नई दिल्ली: मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और सतर्कता आयुक्त के चयन के लिए बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीन सदस्यीय पैनल की एक अहम बैठक हुई। लेकिन यह बैठक सामान्य नहीं रही। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने मीटिंग के दौरान संवैधानिक पदों पर नियुक्तियों में पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों की "बहिष्कार" (Exclusion) की नीति को लेकर कड़ा विरोध दर्ज कराया। हालात यह बने कि राहुल की दलीलों के बाद प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को सीमित आवेदकों के पूल से ही कुछ नियुक्तियों पर विचार करने के लिए सहमत होना पड़ा।
'सिस्टमैटिक पैटर्न' का दिया हवाला
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, राहुल गांधी ने बैठक में स्पष्ट रूप से कहा कि संवैधानिक और स्वायत्त संस्थानों में नियुक्तियों के दौरान एक "सिस्टमैटिक पैटर्न" चल रहा है, जिसके तहत अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), ओबीसी (OBC), ईबीसी (EBC) और अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को जानबूझकर बाहर रखा जा रहा है। राहुल ने चयन पैनल के सामने अपनी औपचारिक असहमति (Dissent Note) दर्ज कराई और बताया कि शॉर्टलिस्ट किए गए नामों में इन समुदायों का प्रतिनिधित्व न के बराबर है।
आंकड़े देख भड़के राहुल
खबर है कि राहुल गांधी ने सरकार से कई हफ्ते पहले ही आवेदकों की जातिगत संरचना (Caste Composition) का ब्योरा मांगा था। बुधवार को जब यह जानकारी साझा की गई, तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। सूत्रों का कहना है कि कुल आवेदकों में से केवल 7% लोग ही पिछड़े समुदायों से थे, और शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों में से मात्र एक ही व्यक्ति इन वर्गों से था। इसी बात को लेकर राहुल ने बैठक में तीखे सवाल उठाए।
RTI कानून को कमजोर करने का आरोप
सिर्फ जातिगत मुद्दे ही नहीं, राहुल गांधी ने सरकार पर सूचना का अधिकार (RTI) कानून को कमजोर करने का भी आरोप लगाया। उनका कहना था कि शॉर्टलिस्ट किए गए कुछ उम्मीदवारों का पिछला रिकॉर्ड संदिग्ध रहा है और अपनी पिछली भूमिकाओं में उन्होंने पारदर्शिता नहीं बरती है।
लोकसभा में भी उठाया था मुद्दा
यह तनातनी अचानक नहीं हुई। बैठक से ठीक एक दिन पहले मंगलवार को लोकसभा में बोलते हुए राहुल गांधी ने अपना दर्द बयां किया था। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के संदर्भ में उन्होंने कहा था कि ऐसे पैनल में उनकी कोई सुनवाई नहीं होती। राहुल ने सदन में कहा था, "मैं उस कमरे में बैठता हूँ। यह तथाकथित लोकतांत्रिक फैसला होता है। एक तरफ पीएम मोदी और अमित शाह होते हैं, और दूसरी तरफ मैं अकेला। उस कमरे में मेरी कोई आवाज़ नहीं है। जो वो तय करते हैं, वही होता है।"
उल्लेखनीय है कि CIC और CVC चयन पैनल में भी प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री (अमित शाह) शामिल होते हैं।
लंबे समय से खाली हैं पद
मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) का पद 13 सितंबर से खाली पड़ा है, जब तत्कालीन सीआईसी हीरालाल सामरिया (जो दलित समुदाय से थे) 65 वर्ष की आयु पूरी कर सेवानिवृत्त हो गए थे। आयोग में कुल 10 सूचना आयुक्त हो सकते हैं, लेकिन वर्तमान में केवल दो ही आयुक्त कार्यरत हैं। इसके अलावा, सूचना आयुक्तों के आठ पद पिछले कुछ वर्षों से खाली हैं।
पहले भी हो चुका है विवाद
विपक्ष और सरकार के बीच सीआईसी की नियुक्ति को लेकर तकरार कोई नई बात नहीं है। 2023 में हीरालाल सामरिया की नियुक्ति के समय भी तत्कालीन विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने आरोप लगाया था कि सरकार ने न तो उनसे सलाह ली और न ही उन्हें सूचित किया।
वहीं, 2020 में भी अधीर रंजन चौधरी ने पूर्व IFS अधिकारी यशवर्धन कुमार सिन्हा को मुख्य सूचना आयुक्त और पत्रकार उदय माहुरकर को सूचना आयुक्त बनाए जाने का विरोध किया था। हालांकि, उनके विरोध और असहमति नोट के बावजूद सरकार ने ये नियुक्तियां कर दी थीं।
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