
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक नाबालिग लड़की की पढ़ाई को सुगम बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जहां पिता गैर-एससी (SC) समुदाय से हैं, वहां मां की 'आदि द्रविड़' जाति के आधार पर बच्चे को SC जाति प्रमाण पत्र देने की मंजूरी दे दी गई। यह फैसला बदलते सामाजिक परिवेश में एक नई मिसाल कायम कर सकता है, हालांकि कोर्ट ने बड़े कानूनी सवालों को अभी खुला रखा है।
यह मामला पुदुचेरी की एक नाबालिग लड़की से जुड़ा है। मद्रास हाईकोर्ट ने पहले SC प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दिया था, जिसको सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया। चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ज्योमल्या बागची की बेंच ने इस चुनौती को खारिज करते हुए कहा कि लड़की की शिक्षा प्रभावित न हो, इसलिए प्रमाण पत्र दिया जाए। बेंच ने स्पष्ट किया कि कानूनी बहस को आगे के लिए खुला रखा जा रहा है।
चीफ जस्टिस ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की जो बहस छेड़ सकती है। उन्होंने कहा, "बदलते समय में मां की जाति के आधार पर जाति प्रमाण पत्र क्यों न जारी किया जाए?" इससे यह सवाल उठता है कि अगर मां SC समुदाय से हैं और पिता जनरल जाति से, तो बच्चे को SC लाभ मिलना चाहिए या नहीं? खासकर अगर बच्चा मां के परिवार में ही पल-बढ़ रहा हो। इस मामले में नाबालिग लडकी की मां ने बताया कि पति शादी के बाद से उनके साथ उसके मायके में ही रहते हैं, और उनके पूर्वज हिंदू आदि द्रविड़ समुदाय से हैं। मां ने तीनों बच्चों - दो बेटियों और एक बेटे के लिए प्रमाण पत्र मांगा था।
पहले के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि हिंदू रिवाज के अनुसार बच्चे की जाति पिता से तय होती है। 2003 के पुनीत राय बनाम दिनेश चौधरी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जाति तय करने का मुख्य आधार पिता की जाति है। कानून न होने पर बच्चा मां से नहीं, पिता से जाति लेता है।
2012 के रमेशभाई दाभाई नाइका बनाम गुजरात मामले में दो जजों की बेंच ने कहा कि अंतर-जाति विवाह में पिता की जाति का अनुमान मजबूत होता है, खासकर अगर पिता उच्च जाति से हो। लेकिन यह अनुमान अंतिम नहीं है।
बच्चा सबूत दे सकता है कि वह मां के SC/ST समुदाय में पला-बढ़ा। अगर उसे समुदाय की तरह कठिनाइयां झेलनी पड़ीं, तो मां की जाति मानी जा सकती है। बच्चे को यदि हमेशा मां के समुदाय का ही सदस्य माना गया हो, तो प्रमाण पत्र मिल सकता है।
इस मामले में सीनियर आईआरएस अफसर नेत्रपाल ने अपने पोस्ट में लिखा, " मैंने पिछले साल रोहित वेमुला के अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र के दावे के संबंध में लिखा था कि यदि माता अनुसूचित जाति की और पिता अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं, तब भी पुत्र डीओपीटी के परिपत्र के आधार पर अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र का दावा कर सकता है। अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसे सही ठहराया है। निर्णय में कोई त्रुटि नहीं दिखती क्योंकि यह डीओपीटी के परिपत्र का अनुसरण करता है।"
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.