मध्यप्रदेश में एनीमिया का संकट! हर दूसरा बच्चा और हर तीसरी महिला खून की कमी से जूझ रही

स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि डिजिटल जांच से न केवल आंकड़े अधिक सटीक हुए हैं, बल्कि गंभीर मामलों की पहचान भी जल्दी हो पा रही है।
MP में हर दूसरा बच्चा और हर तीसरी महिला खून की कमी से जूझ रही
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भोपाल। मध्यप्रदेश में पोषण और सेहत को लेकर आई ताज़ा रिपोर्ट ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि सरकारी योजनाओं और अभियानों के बावजूद कुपोषण और एनीमिया जैसी समस्याएं जड़ से क्यों खत्म नहीं हो पा रहीं। एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम 2025–26 की हालिया स्क्रीनिंग रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश की बड़ी आबादी आज भी खून की कमी से जूझ रही है, जिसका सीधा असर बच्चों के शारीरिक-मानसिक विकास और महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में पांच वर्ष से कम उम्र के हर 10 में से 5 बच्चे (50%) एनीमिया से पीड़ित हैं। वहीं हर 10 में से 3 महिलाएं (30%) खून की कमी से जूझ रही हैं। यह स्थिति केवल स्वास्थ्य का मामला नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक असमानता, पोषण की कमी और जागरूकता के अभाव की भी तस्वीर पेश करती है।

द मूकनायक से बातचीत डॉ. मनीष राठौर ने बताया, एनीमिया का असर सिर्फ कमजोरी या थकान तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह बच्चों की सीखने की क्षमता, याददाश्त और मानसिक विकास को भी प्रभावित करता है। महिलाओं में एनीमिया गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं, प्रसव के समय जोखिम और मातृ मृत्यु दर बढ़ने का कारण बन सकता है।

अभियान से लाभ का दावा!

इस चिंताजनक स्थिति के बीच एक राहत की खबर भी है। मध्यप्रदेश ‘एनीमिया मुक्त भारत’ अभियान के क्रियान्वयन में लगातार छह महीनों से देशभर में प्रथम स्थान पर बना हुआ है। यह उपलब्धि जमीनी स्तर पर काम कर रहे हेल्थ वर्कर्स, आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के प्रयासों का नतीजा मानी जा रही है।

प्रदेश के उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने इसे स्वास्थ्य तंत्र की प्रतिबद्धता और टीमवर्क का परिणाम बताया है। उनके अनुसार, समय पर स्क्रीनिंग, डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल और उपचार तक त्वरित पहुंच ने इस अभियान को प्रभावी बनाया है।

दस्तक अभियान: 70 लाख से अधिक बच्चों की डिजिटल जांच

वित्तीय वर्ष 2025–26 के दौरान चलाए गए ‘दस्तक अभियान’ के तहत प्रदेश में 70.62 लाख बच्चों की जांच डिजिटल हीमोग्लोबिनोमीटर से की गई। जांच में सामने आया कि 35.21 लाख बच्चों में एनीमिया की पुष्टि हुई, जिनका तत्काल उपचार शुरू कर दिया गया है।

इसी तरह 9.42 लाख गर्भवती महिलाओं की स्क्रीनिंग में 3 लाख से अधिक महिलाएं मध्यम से गंभीर एनीमिया से ग्रसित पाई गईं। इन महिलाओं को स्थिति की गंभीरता के अनुसार आयरन सुक्रोज इंजेक्शन और जरूरत पड़ने पर रक्ताधान जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं।

स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि डिजिटल जांच से न केवल आंकड़े अधिक सटीक हुए हैं, बल्कि गंभीर मामलों की पहचान भी जल्दी हो पा रही है।

सिर्फ इलाज नहीं, जागरूकता भी जरूरी

विशेषज्ञों का मानना है कि एनीमिया की समस्या का समाधान केवल दवाओं से संभव नहीं है। इसके लिए संतुलित आहार, साफ-सफाई, समय पर जांच और खान-पान को लेकर जागरूकता उतनी ही जरूरी है। ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में आज भी आयरन-युक्त भोजन की कमी, एकरस आहार और गरीबी एनीमिया की बड़ी वजह बनी हुई है।

एनीमिया से बचाव कैसे?

अंजीर और चुकंदर जैसे खाद्य पदार्थ आयरन, फोलेट और अन्य आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, जो नियमित सेवन करने पर हीमोग्लोबिन बढ़ाने में सहायक माने जाते हैं। अंजीर खून की कमी को दूर करने में मदद करता है, वहीं चुकंदर शरीर में रक्त संचार को बेहतर बनाकर कमजोरी और थकान को कम करता है। केला और शकरकंद ऊर्जा का अच्छा स्रोत हैं, जिनमें मौजूद पोटैशियम और मैग्नीशियम मांसपेशियों को मजबूत रखने, थकावट कम करने और शरीर के इलेक्ट्रोलाइट संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वहीं लौकी हल्की, सुपाच्य और विटामिन-मिनरल से भरपूर सब्जी है, जो पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने के साथ-साथ कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण में भी मददगार मानी जाती है। इसके साथ ही नींबू और आंवला जैसे विटामिन-C युक्त खाद्य पदार्थ आयरन के अवशोषण को बढ़ाते हैं, जिससे शरीर को भोजन से मिलने वाला आयरन बेहतर तरीके से उपयोग हो पाता है। संतुलित आहार में इन सभी खाद्य पदार्थों को शामिल करने से शरीर की पोषण स्थिति मजबूत होती है और एनीमिया जैसी समस्याओं से बचाव में सहायता मिलती है।

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