रभु शक्ति का प्रतीक होती है, जो शहीदों और संवैधानिक पद धारकों के लिए आरक्षित है, न कि किसी बाबा या धर्मगुरु का रुतबा बढ़ाने के लिए।
सांसद ने सीधे तौर पर सवाल दागे:
पुंडरीक गोस्वामी कौन सा संवैधानिक पद धारण करते हैं?
किस प्रोटोकॉल के तहत उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया?
क्या यूपी में अब धार्मिक पहचान ही नया सरकारी प्रोटोकॉल है?
सरकार को दिलाई संविधान की याद
चंद्रशेखर आज़ाद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टैग करते हुए संविधान के अनुच्छेदों का हवाला दिया:
प्रस्तावना: भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है।
अनुच्छेद 15: धर्म के आधार पर विशेषाधिकार देना असंवैधानिक है।
अनुच्छेद 25–28: राज्य का कोई धर्म नहीं होता, उसे धर्म से दूरी बनाए रखनी चाहिए।
चंद्रशेखर आज़ाद द्वारा उठाया गया यह मुद्दा केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि प्रशासनिक नियमावली और प्रोटोकॉल से जुड़ा एक गंभीर प्रश्न है। आइए जानते हैं कि इस संबंध में नियम और कानून क्या कहते हैं।
1. 'गार्ड ऑफ ऑनर' किसे मिलता है? (Who is entitled to Guard of Honour?)
भारत में 'गार्ड ऑफ ऑनर' देने के नियम पुलिस मैनुअल और 'ब्लू बुक' (Blue Book) में स्पष्ट रूप से दर्ज हैं। सामान्यतः यह सम्मान निम्नलिखित व्यक्तियों को दिया जाता है:
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री।
राज्यपाल और मुख्यमंत्री।
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीश।
केंद्रीय मंत्री और राज्य के मंत्री।
वरिष्ठ सैन्य और पुलिस अधिकारी (DGP, कमिश्नर आदि)।
शहीद जवान (उनके अंतिम संस्कार के दौरान)।
2. क्या निजी व्यक्ति या धर्मगुरु को यह सम्मान मिल सकता है?
नियमों के मुताबिक, किसी भी निजी व्यक्ति, धर्मगुरु, या कथावाचक को पुलिस द्वारा 'गार्ड ऑफ ऑनर' देने का कोई प्रावधान नहीं है। यदि राज्य सरकार किसी विशिष्ट व्यक्ति को आधिकारिक रूप से "राज्य अतिथि" (State Guest) का दर्जा देती है, तो उन्हें सुरक्षा और प्रोटोकॉल मिलता है। लेकिन, 'गार्ड ऑफ ऑनर' (जो कि एक सेरेमोनियल सलामी है) राज्य अतिथि के लिए भी अनिवार्य नहीं होती, जब तक कि वह कोई विदेशी राष्ट्रध्यक्ष या समकक्ष संवैधानिक पद पर न हो।
3. कानूनी उल्लंघन
यदि कथावाचक पुंडरीक गोस्वामी के पास कोई संवैधानिक पद नहीं है और न ही उन्हें किसी विशेष सरकारी आदेश (G.O.) के तहत यह प्रोटोकॉल प्रदान किया गया है, तो यह कृत्य निम्नलिखित का उल्लंघन माना जा सकता है:
पुलिस रेगुलेशन एक्ट: यह पुलिस बल के दुरुपयोग की श्रेणी में आ सकता है, क्योंकि पुलिस की सलामी राज्य की शक्ति का प्रदर्शन है, निजी वंदना नहीं।
संविधान का अनुच्छेद 14 और 15: यह समानता के अधिकार का हनन करता है। एक धर्म विशेष के व्यक्ति को सरकारी तंत्र द्वारा विशेष सम्मान देना राज्य की धर्मनिरपेक्षता (Secularism) के मूल ढांचे के खिलाफ है, जैसा कि एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि प्रशासन ने बिना किसी लिखित सरकारी आदेश के यह सलामी दी है, तो यह संबंधित अधिकारियों पर विभागीय जांच का विषय बन सकता है। चंद्रशेखर आज़ाद का यह कहना कि यह "एक खतरनाक परंपरा की ओर इशारा है", प्रशासनिक तटस्थता (Administrative Neutrality) के गिरते स्तर पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
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