MP: मुस्लिम युवक और हिन्दू युवती के विवाह अनुमति याचिका को हाईकोर्ट ने क्यों किया खारिज, जानिए इसकी वजह?

कोर्ट ने कहा- "युवक-युवती लिव इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं, लेकिन धर्म बदले बिना शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ है, इसलिए ऐसी शादी को वैध नहीं माना जा सकता।"
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट.
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट.

भोपाल। मध्य प्रदेश के जबलपुर हाईकोर्ट ने मुस्लिम युवक और हिंदू युवती के द्वारा विवाह अनुमति के लिए लगाई गई याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा- "मुस्लिम युवक और हिंदू युवती आपस में शादी कर सकते हैं, बशर्ते उन्हें धर्म बदलना होगा। यानी बिना धर्म बदले शादी अवैध होगी। यह विवाह मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत नहीं है। क्योंकि शादी के बाद होने वाले बच्चों को संपत्ति का अधिकार नहीं मिलेगा।" यह कहते हुए जस्टिस जीएस अहलूवालिया की कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

दरअसल, अनूपपुर में रहने वाले 29 साल के मुस्लिम युवक और 25 साल की हिंदू युवती एक-दूसरे से प्यार करते हैं। दोनों शादी भी करना चाहते हैं। शर्त यह है कि शादी के बाद दोनों एक-दूसरे का धर्म नहीं छोड़ना चाहते। यानी वे अपने-अपने धर्म का पालन करेंगे। उनके परिवार वाले भी शादी के लिए तैयार नहीं हैं।

सबसे पहले, 25 अप्रैल 2024 को उन्होंने अनूपपुर कलेक्टर ऑफिस में आवेदन दिया था। इसमें पुलिस सुरक्षा की मांग करते हुए शादी की अनुमति मांगी। कलेक्टर ने सुरक्षा देने से इनकार कर दिया। साथ ही, विवाह की मंजूरी भी नहीं दी। उन्होंने 27 अप्रैल 2024 को विवाह की अनुमति के लिए हाईकोर्ट में याचिका लगा दी।

युवक-युवती की ओर से हाईकोर्ट में दिनेश कुमार उपाध्याय ने पैरवी की। कोर्ट में दलील दी गई कि भारतीय कानून में विशेष विवाह अधिनियम में इस तरह का विवाह संभव है। वकील ने कोर्ट को बताया कि कपल को पुलिस सुरक्षा दी जानी चाहिए, ताकि वे विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी को रजिस्टर्ड करा सकें।

वहीं, सरकारी वकील केएस बघेल ने तर्क दिया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में इसकी इजाजत नहीं है कि कोई मुस्लिम लड़का किसी मूर्ति पूजक हिंदू लड़की से विवाह कर सके। जब तक युवती अपना धर्म छोड़कर मुस्लिम धर्म नहीं अपनाती, तब तक विवाह मुस्लिम विवाह अधिनियम के तहत रजिस्टर नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने दोनों अधिवक्ताओं के तर्क सुनकर, सुनवाई के अंत में कहा कि युवक-युवती लिव इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं, लेकिन धर्म बदले बिना शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ है, इसलिए ऐसी शादी को वैध नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि ऐसे में वह स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी का रजिस्ट्रेशन करवाने की मांग पर दखल नहीं देगा।

युवती के पिता ने किया था विरोध

सुनवाई के दौरान कोर्ट में युवती के पिता भी मौजूद रहे। उन्होंने भी शादी का विरोध किया। उन्होंने आशंका जताई कि अगर अंतजार्तीय विवाह हुआ तो समाज में उनका बहिष्कार कर दिया जाएगा। कुछ दिन पहले दोनों शादी के लिए घर से भाग गए थे। युवती के पिता का दावा है कि इस दौरान युवती घर से सोने-चांदी के गहने और नकदी ले गई थी।

कोर्ट ने सभी तर्को को सुनने के बाद कहा- "मुस्लिम युवक और हिंदू युवती आपस में शादी कर सकते हैं, बशर्ते उन्हें धर्म बदलना होगा। यानी बिना धर्म बदले शादी अवैध होगी। यह विवाह मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत नहीं है। क्योंकि शादी के बाद होने वाले बच्चों को संपत्ति का अधिकार नहीं मिलेगा।" यह कहते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने हिंदू युवती और मुस्लिम युवक की शादी की अनुमति की याचिका को खारिज कर दिया। गुरुवार को यह आदेश जस्टिस जीएस अहलूवालिया की कोर्ट ने दिया। मामले की सुनवाई 25 मई को हुई थी। जिसका आदेश 27 मई को अपलोड किया गया था।

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