उत्तर प्रदेश: ट्रेन के आगे कूद कर जान देने वाली 3 लड़कियों का क्या है पूरा मामला?

यूपी के मथुरा में तीन नाबालिग लड़कियों ने एक साथ ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली थी। वहीं जालौन जिले में दो नौजवान युवकों ने जहर खाकर एक साथ आत्महत्या कर ली थी।
ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या करने वाली नाबालिग बच्चियां
ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या करने वाली नाबालिग बच्चियां तस्वीर- द मूकनायक

उत्तर प्रदेश। यूपी के मथुरा जिले में पांच दिन पहले रेलवे ट्रैक पर एक साथ तीन नाबालिग लड़कियों ने एक साथ ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली थी। वहीं जालौन जिले में दो नौजवान युवकों ने जहर खाकर एक साथ आत्महत्या कर ली थी। बताया जा रहा है कि यह दोनों ही घटनाएं धार्मिक और आध्यात्मिकता से जुड़ी हुई थीं। मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि ऐसे मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। किसी व्यक्ति के मन में ऐसे विचार तब आते हैं जब कोई व्यक्ति वास्तविक जीवन और कठिनाइयों से बचने के लिए अध्यात्म का सहारा लेता है और इसका शिकार हो जाता है।

सामाजिक दूरी भी इसके लिए उत्तरदायी है। जिसके कारण व्यक्ति मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर होता जा रहा है। वह अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं करता है।

आइये जाने दोनों मामले क्या हैं ?

बीते 24 मई को मथुरा-आगरा रेलवे ट्रैक पर तीन नाबालिग बच्चियों के शव मिले थे। पुलिस को पहले लगा कि मथुरा के आसपास की ही रहने वाली लड़कियों ने ट्रेन के आगे कूदकर सुसाइड किया होगा, लेकिन जब एक लड़की के कपड़े पर लगे टैग को पुलिस ने देखा तो वह चौंक गई। टैग बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के एक टेलर का था। पुलिस भी सोच में पड़ गई कि अगर ये तीनों मुजफ्फरपुर की रहने वाली हैं तो यहां आकर सुसाइड क्यों किया?

जिसके बाद मथुरा पुलिस ने बिहार की मुजफ्फरपुर पुलिस से संपर्क किया। मथुरा पुलिस के एसएसपी के आदेश पर एक पुलिस टीम सीधे मुजफ्फरपुर पहुंच गई। जांच में पता चला कि अखाड़ा घाट की रहने वाली तीन लड़कियां माही (16), गौरी (14) और माया (13) बीते 13 मई को एक साथ लापता हुई थीं। पुलिस ने जब घरवालों को घटना की जानकारी दी और लड़कियों की फोटो दिखाई तो वह भी सकते में आ गए। पुलिस परिवार के लोगों को लेकर सीधे मथुरा पहुंच गई।

धर्म और अध्यात्म की तरफ झुकाव

पुलिस की पड़ताल में पता लगा कि माही के घर के बगल में दो सगी बहनें गौरी और माया रहती थीं। तीनों में अच्छी दोस्ती थी। माही बहुत छोटी थी, जब उसकी मां ने दुनिया छोड़ दी थी। मां की मौत के बाद माही के जीवन में भटकाव आने लगा। भक्ति में डूबी माही के दिमाग में यह बैठ गया कि यह शरीर नश्वर है। कभी मरता नहीं, अमरत्व प्राप्त करता है। धीरे-धीरे उसका धर्म और अध्यात्म की तरफ झुकाव हो गया। वह हमेशा कृष्ण भक्ति में डूबी रहती थी और सत्संग, भजन सुना करती थी। माही को देखकर गौरी और माया भी उसी के रंग में रंग गई थीं। वह दोनों भी माही के साथ सत्संग, भजन सुनने के साथ-साथ ध्यान लगाया करती थीं।

मरी हुई मां से कैसे बात करती थी लड़की ?

पुलिस कि पूछताछ के दौरान परिजनों ने बताया कि चूंकि माही की मां इस दुनिया में नहीं थी, लेकिन माही पर भक्ति का ऐसा जुनून सवार था कि कभी-कभी वह कहती थी कि उसकी मां से भी बात होती है। परिजनों ने कहा कि माही के मुंह से यह सब सुनकर वह लोग चौंक जाते थे। वह 13 मई को गौरी और माया को लेकर घर से भाग निकली और ट्रेन से श्री कृष्ण की नगरी मथुरा तक पहुंच गई।

सुसाइड लेटर में क्या लिखा था ?

मथुरा पुलिस जब मुजफ्फरपुर में लड़कियों के घर गई हुई थी तो पुलिस को वहां गौरी और माया के घर से दो लेटर भी मिले थे। माया के लेटर में लिखा था कि, “हिमालय में बाबा ने बुलाया है। सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।” वहीं दूसरा लेटर गौरी का था। गौरी ने लिखा था कि, “सॉरी से कुछ नहीं होता। तुम मत मरना। तुम्हारी मौत से पहले मेरी मौत आ जाए। सॉरी मेरी वाइफ।”

13 मई से घर से गायब थीं तीनों लड़कियां

माही के पिता मनोज कुमार ने बताया कि बेटी 13 मई से घर से गायब थी। जब उसकी फोन से लोकेशन ट्रैक की गई तो आखिरी लोकेशन कानपुर में मिली थी। उसके बाद मोबाइल स्विच ऑफ हो गया था। मनोज कुमार ने कहा कि तीनों मथुरा कैसे पहुंचीं और आत्महत्या क्यों की, यह अभी तक समझ में नहीं आया है। वहीं गौरी के चाचा ने बताया कि बच्चियों की गुमशुदगी को लेकर मुजफ्फरपुर पुलिस ने हमारी कोई मदद नहीं की। यहां तक की FIR तक नहीं दर्ज की गई। अगर मथुरा पुलिस हमको ढूंढते-ढूंढते यहां न पहुंचती तो हमें पता भी नहीं चल पाता कि बच्चियां अब इन दुनिया में नहीं हैं।

मोबाइल पर स्टेटस लगाया- 'तुम अपने रास्ते, मैं अपने रास्ते' फिर कर ली आत्महत्या

जालौन जिले के कालपी कोतवाली क्षेत्र में एक साथ दो दोस्तों ने आत्महत्या कर ली। जांच के दौरान पता चला कि अमन और बालेंद्र में गहरी दोस्ती थी। अमन मेडिकल स्टोर का संचालन करता था और शादीशुदा था। वहीं, बालेंद्र की शादी नहीं हुई थी और बालेंद्र, अमन के पास आता जाता रहता था। दोनों मंगलवार को कब्रिस्तान गए जहां उन्होंने सल्फास खाकर जान दे दी।

अमन अपने पिता के साथ मेडिकल स्टोर में बैठता था, तो वहीं बालेंद्र घर पर रहता था। दोनों ही एक धर्म गुरू के प्रवचन से काफी प्रभावित थे। अमन ने सुसाइड करने से पहले तीन स्टेटस लगाए थे। पहले स्टेटस में लिखा- तुम अपने रास्ते, मैं अपने रास्ते। इस वीडियो में कुछ लोग एक लाश ले जाते दिख रहे हैं। वहीं दूसरे स्टेटस में लिखा- जीवन में ऐसा काम चुने, जो आपका आनंद हो, व्यवसाय नहीं। तीसरे स्टेटस में एक लाश जलती हुई का वीडियो लगाया।

वास्तविकता से दूर रहने लगे हैं युवा

मथुरा के मनोवैज्ञानिक चिकित्सक डॉ. धीरेंद्र कुमार द मूकनायक से बताते हैं कि, मोबाइल पर ज्यादा समय बिताने से वर्चुअल दुनिया में जुड़ाव ज्यादा होने लगता है। आभासी दुनिया में जीने की वजह से युवा जीवन के वास्तविक सरोकार से दूर रहने लगते हैं। ज्यादा रील और वीडियों देखने से मन और मष्तिष्क में आभासी दुनिया का प्रभाव बढ़ जाता है। सोशल मीडिया पर रील और धर्म गुरूओं के तथ्यों का अधूरा सच युवा पीढ़ी के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है। इस आभासी दुनिया को मनोरंजन का साधन मात्र मान कर न चलने की भूल करने वाले अक्सर अवसाद में रहने लगने हैं और इंसान की मनोदशा बदलने लगती है।

लखनऊ विवि के साइकोलॉजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर हंसिका सिंह द मूकनायक को बताती हैं, "इसे हम साइकोलॉजी में सनैटिज्म कहते हैं। हम लॉजिक नहीं लगाते हैं, हमारी सोच बहुत ज्यादा भावुक हो जाती है। धार्मिकता और अद्यात्मिकता दो अलग चीजे हैं। धार्मिकता में हम किसी धर्म के प्रति एक तरफा झुक जाते हैं। आध्यात्मिकता में हम बहुत सारे पहलू देखते हैं। इसमें हम तर्क के साथ किसी धर्म की तरफ झुकाव करते हैं। इसके आधार पर आत्महत्या जैसा कदम उठा लेना सनैटिक्स भाव को दर्शाता है। ऐसी चीजें आपकी तार्किक क्षमता को मार देती हैं। आपकी सोचने की क्षमता खत्म कर देता है। इसे धार्मिक अंधभक्ति कहते हैं। इसके लिए शिक्षा बहुत जरुरी है। सोशल मीडिया भी इसे प्रभावित करता है।"

लविवि करता है ऐसे विषयों पर काउंसलिंग

असिस्टेंट प्रोफेसर हंसिका सिंह कहती हैं, 'इस मामले में पैरेंटल काउंसलिंग करना जरुरी है। अपने परिजनों भाई-बहनों से बात करना जरुरी होता है। पहले सोशल मीडिया का कम था। इसलिए लोगों में फिजिकल एक्टिविटी ज्यादा होती थी, लेकिन अब लोग सोशल मीडिया की तरफ ज्यादा झुक गए हैं। लविवि ऐसे मामलों के लिए काउंसलिंग कराता है। हम योग कार्यक्रम चलाते हैं। इसके साथ ही समय समय पर काउंसलिंग भी करते हैं। हमारे विवि में इसके लिए काउंसलिंग सेल भी है।"

हंसिका बताती हैं कि, "मोबाइल देखने के घंटे तय किए जाने चाहिए। रील देखने की जगह अगर आप किसी किताब को पढ़ेंगे, तो उससे बौद्धिक क्षमता का विकास होने के साथ किसी भी विषय की पूरी जानकारी मिल सकेगी।"

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