
भोपाल। मध्यप्रदेश के सरकारी और निजी नर्सिंग कॉलेजों में पिछले कुछ वर्षों से चला आ रहा फर्जीवाड़ा अब प्रवेश प्रक्रिया पर सीधा असर डाल रहा है। वर्ष 2025 के सत्र में स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि प्रदेशभर में नर्सिंग कोर्स की कुल 33 हजार सीटों में से चार हजार सीटों पर भी प्रवेश नहीं हो पाए हैं। अंतिम चरण की काउंसलिंग पूरी हो चुकी है, लेकिन कॉलेजों में दाखिले न के बराबर हैं। यही वजह है कि इंडियन नर्सिंग काउंसिल (INC) ने प्रवेश की अंतिम तारीख 30 नवंबर तक बढ़ा दी है।
नर्सिंग शिक्षा की साख प्रदेश में बुरी तरह प्रभावित हुई है। नर्सिंग काउंसिल के अधिकारियों के मुताबिक, पिछले वर्ष की तुलना में इस बार और भी कम प्रवेश हुए हैं। एक समय था जब प्रदेश में हर साल 40 से 45 हजार सीटों पर छात्र प्रवेश लेते थे, लेकिन अब हालात बिल्कुल उलट हैं। वर्ष 2022 में, ला स्टूडेंट एसोसिएशन ने जबलपुर हाईकोर्ट में एक याचिका लगाकर उन कॉलेजों की सूची सौंपी थी जो बिना आवश्यक मानकों के संचालित हो रहे थे।
कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंपी। जांच के बाद करीब 200 से अधिक नर्सिंग कॉलेजों को बंद करना पड़ा, क्योंकि उनमें न तो आवश्यक फैकल्टी थी, न ही इंफ्रास्ट्रक्चर। इस कार्रवाई के बाद मध्यप्रदेश के नर्सिंग कॉलेजों की साख देशभर में गिर गई। परिणामस्वरूप, अब दूसरे राज्यों के विद्यार्थी यहां दाखिला लेने से कतराने लगे हैं, जबकि इसके उलट, मध्यप्रदेश के छात्र राजस्थान, छत्तीसगढ़, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की ओर रुख कर रहे हैं।
12 प्रतिशत सीटों पर ही एडमिशन
प्रदेश में नर्सिंग पाठ्यक्रमों की दो मुख्य श्रेणियां हैं, बीएससी नर्सिंग और जीएनएम (डिप्लोमा)। वर्ष 2024 में सरकारी व निजी संस्थानों की कुल 19,212 सीटों में से केवल 3,030 यानी 16 प्रतिशत सीटों पर ही प्रवेश हुआ था। जबकि वर्ष 2025 में स्थिति और खराब रही। इस साल 22,880 सीटों में से मात्र 2,843 यानी 12 प्रतिशत सीटों पर ही छात्रों ने प्रवेश लिया।
इन आंकड़ों से साफ है कि नर्सिंग क्षेत्र में विद्यार्थियों की रुचि लगातार घट रही है। फर्जीवाड़े की वजह से कॉलेजों की मान्यता रद्द होने, फीस विवाद, और डिग्री की वैधता पर सवालों ने इस कोर्स को अविश्वसनीय बना दिया है।
अस्पतालों को नर्स कहाँ से मिलेंगी?
आने वाले वर्षों में अस्पतालों को प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ कहाँ से मिलेगा? प्रदेश में नए सरकारी व निजी अस्पताल तेजी से खुल रहे हैं, लेकिन नर्सिंग स्टाफ की भारी कमी है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हर साल करीब 10 हजार नर्सों की जरूरत पड़ती है, लेकिन नर्सिंग कॉलेजों से पास होने वाले छात्रों की संख्या घट रही है।
जानिए क्या है नर्सिंग घोटाला?
साल 2020-21 में कोरोना काल के दौरान कुछ अस्पताल खोले गए थे। इसी की आड़ में कई नर्सिंग कॉलेज भी खोल दिए गए थे। कॉलेज खोलने के लिए मेडिकल यूनिवर्सिटी और चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा बनाए नियमों के मुताबिक नर्सिंग कॉलेज खोलने के लिए 40 हजार स्क्वेयर फीट जमीन का होना जरूरी होता है। साथ ही 100 बिस्तर का अस्प्ताल भी होना आवश्यक है। इसके बाबजूद प्रदेश में दर्जनों ऐसे नर्सिंग कॉलेजों को मान्यता दी गई, जो इन नियमों के अंर्तगत नहीं थे। इसके बाद भी इन्हें मान्यता दे दी गई।
याचिकाकर्ता और जबलपुर हाई कोर्ट में वकील विशाल बघेल ने ऐसे कई कॉलेज की तस्वीरें और जानकारी कोर्ट को सौंपी थी। इसमें बताया कि कैसे कॉलेज के नाम पर घोटाला चल रहा है। हाई कोर्ट ने इस मामले को देखते हुए नर्सिंग कॉलेज में होने वाली परीक्षाओं पर रोक लगा दी थी।
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