करौली हिंडौन सिटी केस: मूक-बधिर आदिवासी बच्ची के साथ कथित रेप का मामला, पुलिस पर भी हैं गंभीर आरोप! ग्राउंड रिपोर्ट

दुनिया छोड़ चुकी नाबालिग को क्या मिल पाएगा न्याय? पुलिस पर भी गंभीर आरोप!
करौली हिंडौन सिटी केस: मूक-बधिर आदिवासी बच्ची के साथ कथित रेप का मामला, पुलिस पर भी हैं गंभीर आरोप! ग्राउंड रिपोर्ट
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नौ मई का दिन भी सबके लिए आम गर्मियों जैसा ही दिन रहा होगा. लेकिन राजस्थान के एक परिवार के लिए आम नहीं था. हिण्डौन सिटी में रह रहा एक परिवार जिनकी ग्यारह साल की बेटी पारूल मीणा (बदला हुआ नाम) स्कूल की छुट्टियों में घर आई थी. पारूल न बोल सकती थी न सुन सकती थी. इसलिए वे मूक-बधिर स्पेशल स्कूल में पढ़ती थी. अप्रैल में ही वो अपने माता पिता के साथ रहने हिण्डौन सिट आई थी.

पारूल अभी चौथी क्लास पास कर पाँचवीं में ही पहुँची थी. बच्ची का स्कूल करौली ज़िले में ही था. जहां वो पढ़ने के साथ होस्टल में ही रहती थी और वो अप्रैल में ही घर आई थी. पारूल का परिवार आदिवासी समाज से आता है. उनका अपना घर, जहां उनका अन्य परिवार, पारूल का जन्मस्थली है वो टोडाभीम नगर के एक गाँव में हैं. टोडाभीम पहले करौली ज़िले का हिस्सा था लेकिन अब ये गंगापुर सिटी में आता है.

बच्ची का घर, उसके पिता और उनके भाई अभी सब साथ में ही रहते हैं.
बच्ची का घर, उसके पिता और उनके भाई अभी सब साथ में ही रहते हैं.

आज 29 मई है, यहाँ आज का अधिकतम तापमान 47 डिग्री सेल्सियस है, जहां दिल्ली में 52.3 डिग्री सेल्सियस तापमान रिकॉर्ड किया गया. लेकिन इस गर्मी के बीच भी ये गाँव बेहद खूबसूरत लग रहा था, जो चारों तरफ़ से सूखे और पथरीले पहाड़ों से घिरा हुआ हुआ है. पहाड़ों से बिल्कुल नीचे ही पारूल का घर है. घर के आँगन में भैंस के लिए लोहे की चद्दर (शेड) से उसके बैठने के लिए बनाया हुआ है, जहां बच्ची की माँ-मामा, पिता और कुछ अन्य रिश्तेदार भी बैठे थे.

आँगन में आते ही अभी हम बैठे भी नहीं थे कि पाँच साल की एक छोटी सी बच्ची पारूल की तस्वीर हाथ में लिए दौड़ कर आ जाती है, मानो उसे कुछ बोलने से पहले ही समझ में आ गया हो कि हम यहाँ क्यों आए हैं. अभी तक पारूल को सोशल मीडिया पर देखा जिसमें घटना के बाद की तस्वीरें और वीडियो थी. लेकिन यहाँ उसकी तस्वीर देख कर एक बार आँखें जैसे उस पर ठहर सी गई. बेहद खूबसूरत सी दिखने वाली पारूल को देखकर लग रहा था जैसे वो अभी बोल पड़ेगी.

परिवार में सबसे पहले पिता से बात हुई. उनकी उम्र क़रीब 40 से 45 के बीच रही होगी. दाढ़ी और सिर के बाल काफी हद तक सफेद हो चुके हैं. उन्हें बताया गया कि आप सिर पर कपड़ा या गमछा रख लें ताकि आपकी पहचान उजागर ना की जा सके.

उन्होंने पूरा घटनाक्रम एक-एक कर बताना शुरू किया. वे बताते हैं कि बच्ची मेरे सामने खेलने निकली थी और दस मिनट बाद मैं भी घर से दाढ़ी बनवाने निकला ही था कि कुछ देर में घर से फ़ोन आया. पड़ोस के लोगों ने बताया कि तेरी बेटी किसी ने जला दी है. मैं घर आया और बच्ची को पास के अस्पताल ले गया लेकिन उन्होंने तुरंत कहा कि बच्ची को जयपुर लेकर जाओ.

हमारे पहुँचते ही बच्ची की बहन पारूल की फोटो ले आती है.
हमारे पहुँचते ही बच्ची की बहन पारूल की फोटो ले आती है.

पारूल के पिता ने बताया कि हम उन्हें नहीं जानते थे. उनका घर भी हमसे लगभग एक-दो किलोमीटर दूर है. लेकिन घटना उसी के खेत में हुई है. हमारे घर से वो पास ही है इसलिए बच्ची वहाँ खेलने गई हुई थी. इसी आधार पर एक्सपर्ट टीम ने हमसे आसपास के लोगों की तस्वीर माँगी थी. उसमें उनकी भी एक तस्वीर थी जिसे बच्ची ने पहचान लिया.

बच्ची ने इशारे में बताया कि दो लोग थे. अपने ऊपर बोतल उड़ेलने का इशारा कर रही थी. लेकिन बोतल में तेज़ाब था या कुछ और इसका हम कुछ नहीं कह सकते. लेकिन पुलिस इस मामले पर कह रही है कि उसे करंट लगा है और इस मामले को घुमाने की कोशिश की जा रही है. जबकि हम बार बार बोलते रहे कि आप बच्ची का बयान ले लो लेकिन पुलिस वालों ने हमारी एक नहीं सुनी. 14 मई को एक्सपर्ट ने कुछ लोगों की फ़ोटो मँगवाई और उसमें पहचान हुई.

घटना 9 मई की सुबह लगभग दस बजे के क़रीब की है. इस केस की FIR ग्यारह मई को लिखी गई है. परिवार का कहना है कि हम ही लेट गए थे क्योंकि बच्ची के साथ जिस तरह की घटना हुई है उसके बाद हम उसी में व्यस्त हो गए.

ललित शर्मा का घर
ललित शर्मा का घर

परिवार के लोग एक टकी लगाए हमारी बातें सुन रहे हैं. बच्ची के मामा अपनी बहन के परिवार में घटना के बाद से साथ ही रह रहे हैं. वे कहते हैं बच्ची शुरू से दो लोगों का नाम ले रही है. लेकिन बच्ची ने ललित शर्मा नामक व्यक्ति की पहचान कर ली थी. क्योंकि उसकी तस्वीर हम दिखा पाए, लेकिन दूसरे की पहचान इसलिए नहीं कर पाई क्योंकि जो तस्वीर हमने दिखाई उसमें वो व्यक्ति शायद नहीं था.

15 मई को ही आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया था. उसी दिन बच्ची की रेप की भी जाँच हुई थी. लेकिन बच्ची का प्राइवेट पार्ट बुरी तरह झुलस चुका था. फिर भी बच्ची की जाँच में क्या आया ये हमें अभी तक नहीं पता. पुलिस से बार-बार पोस्टमार्टम और मेडिकल रिपोर्ट माँग रहे हैं. वो हमें ये कह कर नहीं दे रही है कि अभी जाँच चल रही है और हम नहीं दे सकते.

बच्ची के मामा ये भी आरोप लगाते हुए कहते हैं कि पुलिस ने हमें ये भी धमकी दी है कि वो हमारे ख़िलाफ़ ही मामला दर्ज करेगी और दस साल के लिए अंदर करेगी. क्योंकि इस मामले पर हमने धरना प्रदर्शन किया था.

घर में मौजूद रिश्तेदार
घर में मौजूद रिश्तेदार

मामा और पिता के साथ वहाँ बैठे सभी रिश्तेदार का कहना था कि पुलिस हमारे रिश्तेदार और पड़ोसियों को परेशान कर रही है, उन्हें बयान बदलने को कह रही है.

जब हमने पूछा कि आख़िर पुलिस आप लोगों से क्या कह रही है तो ऐसे में बच्ची के मामा कहते हैं कि पुलिस हमें कह रही है कि ‘हमने बच्ची को सिखाया है कि वो उस व्यक्ति को जानबूझकर इशारे में बताए, जबकि बयान ख़ुद पुलिस अधिकारी के सामने हुआ है’.

इसी जगह बच्ची नग्न अवस्था में अपनी माँ को मिली थी.
इसी जगह बच्ची नग्न अवस्था में अपनी माँ को मिली थी.

बच्ची की माँ ख़ामोश बैठी हैं. सबसे पहले बच्ची को देखने वाली उनकी माँ ही थी. माँ ने बताया कि बच्ची नग्न अवस्था में थी, जिस वजह से शायद बच्ची सामने आने में क़तरा रही थी क्योंकि उसे शर्म आ रही थी.

वे लगातार अपनी बात बता रही हैं… “हमने दो कमरे लिए हुए हैं एक के आगे भैंस बांधते हैं. सुबह का समय था मैं उस से कह रही कि चल बेटा अंदर को चल. लेकिन उसे खेलना था और वो ऐसे ही मुझे हल्का से धक्का देकर खुश होकर खेलने चली गई. बिजली नहीं आ रही थी और मुझे नहाने जाना था तो आधा-एक घंटे बाद मैंने सोचा एक बार उसे देख आऊँ फिर नहाने जाऊँगी.

माँ बता रही है कि उसकी मूक बधिर बेटी ने मूछ को ताव (आदमियों के लिए) देते हुए इशारा किया था कि दो लोग थे.
माँ बता रही है कि उसकी मूक बधिर बेटी ने मूछ को ताव (आदमियों के लिए) देते हुए इशारा किया था कि दो लोग थे.

घर से बाहर सामने ही रास्ता है, वहाँ से थोड़ा आगे खेत हैं, जहाँ एक पेड़ था वहां से चिल्लाने की आवाज़ सी आई. वो बोल नहीं सकती थी तो उसकी चिल्लाने की सी आवाज़ से घबरा गई. वहाँ इतना ऊँची (अपनी कमर पर इशारा करते हुए) बाउंड्री हो रही है. वहाँ पेड़ की बग़ल में से वो उचक (यानि थोड़ा उठकर देख रही थी) रही थी, मुझे लगा किसी मधुमक्खी या किसी चीज ने काट खा लिया है.तो मैं उसे लेने के लिए आगे बढ़ी लेकिन वो मुझे देखकर ख़ुद ही बाउंड्री के इस पार आ गई. मैंने सोचा कि अगर मधुमक्खी काटती तो ऐसे धब्बे तो नहीं होते और मैं मन ही मन सोचती रही कि इसे किसने काटा है. लेकिन उसने दो आदमियों का इशारा किया (मूँछ मरोड़ने जैसा इशारा वो किसी आदमी के लिए करती है, इसी तरह माँ भी अपनी बातों में इशारे से बताती हैं.) और कहा कि वो उधर भाग गए. मैंने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और उसकी हालत देखते हुए पड़ोस की बच्ची से शॉल मँगवाई. इसके बाद तो इसके पापा आ गए और उसे हॉस्पिटल ले गए. ..”

पेड़ के नीचे बच्ची के कपड़े मिले और ट्रांसफ़ॉर्मर की दूरी.
पेड़ के नीचे बच्ची के कपड़े मिले और ट्रांसफ़ॉर्मर की दूरी.

पुलिस के रवैये पर वे बताती हैं, “पुलिस हमसे कह रही है कि हमने अपनी बेटी को जलाया है. ‘ अरे अपने बच्चे को वो जलवा सकते हैं? जो हम जलाएँगे!’. वो अपना काम करने की बदले हम पर ही दोष लगा रही है”.

बच्ची की माँ अपनी बात पूरी ही कर रही थी कि परिवार के अन्य सदस्य भी कई बात करने लगे और वो पुलिस के रवैये से बिल्कुल भी खुश नहीं है. बेटी ने एक की पहचान की है. पुलिस अधिकारी के सामने बेटी ने बयान दिया था लेकिन फिर भी पुलिस उसे कह रही है कि बच्ची से तुमने झूठ बुलवाया है.

पिता अपनी बातचीत में ये भी आरोप लगाते हैं कि उन्हें एक अंजान नंबर से फ़ोन आया था. वो हमें लालच दे रहा था कि तू इस मामले को यहीं ख़त्म कर दे इसके बदले हम तुझे एक प्लॉट और कुछ पैसे भी दे देंगे. अपने आप को वो उसका (आरोपी) चाचा बता रहा था. लेकिन मैंने कहा कि हमें पैसा नहीं इंसाफ़ चाहिए.

इस गाँव से हिण्डौन सिटी की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है. गाँव से बाहर निकलने ही वाले थे कि बच्ची के चाचा ने अपने फ़ोन में बच्ची की तस्वीर दिखाना शुरू कर दिया. पारूल को रील बनाने का शौक़ था. साथ ही वो हमेशा अपने परिवार में वीडियो कॉल करती रहती थी. इन तस्वीरों के बीच में ही वही तस्वीर आ गई जो उसके जलने के बाद की थी. तस्वीर में उसकी त्वचा उखड़ी हुई थी. उसका शरीर लगभग 65 प्रतिशत जल चुका था. उसके ज़ख़्मों पर कोई तरल पदार्थ या दवा लगाई हुई थी. अगली तस्वीर में बच्ची बिना कपड़ों के थी. एक पलंग पर लेटी हुई थी, शायद हॉस्पिटल की थी. जिसमें उसका त्वचा काली पड़ चुकी थी और ज़ख़्म और ज़्यादा भयावह.

जिस स्कूल में पारूल पढ़ती थी. उसका स्कूल 35 से 40 किलोमीटर दूर था. स्कूल में गर्मियों की छुट्टियाँ पड़ चुकी हैं. स्कूल की प्रिंसिपल स्नेहलता से फ़ोन पर बात होती है. पारूल के साथ जो हुआ उन्हें उसका काफ़ी दुख था.

उन्होंने बताया, “बच्ची का व्यवहार बहुत अच्छा था. पढ़ने में भी अच्छी थी और खेलने में भी. स्कूल की छुट्टियाँ शुरू हो गई इसलिए वो 21 अप्रैल को ही घर चली गई थी. अक्सर उसकी दादी ही उसे लेने आती थी. क्लास में बच्चों और टीचर सभी के साथ उसका व्यवहार अच्छा था.”

स्नेहलता ने ये भी बताया कि उनको इस घटना के बारे में यू-ट्यूब से पता चला. इसके बाद उनके पास पुलिस भी आई थी.

स्नेहलता कहती हैं, “हमारी बात भी बच्ची से हुई थी. हमने भी उसे साइन लेंग्वेज में पूछा कि उसके साथ क्या हुआ और किसने किया! लेकिन बच्ची कुछ बता नहीं पा रही थी. उसकी बात सही से समझ नहीं आ रही थी.“

स्नेहलता ये बात भी साफ़ करती हैं कि बच्ची काफ़ी दर्द में थी. वो बोल और सुन नहीं सकती थी ऐसे में ये बच्चे अपने हाथों से ही सारी बात समझा पाते हैं. लेकिन वो इतने दर्द में थी थोड़ा भी हाथ उठाती थी तो वो दर्द के कारण वापस नीचे रख लेती थी. इस कारण उसकी बात से कुछ भी क्लियर नहीं हो पा रहा था कि आख़िर उसके साथ हुआ क्या है.

एक्सपर्ट के साथ हमारी भी वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग हुई थी उसमें उसने बताया था कि कोई एक व्यक्ति था. उसने क्या किया वो नहीं बता पाई क्योंकि उसकी हालत बहुत ख़राब थी और उसके हाथ काम नहीं कर पा रहे थे. इसकी वजह से वो इशारों में बात नहीं कर पा रही थी.

पारूल मीणा के माता-पिता हिण्डौन सिटी में काम के सिलसिले में रहते थे. जहां दो कमरे के साथ एक आँगन हैं जहां एक तरफ़ भैंस बांधी जाती हैं और दूसरी और रसोई बनी है. चार भैंस को पालने और उसका दूध बेचकर परिवार अपना गुजर-बसर करता है. ये घटना होने के बाद पूरा परिवार अपने पुश्तैनी घर चले गए हैं. यहाँ अब पारुल की नानी और एक मामा हैं जो भैंसों को देख रहे हैं.

बच्ची के स्कूल के कपड़े और और साइड में रखी है उसकी कॉपी
बच्ची के स्कूल के कपड़े और और साइड में रखी है उसकी कॉपी

एक कमरे में बच्ची के स्कूल के कपड़े और स्कूल की कॉपी-किताबें सामने ताक में रखे हैं लेकिन मामा उन्हें हमारे सामने लाकर कमरे में बिछी चारपाई पर लाकर रख देते हैं कि ये उसी का सामान है. इस कमरे में बिखरे हुए कपड़े, शायद दो जोड़ी जूते, कुछ किताबें, एक चारपाई के अलावा ऐसा कोई क़ीमती सामान नहीं देखा जा सकता. वहीं दूसरे कमरे में भैंसों का चारा, एक बड़ा सा बक्सा, अनाज रखने वाली टंकी या कोठी, एक गैस सिलेंडर और चूल्हा था. चूल्हे पर शायद अभी-अभी एक डेगची (खाना बनाने का एक बरतन) भर के दूध उबाला गया था.

नानी निशब्द थी, बस बार बार इतना ही कह पा रही थी कि बेटी के साथ बहुत बुरा हुआ. पारूल के एक दूसरे मामा हमें उस जगह ले जाते हैं जहां उसके साथ वो घटना हुई थी. घर से उसकी दूरी कुछ 150 कदमों की दूरी पर थी, जहां दूर-दूर तक कोई व्यक्ति नहीं था.

बच्ची के मामा इशारा करते हुए बता रहे हैं कि बच्चे के कपड़े यहाँ से मिले हैं और वहीं से पुलिस थोड़ी मिट्टी लेकर गई है.
बच्ची के मामा इशारा करते हुए बता रहे हैं कि बच्चे के कपड़े यहाँ से मिले हैं और वहीं से पुलिस थोड़ी मिट्टी लेकर गई है.

सिर्फ़ खेत ही खेत थे, जिनकी फसल कट चुकी थी और अभी सिर्फ़ मिट्टी ही मिट्टी दिखाई पड़ रही थी. खेत के दूसरी तरफ़ ट्रेन की पटरी है जो 30-40 फ़ीट की दूरी पर है. जहां से नियमित तौर पर ट्रेन गुजरती है.

इन खेतों के बाउंड्री पत्थरों की दीवार से बनाई गई जिसकी ऊँचाई लगभग तीन फ़ीट की है. पारूल के मामा हाथ से इशारा करते हुए बताते हैं कि यहाँ बच्ची के कपड़ों के चिथड़े मिले थे जिन्हें पुलिस ले गई. वहीं पर थोड़ी सी मिट्टी खुदी हुई थी, जिसके लिए बच्ची के मामा ने बताया कि यहाँ से पुलिस ही मिट्टी लेकर गई है.

ट्रांसफार्मर
ट्रांसफार्मर

खेत के सीधे हाथ लगभग 35-40 फ़ीट बढ़ने पर एक बड़ा सा बिजली का ट्रांसफार्मर है, जो खेत की बाउंड्री के इस पार है. लेकिन उसकी ऊँचाई छह फ़ीट से कम नहीं थी. ट्रांसफार्म से लगभग 50 से 60 फ़ीट की दूरी पर बच्ची अपनी माँ को नग्न अवस्था में मिली, जो छाती के नीचले हिस्से से जली हुई थी.

ये घटना तीन हिस्सों में बटी हुई थी. एक वो जहां बच्ची के कपड़े मिले, दूसरा वो जहां बच्ची मिली और तीसरा था ट्रांसफार्मर.

ट्रांसफार्मर एकदम साफ़-सुथरा था, जहां पर जलने जैसा कुछ प्रतीत नहीं हुआ. बच्ची के पिता ने अपनी बातों में ज़िक्र किया था कि पुलिस इसे करंट लगने का मामला बता रही थी. लेकिन यहाँ ये समझना थोड़ा मुश्किल था कि अगर बच्ची को करंट लगा तो उसके कपड़े ट्रांसफार्मर के बायीं ओर तीस-चालीस फुट दूर कैसे मिलते? बच्ची ख़ुद ट्रांसफार्मर की बायीं ओर 50-60 फीट दूर कैसे पहुँचती? इसके साथ ही ट्रांसफार्मर खेत के बाउंड्री के बाहरी ओर है, अगर करंट लगा तो बच्ची अंदर की तरफ़ कैसे पहुँची? एक चौंकाने वाली बात ये भी थी कि ट्रांसफार्मर की ऊँचाई लगभग छह फ़ीट से ज़्यादा थी तो बच्ची वहाँ तक कैसे पहुँची?

ये कुछ ऐसे सवाल थे जिनके जवाब या तो पुलिस दे सकती थी या ख़ुद आरोपी. इसके लिए हम दोनों ही ओर रुख़ कर आगे बढ़े.

पुलिस स्टेशन पीड़ित परिवार से कुछ ही दूरी पर था. एक पुलिस अधिकारी से पूछा की पारूल मीणा केस के बारे में बात करनी है. उन्होंने बताया कि सीओ साहब इस पर बार करेंगे लेकिन आगे एक अन्य अधिकारी ने बताया कि वो अभी पाँच मिनट पहले निकले हैं आप फ़ोन पर बात कर लें. उन्होंने फ़ोन पर बताया कि मैं आउट ऑफ स्टेशन हूँ.आप एसपी साहब से बात कर लीजिए. उन्हें भी फ़ोन किया गया लेकिन उन्होंने किसी भी तरह के सवाल के जवाब देने से मना कर दिया. आग्रह किया कि क्या आप इतना बता सकते हैं कि क्या पॉस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई है तो उन्होंने कहा कि हाँ गई है लेकिन उसमें रेप नहीं आया है.

इस सवाल पर मेरा एक सवाल ये उठा कि जब बच्ची का प्राइवेट पार्ट ही जल गया है तो रेप का कैसे पता चलता? ऐसे में एसपी बृजेश ज्योति उपाध्याय ग़ुस्से में कहते हैं कि अगर आपको इतने सवाल करने हैं तो मैं प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर लेता हूँ. अभी जाँच चल रही है इसलिए मैं कुछ नहीं बता पाऊँगा और फ़ोन काट दिया जाता है.

कई सवाल जो दिमाग़ में थे उनका जवाब तो नहीं मिला लेकिन आरोपी परिवार का इस घटना पर क्या कहना है वो जानने के लिए उनसे बात करना ज़रूरी था. लेकिन उनका नंबर देने से पुलिस अधिकारियों ने तो मना कर दिया लेकिन कई तरह की जद्दोजहद के बाद उनके घर पहुँचे. वहाँ उनकी बीवी, भाई, भाई की बीवी और दोनों भाइयों के बच्चे थे.

आरोपी ललित शर्मा की पत्नी
आरोपी ललित शर्मा की पत्नी

ललित शर्मा की बीवी 37 साल की हैं और उनके तीन बच्चे हैं,. बड़ी बेटी 18 साल की है. ललित शर्मा की बीवी ने बताया कि उन्हें इस बारे में तीन चार दिन बाद ये पता चला कि किसी बच्ची को जला दिया गया है. लेकिन ये नहीं पता था कि इसका आरोप मेरे पति पर लगेगा. उन पर ये आरोप झूठा लगाया गया है. वे अपनी दुकान के अलावा कहीं जाते ही नहीं है. वो 9 तारीख़ को भी यहीं दुकान पर थे. हमारी परचून (जनरल स्टोर) की दुकान है, जो यहीं घर में ही बनी है.

वे कहती हैं कि मेरे पति 40 साल से ज़्यादा के हैं और जब बच्चों को पता चला तो वो रोने लगे. अपनी बात बताते बताते वो सिसक सिसक कर रोने लगती हैं और इतने में बात करने के लिए ललित के छोटे भाई आते हैं.

जब उनसे पूछा गया कि क्या आप पीड़ित परिवार को पहले से जानते हैं तो उन्होंने मना कर दिया. उनकी ख़ुद की भी कपड़ों की दुकान है.

उन्होंने बताया कि वहाँ जो खेत है, वो माँ सँभालती हैं और वहाँ काम भी माँ करती है. वे कहते हैं, ‘हम ना उनको जानते हैं ना पहचानते हैं लेकिन वो हमारा क्यों नाम ले रहे हैं ये हम नहीं जानते. मेरे भाई ऐसा नहीं कर सकते’.

जनरल स्टोर घर में ही बना हुआ है. घर के बाहर से देखने पर तीन शटर लगे हुए हैं. एक दुकान में परचून का सामान था. खाने बनाने, मसाले, चिप्स, पानी आदि के साथ कुछ बोतलें थी जिसमें कुछ भरा हुआ था. जब दुकान की तस्वीरें ले रही थी तो ललित की पत्नी भी वहीं आ जाती हैं और कहती हैं कि ‘वो तो इतने सीधे हैं कि अगर यहाँ छिपकली भी आ जाती है तो वो भी मैं ही भगाती हूँ!’

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