देश का पहला पूरी तरह से डिजिटल 'आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय' जनवरी तक बनकर होगा तैयार, जानिए क्या होगा ख़ास?

अल्लूरी सीताराम राजू जिले के लाम्बासिंगी में 21 एकड़ में बन रहा देश का पहला अनूठा प्रोजेक्ट, अब VFX और QR कोड के जरिए पर्यटक जान सकेंगे महान वीरों की शौर्य गाथा।
Tribal Freedom Fighters Museum
देश का पहला डिजिटल Tribal Museum तैयार: संक्रांति पर लाम्बासिंगी में होगी ग्रैंड ओपनिंग, देखें क्या है खास(Ai Image)
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विशाखापत्तनम: अल्लूरी सीताराम राजू जिले के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल लाम्बासिंगी (Lammasingi) के पास तजांगी (Tajangi) में बन रहा 'आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय' (Tribal Freedom Fighters Museum) जल्द ही पर्यटकों के लिए अपने दरवाजे खोलने वाला है। अधिकारियों ने इस परियोजना के निर्माण कार्य में तेजी ला दी है, ताकि इसे जनवरी में संक्रांति के पर्व तक पूरा किया जा सके। यह संग्रहालय न केवल क्षेत्र के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक ऐतिहासिक धरोहर साबित होगा।

अत्याधुनिक तकनीक से जीवंत होगा इतिहास

यह देश का पहला ऐसा संग्रहालय है जो पूरी तरह से डिजिटल होगा। यहाँ आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियों को बयां करने के लिए वीएफएक्स (VFX), इंटरैक्टिव स्क्रीन और क्यूआर (QR) कोड जैसी उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया जाएगा। इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य आगंतुकों को इतिहास के उन पन्नों से रूबरू कराना है, जहाँ अल्लूरी सीताराम राजू, गाम गंथम डोरा और मल्लू डोरा जैसे नायकों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोहा लिया था। यहाँ डिस्प्ले और पारंपरिक आदिवासी कला के माध्यम से उस दौर के प्रतिरोध को फिर से जीवित किया जाएगा।

21 एकड़ में फैला है पूरा परिसर

जनजातीय कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव एम.एम. नाइक ने हाल ही में इस 21 एकड़ में फैले स्थल का निरीक्षण किया। इस विशाल परिसर में सिर्फ संग्रहालय ही नहीं, बल्कि एक ट्राइबल हाट (स्थानीय बाजार), थीम आधारित उद्यान, एक एम्फीथिएटर, रिसॉर्ट और एक थीम रेस्टोरेंट भी शामिल है। निरीक्षण के दौरान उन्होंने ठेकेदार और स्थानीय अधिकारियों को कड़े निर्देश दिए कि अगले 45 दिनों के भीतर सभी शेष कार्य पूरे कर लिए जाएं।

इमारत की वास्तुकला में झलकेगी संस्कृति

संग्रहालय की इमारत अपने आप में कला का एक बेहतरीन नमूना है। इसका बाहरी हिस्सा (facade) आदिवासी कला और रीति-रिवाजों को दर्शाता है, जो 1920 के दशक में ब्रिटिश सेना के खिलाफ अल्लूरी सीताराम राजू की लड़ाई से प्रेरित है। हालाँकि, इसका निर्माण चार साल पहले शुरू हुआ था, लेकिन कानूनी अड़चनों और फंड की मंजूरी में देरी के कारण इसे पूरा होने में वक्त लगा।

चार जोन में दिखेगा आदिवासी जीवन का सफर

परियोजना से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि यह संग्रहालय आदिवासी संस्कृति, वीरता और इतिहास के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में कार्य करेगा। इसमें 1839 से 1848 तक के रंपा विद्रोह (Rampa Rebellion) सहित सदियों के प्रतिरोध को प्रदर्शित किया जाएगा। संग्रहालय में आदिवासी जीवन को चार अलग-अलग जोन में बांटा गया है:

  1. प्री-ब्रिटिश एरा जोन: यहाँ अंग्रेजों के आने से पहले के आदिवासी सामुदायिक जीवन को दिखाया जाएगा।

  2. ब्रिटिश हस्तक्षेप काल: इस हिस्से में अंग्रेजों के दखल और उससे आदिवासी जीवनशैली पर पड़े प्रभाव को दर्शाया जाएगा।

  3. विद्रोह का दौर: यह जोन ब्रिटिश शासन के खिलाफ आदिवासी समुदायों के विद्रोह और संघर्ष को समर्पित होगा।

  4. स्वतंत्रता के बाद: अंतिम जोन में आजादी के बाद आंध्र प्रदेश में आदिवासियों की वर्तमान स्थिति और जीवन को प्रदर्शित किया जाएगा।

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