
उदयपुर- कभी कभी निरक्षरता किसी व्यक्ति की सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती है और सरकारी तंत्र की चुप्पी सबसे बड़ी दुश्मन। राजस्थान के आदिवासी समुदाय के लिए ये एक हकीकत है, जहां भू-माफिया गरीबों की बेबसी का फायदा उठाकर फर्जी दस्तावेज गढ़ते हैं, नामांतरण करवाते हैं और फिर जमीन को बेचकर भाग जाते हैं।
राजस्थान में ऐसे सैकड़ों मामले हैं जिसमे भू माफियाओं द्वारा आदिवासी लोगों की निरक्षरता और बेबसी का फायदा उठाते हुए सरकारी तंत्र की मिली भगत से समुदाय को ठगा जाता है। हाल ही में उदयपुर में एक गरीब आदिवासी महिला के साथ हुई जमीन हड़पने की घटना ने सनसनी फैला दी है। एक अनपढ़ और पर्दानशीन महिला माणकी बाई के साथ अपने पिता की हत्या के बाद उनकी पैतृक संपत्ति को हड़पने के लिए रचे गए फर्जी वसीयत के जाल का खुलासा हुआ है।
माणकी के पिता की हत्या 1978 में हो गयी थी जिसके छह साल बाद उनके ही रिश्तेदार ने छह साल बाद मृत व्यक्ति के नाम की फ़र्ज़ी वसीयत बनाकर माणकी के ह्क की करीब 10 बीघा ज़मीन हड़प ली जिसकी कीमत आज करोड़ों रूपये में है।
उदयपुर के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट PCPNDT ने इस मामले में दो मुख्य अभियुक्तों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (भादवि) की धारा 467 (जालसाजी से दस्तावेज बनाना), 468 (धोखाधड़ी का इरादे से जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज का उपयोग) और 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत प्रसंज्ञान ले लिया है। अदालत ने अन्य 7 अभियुक्तों को क्लीन चिट देते हुए मामले को फौजदारी रजिस्टर में दर्ज करने का आदेश दिया है।
माणकी बाई की जिंदगी की त्रासदी 20 नवंबर 1978 को शुरू हुई, जब वह मात्र 5-6 वर्ष की नन्ही बच्ची थी। उस समय उसके पिता वाला पिता अमरा भील की निर्मम हत्या देवा पिता अमरा गमेती और कुशाल पिता उदा गमेती ने कर दी। यह हत्या भीलवाड़ा निवासी इन दोनों के हाथों हुई, जो आज भी माणकी बाई के दिलो-दिमाग में कड़वा जख्म बनी हुई है। पिता की मृत्यु के बाद परिवार की जिम्मेदारी मां पर आ गई, लेकिन असली मुसीबत तब शुरू हुई जब पिता के रिश्तेदार भीमा ने संपत्ति हड़पने की बुरी नीयत से साजिश रची।
माणकी बाई ने द मूकनायक को बताया कि वह एक गरीब आदिवासी पर्दानशीन महिला है, जो बिल्कुल अनपढ़ है। अभियुक्त सभी उसके गांव सापेटिया (हाल अम्बेरी, पंचायत समिति बड़गांव, उदयपुर) के आस-पास के निवासी हैं, जो उसे और उसके परिवार को अच्छी तरह जानते-पहचानते हैं। भीमा ने अभियुक्तों के साथ मिलकर बेईमानी और लालचपूर्ण आशय से एक अवैध एवं फर्जी वसीयतनामा दिनांक 7 अप्रैल 1984 को तैयार कर लिया था। माणकी बाई ने बताया कि यह वसीयत पूरी तरह फर्जी थी, क्योंकि इसमें उसके पिता वाला को ही वसीयतकर्ता बताया गया था, जबकि उनकी हत्या छह साल पहले ही हो चुकी थी।
वसीयत पर बतौर गवाह डांगियों का गुड़ा निवासी मांगीलाल गायरी और हमेरी बाई (पत्नी गणेश डांगी ने हस्ताक्षर किए। उन्होंने किसी अन्य व्यक्ति के अंगूठे के निशान को मृतक वाला की बताकर पहचान की और वसीयत को उनके द्वारा निष्पादित जाहिर किया। माणकी बाई ने आरोप लगाया कि अभियुक्तों ने जानबूझकर यह अपराध किया, क्योंकि उन्हें मृतक की हत्या की पूरी जानकारी थी।
साजिश यहीं नहीं रुकी। अभियुक्तों ने 15 अक्टूबर 2008 को ग्राम पंचायत सापेटिया में मृतक वाला का एक फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र भी बनवा लिया, जिसका रजिस्ट्रेशन नंबर 24 दिनांकित 12 सितंबर 2008 है। इस फर्जी वसीयत के आधार पर विवादित कृषि भूमि (आराजी) का नामांतरण करवाने की प्रक्रिया शुरू की गई। तत्कालीन पटवारी ग्राम सापेटिया ने 7 नवंबर 2018 को एक जांच रिपोर्ट और पर्चा मौक़ा तैयार कर तहसीलदार गिर्वा को भेज दिया।
माणकी बाई ने बताया कि पर्चा मौका आदि की कार्यवाही में अभियुक्तों ने हेराफेरी कर षड्यंत्र रचा। उन्होंने मृतक की मृत्यु और अन्य संबंधित तथ्यों पर मिथ्या बयान देकर पूर्ण सहयोग किया। फर्जी वसीयत को असली बताकर सरकारी दस्तावेजों और राजस्व रिकॉर्ड में नामांतरण करवा लिया गया। इतना ही नहीं, अभियुक्तों ने अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर जमीन की किस्म का परिवर्तन भी करवाया और उसे अन्यत्र बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
इसके अलावा अभियुक्तों ने धोखे और छल-कपट से माणकी बाई और उसके परिवार को गुमराह रखा। उन्होंने कई कागजातों, स्टांप आदि पर परिवार के हस्ताक्षर और अंगूठा निशानियां करवा लीं।
पिता की हत्या के केस से जुड़े कागजातों को देखने पर माणकी को फर्जी वसीयतनामे की जानकारी हुई, मामला जिला एवं सत्र न्यायाधीश उदयपुर के समक्ष पहुंचा। प्रार्थना पत्र 20 जुलाई 2023 को पेश किया गया, जिसके बाद दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 200 के तहत गवाहों माणकी और उसके पुत्र उदयलाल के बयान दर्ज किए गए। पत्रावली पर उपलब्ध मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्यों का अवलोकन करने पर अदालत ने कई महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किए।
सबसे पहले मृतक वाला की मृत्यु 1978 में ही हो चुकी थी जिसकी पुष्टि पत्रावली पर मौजूद जिला एवं सत्र न्यायाधीश के आदेश की प्रति से हुई। फिर भी 1984 में तैयार वसीयतनामा मृतक भीमा के पक्ष में निष्पादित बताई गई, जिसमें अभियुक्त संख्या 1 मांगीलाल गायरी और 2 हमेरी बाई के हस्ताक्षर गवाह के रूप में मौजूद हैं। अदालत ने नोट किया कि अभियुक्तों को मृत्यु की जानकारी होने के बावजूद उन्होंने वसीयत पर हस्ताक्षर किए, जो स्पष्ट आपराधिक षड्यंत्र दर्शाता है। यद्यपि संपत्ति भीमा को मिली थी और उनकी मृत्यु के कारण उनके खिलाफ प्रसंज्ञान संभव नहीं, लेकिन अभियुक्तों की साजिश साबित हो गई।
अन्य 7 अभियुक्तों के संबंध में अदालत ने कहा कि परिवादिया ने आरोप लगाया कि उन्होंने पटवारी की रिपोर्ट और नक्शा मौका में फर्जी वसीयत के तथ्यों की पुष्टि की, जबकि वे गलत थे। रिपोर्ट में गवाह अनपढ़ व्यक्ति थे और मृत्यु का तथ्य निर्विवादित था। रिपोर्ट पटवारी द्वारा बनाई गई थी, जिसमें गांव के करीब 20 व्यक्तियों के हस्ताक्षर और अंगूठी हैं। परिवादिया का इकरारनामा भी मौजूद है, जिसमें उन्होंने वसीयत को सही माना, लेकिन उनका तर्क था कि अनपढ़ होने के कारण गलत तथ्य बताकर हस्ताक्षर करवाए गए। अदालत ने कहा कि अन्य अभियुक्त दस्तावेज के रचयिता नहीं हैं और उन्हें कोई लाभ नहीं मिला, इसलिए उनके खिलाफ आधार नहीं बनता। फिर भी 1978 की मृत्यु के बाद 1984 की वसीयत कूटरचित (फर्जी) साबित हुई।
विशिष्ट अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, पीसीपीएनडीटी एक्ट, उदयपुर ने मामले में सुनवाई के बाद प्रसंज्ञान लेने का फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि अभियुक्त मांगीलाल और हमेरी बाई के खिलाफ धारा 467, 468, 471 और 120बी भादवि के तहत पर्याप्त आधार मौजूद हैं। प्रकरण परिवाद पर स्थित मामलों के अनुसार कार्यवाही करेगा।
परिवादिया को सीआरपीसी की धारा 204 के पालन में गवाहों की सूची और तलवाना पेश करने का निर्देश दिया गया। सूची पेश करने पर अभियुक्तों को समन जारी कर 13 फरवरी 2026 को पत्रावली पेश होने का आदेश हुआ। परिवाद को फौजदारी रजिस्टर में दर्ज करने का भी निर्देश दिया गया।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.