
भोपाल। मध्य प्रदेश के इंदौर में जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) छात्र संगठन ने आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति, हॉस्टल भत्ता और अन्य शैक्षणिक योजनाओं में हो रही लापरवाहियों के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन शुरू कर दिया है। बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं मंगलवार को टंट्या भील चौराहे से पैदल मार्च निकालते हुए कलेक्टर कार्यालय पहुंचे, जहां उन्होंने जमीन पर बैठकर नारेबाजी की और सरकार से अपनी मांगें पूरी करने की अपील की।
जयस छात्र संगठन के जिला अध्यक्ष पवन अहिरवाल ने कहा कि “साल 2022 से लेकर 2025 तक एससी-एसटी वर्ग के छात्रों की छात्रवृत्ति अब तक नहीं आई है। इस वजह से निजी कॉलेज मनमानी कर रहे हैं। छात्रों से मोटी फीस जमा करने का दबाव बनाया जा रहा है और जो फीस नहीं दे पा रहे हैं, उन्हें परीक्षा में बैठने से रोका जा रहा है।”
उन्होंने आगे कहा कि पहले छात्रों को स्टेशनरी का पैसा भी मिलता था, लेकिन अब वह योजना भी बंद कर दी गई है। “दिव्यांग विद्यार्थियों को मिलने वाला भत्ता भी बंद कर दिया गया है। सरकार का आदिम जाति कल्याण विभाग अब अन्य विभागों में फंड ट्रांसफर कर रहा है, जिससे मूल लाभार्थी वंचित रह गए हैं।”
तीन साल से छात्रवृत्ति नहीं आई, परीक्षा में बैठने नहीं दे रहे कॉलेज
प्रदर्शन में शामिल एक छात्रा लक्ष्मी चौहान ने मीडिया से कहा, “तीन साल से छात्रवृत्ति नहीं मिल रही है। कॉलेज फीस जमा करने के लिए रोज दबाव डालते हैं। अगर समय पर फीस नहीं दी तो एग्जाम में बैठने नहीं देते। सरकार ने छात्रवृत्ति देने में इतनी देरी क्यों की? गरीब छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है।”
वहीं एक अन्य आदिवासी छात्र ने बताया कि “हमारे माता-पिता मजदूरी करके हमें पढ़ने के लिए इंदौर भेजते हैं। यहां रहना और खाना बहुत महंगा है। अब जब छात्रवृत्ति नहीं मिल रही, तो फीस भरना असंभव हो गया है। कई छात्रों के एग्जाम फॉर्म तक अप्रूव नहीं हुए हैं। सरकार शिक्षा की बात तो करती है, पर छात्रों को उनके अधिकार से वंचित रख रही है।”
छात्रों की प्रमुख मांगें
- साल 2022-23, 2023-24 और 2024-25 के हजारों छात्रों की छात्रवृत्ति राशि तत्काल जारी की जाए।
- MPTASK पोर्टल पर Hostel Allowance की प्रक्रिया पिछले तीन सालों से बंद है, इसे पुनः शुरू किया जाए।
- दिव्यांग छात्रों का भत्ता पुनः चालू किया जाए।
- स्टेशनरी योजना को फिर से लागू किया जाए, जिससे सरकारी कॉलेजों के छात्रों पर आर्थिक बोझ कम हो।
- छात्रवृत्ति न मिलने की स्थिति में विश्वविद्यालयों द्वारा छात्रों को परीक्षा से वंचित करना बंद किया जाए- यह शिक्षा के अधिकार (Right to Education) पर सीधा प्रहार है।
- निजी कॉलेजों द्वारा अवैध शुल्क वसूली की जांच कर सख्त कार्रवाई की जाए।
- सरकारी स्कूलों की छात्रवृत्ति व स्टेशनरी योजनाएं तत्काल पुनः लागू की जाएं।
सोशल मीडिया से शुरू हुआ आंदोलन
जयस संगठन ने इस प्रदर्शन को लेकर पहले सोशल मीडिया पर अभियान चलाया था, जिसमें बड़ी संख्या में छात्र नेताओं और युवाओं ने जुड़ने की अपील की। साथ ही छात्रों ने अपने अनुभव साझा किए और सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की।
संगठन के अनुसार, “सरकारी योजनाओं के ठप पड़ने से गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र उच्च शिक्षा जारी नहीं रख पा रहे हैं। कई छात्र फीस न भर पाने की स्थिति में कॉलेज छोड़ने को मजबूर हैं। यह सरकार की शैक्षणिक असमानता को बढ़ाने वाली नीतियों का नतीजा है।”
प्रशासनिक उदासीनता पर उठे सवाल
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि पिछले कई महीनों से वे जिला प्रशासन और आदिम जाति कल्याण विभाग के अफसरों से मुलाकात कर चुके हैं, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। छात्रों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही मांगें पूरी नहीं की गईं तो आंदोलन प्रदेशव्यापी होगा।
छात्रों का कहना है कि जिस विभाग का उद्देश्य आदिवासी और पिछड़े वर्गों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना है, वही विभाग अब बजट की कमी का बहाना बनाकर योजनाओं को रोक रहा है।
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