
भोपाल। प्रमोशन में आरक्षण को लेकर चल रही कानूनी बहस के बीच अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ (आजक्स) ने कहा कि अनुसूचित वर्ग के 2अधिकारी-कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण मिलना चाहिए, क्योंकि यह संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार है और सामाजिक न्याय की मूल भावना से जुड़ा हुआ
दरअसल, प्रमोशन में आरक्षण को लेकर दायर याचिकाओं पर बीते गुरुवार को हाई कोर्ट जबलपुर में करीब दो घंटे तक विस्तृत सुनवाई चली थी। सुनवाई संजय सचदेवा की अध्यक्षता वाली डिविजन बेंच के समक्ष हुई। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि यह मामला प्रदेश के हजारों कर्मचारियों के भविष्य से जुड़ा है, इसलिए इसका शीघ्र निराकरण किया जाना आवश्यक है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि क्या 54 विभागों के करीब 1500 कैडर में किसी कर्मचारी का प्रमोशन वास्तव में आरक्षण के कारण प्रभावित हुआ है? इस पर याचिकाकर्ताओं ने वेटरिनरी, पीएचई, मेडिकल एजुकेशन, फॉरेस्ट, उद्यानिकी और मंत्रालय जैसे विभागों का उदाहरण दिया, लेकिन यह स्पष्ट नहीं कर पाए कि इन कैडर में प्रमोशन आरक्षण से किस तरह प्रभावित हुआ। कोर्ट ने इस बिंदु पर चिंता जताते हुए कहा कि केवल सैद्धांतिक आपत्ति के आधार पर पूरे प्रमोशन तंत्र को लंबे समय तक रोके रखना उचित नहीं है।
कैडर-वाइज प्रतिनिधित्व जरूरी
राज्य सरकार की ओर से के. वैद्यनाथन ने दलील दी कि प्रमोशन में आरक्षण से जुड़ा प्रतिनिधित्व कैडर-वाइज देखा जाना चाहिए, न कि पूरे विभाग या सेवा के आधार पर। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जरनैल सिंह-2 फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इसी सिद्धांत के आधार पर राज्य सरकार ने अपनी नीति तैयार की है।
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि आरक्षण के कारण किसी वर्ग के साथ अन्याय नहीं किया जा रहा, बल्कि संवैधानिक प्रावधानों के तहत सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है।
प्रमोशन पर रोक से प्रशासन प्रभावित
सुनवाई के दौरान सरकार ने जो आंकड़े पेश किए, वे बेहद चौंकाने वाले रहे। सरकार ने बताया कि प्रदेश में कुल 9.50 लाख पद स्वीकृत हैं, लेकिन इनमें से केवल 6.45 लाख पदों पर ही कर्मचारी कार्यरत हैं। प्रमोशन पर लंबे समय से लगी रोक के कारण करीब 3 लाख पद खाली पड़े हैं।
सबसे अधिक असर वर्ग-2 और वर्ग-4 के कर्मचारियों पर पड़ा है। इन वर्गों के लगभग 2.90 लाख कर्मचारियों का प्रमोशन वर्षों से अटका हुआ है। सरकार का कहना है कि इससे न केवल कर्मचारियों का मनोबल गिरा है, बल्कि प्रशासनिक कामकाज भी गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है।
डिविजन बेंच ने कहा कि प्रमोशन में आरक्षण का मामला केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने संकेत दिए कि वह इस पूरे मामले को प्राथमिकता के आधार पर सुनेगा, ताकि कर्मचारियों के भविष्य पर लंबे समय से बना असमंजस खत्म हो सके।
मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी को तय की गई है। माना जा रहा है कि उस दिन कोर्ट सरकार और याचिकाकर्ताओं दोनों से और ठोस आंकड़े व उदाहरण पेश करने को कह सकता है।
कुल मिलाकर, प्रमोशन में आरक्षण का यह मामला न सिर्फ कर्मचारियों के करियर से जुड़ा है, बल्कि प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था और संवैधानिक संतुलन की भी एक बड़ी परीक्षा बन चुका है।
अनुसूचित वर्ग के अधिकारी कर्मचारियों को आरक्षण मिलना चाहिए- आजक्स
द मूकनायक से बातचीत करते हुए अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ (आजक्स) के प्रवक्ता विजय शंकर श्रवण ने कहा कि अनुसूचित वर्ग के अधिकारी और कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण मिलना चाहिए, क्योंकि यह केवल एक नीतिगत फैसला नहीं बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) और 16(4A) में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की व्यवस्था की गई है, जिसमें प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान भी शामिल है।
विजय शंकर श्रवण ने कहा कि दशकों से अनुसूचित वर्ग के कर्मचारी प्रशासनिक ढांचे में निचले पदों पर ही सीमित रह जाते हैं। यदि प्रमोशन में आरक्षण नहीं दिया जाएगा तो उच्च पदों पर उनकी भागीदारी सुनिश्चित नहीं हो पाएगी, जिससे सामाजिक न्याय की मूल भावना ही प्रभावित होगी। उन्होंने कहा कि प्रमोशन में आरक्षण का उद्देश्य किसी वर्ग का अधिकार छीनना नहीं, बल्कि ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों को निर्णय प्रक्रिया में उचित प्रतिनिधित्व देना है।
आजक्स प्रवक्ता ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों में यह स्पष्ट किया गया है कि राज्य सरकारें पर्याप्त आंकड़ों और कैडर-वाइज स्थिति के आधार पर प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान कर सकती हैं। मध्यप्रदेश में लंबे समय से प्रमोशन पर रोक के कारण लाखों कर्मचारी मानसिक और आर्थिक तनाव से गुजर रहे हैं। इसका सीधा असर प्रशासनिक कार्यक्षमता पर भी पड़ रहा है।
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