
भोपाल। राजधानी भोपाल के पॉलिटेक्निक चौराहा स्थित मानस भवन के पीछे बसी करीब 70 साल पुरानी आदिवासी झुग्गी बस्ती को हटाने की प्रशासनिक कार्रवाई फिलहाल टल गई है। सोमवार सुबह प्रस्तावित बेदखली से पहले कांग्रेस के तीखे विरोध और राजनीतिक दबाव के बाद जिला प्रशासन ने कार्रवाई स्थगित कर दी। हालांकि प्रशासन इसे पुलिस बल की अनुपलब्धता से जोड़ रहा है, लेकिन अंदरखाने यह माना जा रहा है कि हालात बिगड़ने की आशंका ने अधिकारियों को कदम पीछे खींचने पर मजबूर किया।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सीधे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पत्र लिखकर बस्तीवासियों के पक्ष में हस्तक्षेप की मांग की है। सिंघार ने पत्र में कहा कि मानस भवन, भोपाल के पास वर्षों से बसे जनजातीय और सामान्य परिवारों को बिना समुचित पुनर्वास हटाना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि संवैधानिक मूल्यों के भी खिलाफ है। उन्होंने मुख्यमंत्री से “न्यायसंगत, मानवीय और संवेदनशील समाधान” निकालने की मांग की है।
मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में उमंग सिंघार ने उल्लेख किया कि यह बस्ती कोई नई अतिक्रमण नहीं है, बल्कि लगभग सात दशक पुरानी है, जहां पीढ़ियों से आदिवासी और अनुसूचित जाति समुदाय के परिवार रह रहे हैं।
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा- “यह लड़ाई किसी राजनीतिक दल की नहीं, बल्कि अन्याय के खिलाफ न्याय और इंसानियत की है।”
शहर वृत्त एसडीएम दीपक पांडे ने बताया कि “पर्याप्त पुलिस बल उपलब्ध नहीं होने के कारण फ़िलहाल कार्रवाई स्थगित की गई है, जल्द ही नई तारीख तय की जाएगी।”
हालांकि, हकीकत यह है कि प्रशासनिक स्तर पर पूरी तैयारी कर ली गई थी। अपर कलेक्टर अंकुर मेश्राम ने सोमवार सुबह मानस भवन के पीछे सभी संबंधित अधिकारियों को मौजूद रहने के निर्देश दिए थे। कुल 101 अधिकारी-कर्मचारियों, एसडीएम, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक और पटवारियों की ड्यूटी भी लगाई गई थी।
बीते रविवार को कांग्रेस ने खुलकर मोर्चा संभाला। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी खुद बस्ती में पहुंचे और झुग्गी में रहने वाले परिवारों से बातचीत की। महिलाओं और बुजुर्गों ने बताया कि वे 60–70 साल से यहीं रह रहे हैं और अचानक मिले नोटिस ने उनकी नींद उड़ा दी है।
पटवारी ने मौके से ही प्रशासनिक अधिकारियों को फोन कर चेताया- “एक भी ईंट हटी तो पूरी कांग्रेस यहां खड़ी मिलेगी।” उनके साथ नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष शबिस्ता जकी भी मौजूद रहीं। बाद में पटवारी ने एडीएम अंकुर मेश्राम से भी फोन पर बात कर कहा कि बिना संवाद और भरोसे के कार्रवाई बर्दाश्त नहीं होगी।
इस फैसले पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने भी सवाल खड़े किए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने पूछा है कि क्या पुनर्वास से पहले मानवीय और सामाजिक पहलुओं पर गंभीरता से विचार किया गया। नेताओं का कहना है कि विकास के नाम पर गरीबों को उजाड़ना समाधान नहीं हो सकता।
प्रशासन का दावा है कि बस्ती में रहने वाले 27 परिवारों को भौंरी, कलखेड़ा और मालीखेड़ी में बने आवासों में शिफ्ट किया जाएगा। ये आवास निशुल्क होंगे और प्रति परिवार करीब दो लाख रुपये की लागत मानस भवन प्रबंधन वहन करेगा। मालीखेड़ी के आवासों के लिए राशि नगर निगम में जमा कराई जा चुकी है।
लेकिन बस्तीवासियों का कहना है कि उन्हें अब तक कोई लिखित आदेश, आवंटन पत्र या स्पष्ट टाइमलाइन नहीं दी गई है। “जब तक कागज पर भरोसा नहीं मिलेगा, तब तक कैसे मान लें?"
द मूकनायक से बातचीत में आदिवासी कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रामू टेकाम ने कहा कि मौजूदा सरकार की नीतियों के चलते आदिवासी समुदाय को लगातार उजाड़ा जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि पूरे प्रदेश में, चाहे गांव हों या शहर, आदिवासी परिवारों को बिना किसी मानवीय सोच के बेदखली का सामना करना पड़ रहा है। वर्षों से बसे लोगों को अचानक हटाने की कार्रवाई उनके जीवन, आजीविका और सम्मान पर सीधा हमला है, जिसे किसी भी हालत में न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता।
रामू टेकाम ने भाजपा सरकार पर गरीब आदिवासियों पर जुल्म करने का आरोप लगाते हुए कहा कि विकास के नाम पर सबसे पहले निशाना हाशिए पर खड़े समुदायों को बनाया जा रहा है। उन्होंने साफ कहा कि आदिवासी कांग्रेस की स्पष्ट मांग है कि किसी भी तरह की बेदखली से पहले प्रभावित परिवारों के लिए ठोस और लिखित पुनर्वास व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। जब तक लोगों को रहने, रोज़गार और मूलभूत सुविधाओं की गारंटी नहीं दी जाती, तब तक ऐसी कार्रवाइयों का विरोध जारी रहेगा।
मानस भवन के पीछे बसी यह झुग्गी बस्ती करीब सात दशक पुरानी बताई जाती है। यहां 27 से अधिक परिवार रहते हैं, जिनकी कुल आबादी 200 से ज्यादा है। इनमें अधिकांश आदिवासी और अनुसूचित जाति समुदाय के लोग हैं। प्रशासन ने 25 दिसंबर को बेदखली के आदेश जारी कर सात दिन में जगह खाली करने को कहा था। इससे पहले दीपावली के समय भी शिफ्टिंग को लेकर विरोध हो चुका है।
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