सिस्टम की शर्मनाक तस्वीर: एंबुलेंस नहीं मिली तो सब्जी के थैले में 4 महीने के बच्चे का शव ले जाने को मजबूर हुआ आदिवासी परिवार

सदर अस्पताल में एंबुलेंस नदारद: 80 किमी तक बस में सब्जी के थैले में मासूम का शव ले जाने को मजबूर हुआ आदिवासी परिवार, स्वास्थ्य मंत्री ने दिए जांच के आदेश।
Mortuary van unavailable, Adivasi family made to carry baby’s body home in vegetable bag
Jharkhand Shocker: एंबुलेंस नहीं मिली, सब्जी के थैले में बच्चे का शव ले जाने को मजबूर हुआ पिता(Ai Image)
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पश्चिमी सिंहभूम: एक सब्जी का थैला। सुनने में यह बेहद साधारण लगता है, लेकिन झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में एक आदिवासी 'हो' (Ho) परिवार के लिए यह थैला उनकी बेबसी और सिस्टम की नाकामी का प्रतीक बन गया। एंबुलेंस उपलब्ध न होने के कारण इस परिवार को अपने चार महीने के मृत बच्चे के शव को घर ले जाने के लिए इसी सब्जी के थैले का इस्तेमाल करना पड़ा।

यह घटना 19 दिसंबर की है, जब चाईबासा के पास बाला बारीजोड़ी गांव के रहने वाले डिंबा चतोंबा और उनकी पत्नी रायबारी चतोंबा को अपने नवजात शिशु का शव एक थैले में ले जाने के लिए कहा गया। यह मामला एक बार फिर यह उजागर करता है कि कैसे अत्यधिक गरीबी और स्वास्थ्य व्यवस्था में मौजूद खामियां लोगों को मृत्यु के बाद भी सम्मान से वंचित कर रही हैं।

क्या है पूरा मामला?

घटना के बाद उपजे आक्रोश ने राज्य सरकार को "सुधारात्मक उपाय" घोषित करने पर मजबूर कर दिया है। डिंबा ने बताया कि इस महीने की शुरुआत में जब उनके चार महीने के बच्चे को तेज बुखार हुआ और उसने पांच दिनों तक कुछ नहीं खाया, तो स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों ने उन्हें बच्चे को जिला अस्पताल ले जाने की सलाह दी और एंबुलेंस का इंतजाम भी कराया।

बच्चे का इलाज सदर अस्पताल में चल रहा था, लेकिन दुर्भाग्यवश 19 दिसंबर को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। अस्पताल के दस्तावेजों में मौत की पुष्टि की गई है, हालांकि मृत्यु के कारण का उल्लेख नहीं किया गया था।

बच्चे की मौत के बाद, परिवार ने शव वाहन (mortuary van) की मांग की, लेकिन कथित तौर पर उन्हें बताया गया कि कोई वाहन उपलब्ध नहीं है।

"खुले में शव ले जाओगे तो बस में नहीं चढ़ने देंगे"

पिता डिंबा चतोंबा ने अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा, "अस्पताल के कर्मचारियों ने हमसे कहा कि अगर हम बच्चे के शव को खुले में ले जाने की कोशिश करेंगे, तो हमें बस में चढ़ने नहीं दिया जाएगा।"

इसके बाद जो हुआ वह और भी अधिक दिल तोड़ने वाला था। कथित तौर पर अस्पताल के कर्मचारियों ने आपस में 400 रुपये जमा किए। इन पैसों से उन्होंने एक सब्जी का थैला और दंपति के लिए बस का टिकट खरीदा। बच्चे के शव को उस थैले में रखा गया और लाचार माता-पिता को लगभग 80 किलोमीटर दूर उनके घर के लिए रवाना कर दिया गया।

इस मामले पर पश्चिमी सिंहभूम की सिविल सर्जन भारती मिंज, सब-डिविजनल ऑफिसर और डिप्टी कमिश्नर से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी।

पड़ोसियों ने बताया- यह आम समस्या है

डिंबा के पड़ोसी, जोगो चतोंबा ने बताया कि इस इलाके में शव वाहन का न मिलना कोई नई बात नहीं है, यह एक सामान्य समस्या बन चुकी है। उन्होंने कहा, "ज्यादातर मामलों में, खराब सड़कों का हवाला देकर ड्राइवर ईंधन के लिए एक्स्ट्रा पैसों की मांग करते हैं, या फिर साफ मना कर देते हैं।" जोगो ने दुख जताते हुए कहा कि एक बच्चे के शव को थैले में ले जाना अकल्पनीय है और यह बेहद अपमानजनक है।

सरकार का एक्शन और मंत्री का बयान

इस घटना के बाद मचे बवाल के बीच, स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने घोषणा की है कि सरकार 15 करोड़ रुपये की लागत से हर जिला अस्पताल के लिए चार शव वाहन खरीदेगी, ताकि "आपात स्थिति में परिवारों को अपमान का सामना न करना पड़े।"

हालांकि, मंत्री ने यह भी दावा किया कि घटना की जांच में पाया गया कि परिवार "एंबुलेंस का इंतजार किए बिना" खुद ही चला गया था। उन्होंने कहा कि उस समय दो शव वाहन उपलब्ध थे, जिनमें से "एक तकनीकी कारणों से खराब था, जबकि दूसरा रास्ते में था।"

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