'फर्जी जाति प्रमाणपत्र से किसी योग्य आदिवासी उम्मीदवार का अवसर छिना': सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र की MBBS छात्रा को तो दी राहत, पिता पर 5 लाख का जुर्माना

7 जुलाई 2022 को सत्यापन समिति ने आदेश पारित किया कि चैतन्या "मन्नेर्वारलू" अनुसूचित जनजाति से संबंधित नहीं हैं। इस समय तक चैतन्या ने न केवल अपनी एमबीबीएस डिग्री पूरी कर ली थी, बल्कि सामान्य श्रेणी में पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) कोर्स में भी दाखिला ले लिया था, जहां वह वर्तमान में दूसरे वर्ष में हैं।
 सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि चैतन्या ने एमबीबीएस पूरा कर लिया है और सामान्य श्रेणी में पीजी कोर्स कर रही हैं। यदि अपील खारिज की जाती, तो उनका पूरा करियर दांव पर लग जाता।
सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि चैतन्या ने एमबीबीएस पूरा कर लिया है और सामान्य श्रेणी में पीजी कोर्स कर रही हैं। यदि अपील खारिज की जाती, तो उनका पूरा करियर दांव पर लग जाता।
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नई दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के एक चर्चित फर्जी जाति प्रमाणपत्र मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए अपीलकर्ता MBBS पास चैतन्या को बड़ी राहत दी है। लेकिन अपैक्स कोर्ट ने उसके पिता पर 5 लाख रूपये जुर्माना लगाया है। फर्जी जाति प्रमाणपत्र से चैतन्या ने ना केवल MBBS में दाखिला लिया बल्कि डिग्री और इंटर्नशिप भी पूरी कर ली और अब पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री के लिए सामान्य श्रेणी से एडमिशन प्राप्त कर चुकी है। कोर्ट ने इक्विटी और कानून का संतुलन बनाये रखते हुए छात्रा को राहत और पिता पर यह कहते हुए पेनाल्टी लगाई है कि "इस कृत्य से एक योग्य आदिवासी उम्मीदवार का अवसर छिन गया।" अदालत ने चैतन्या के पिता को दो महीने के भीतर राष्ट्रीय रक्षा कोष में 5 लाख रुपये जमा करने का आदेश दिया।

यह मामला अनुसूचित जनजाति (एसटी) की "मन्नेर्वारलू" श्रेणी से संबंधित है, जिसके तहत चैतन्या ने दावा किया था कि वह इस जनजाति से संबंधित हैं। चैतन्या का जन्म 7 अगस्त 1998 को हुआ था, और जब वह नाबालिग थीं, तब 1 जुलाई 2009 को उनके पक्ष में एक जाति प्रमाणपत्र जारी किया गया, जिसमें उन्हें राष्ट्रपति आदेश 1976 की धारा 27 के तहत "मन्नेर्वारलू" अनुसूचित जनजाति का सदस्य बताया गया।

एमबीबीएस कोर्स में दाखिला लेने की इच्छा रखने वाली चैतन्या ने 30 जुलाई 2015 को अपने पिता संजय विठलराव पालेकर के माध्यम से अपने प्रमाणपत्र की जांच के लिए अनुसूचित जनजाति जाति प्रमाणपत्र सत्यापन समिति, औरंगाबाद से संपर्क किया। दुर्भाग्यवश, समिति ने इस दावे की जांच में देरी की, जिसके कारण चैतन्या को 24 जुलाई 2016 को अपने जाति प्रमाणपत्र के आधार पर एमबीबीएस कोर्स में प्रवेश मिल गया। उन्होंने 2021 में एमबीबीएस सफलतापूर्वक पूरा किया और 5 मई 2021 को अंतिम वर्ष पूरा करने के बाद इंटर्नशिप शुरू की।

रिकॉर्ड से पता चलता है कि चैतन्या ने 12वीं कक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और एमबीबीएस के दौरान भी उनका शैक्षणिक प्रदर्शन शानदार रहा। हालांकि 7 जुलाई 2022 को सत्यापन समिति ने आदेश पारित किया कि चैतन्या "मन्नेर्वारलू" अनुसूचित जनजाति से संबंधित नहीं हैं। इस समय तक चैतन्या ने न केवल अपनी एमबीबीएस डिग्री पूरी कर ली थी, बल्कि सामान्य श्रेणी में पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) कोर्स में भी दाखिला ले लिया था, जहां वह वर्तमान में दूसरे वर्ष में हैं। समिति के इस फैसले के खिलाफ चैतन्या ने बॉम्बे हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया। इस मामले का मूल मुद्दा चैतन्या के पिता और चाचा द्वारा की गई धोखाधड़ी थी, जिन्होंने 1989 में अपने जनजाति दावों की अस्वीकृति को छिपाकर 2007 में नए प्रमाणपत्र प्राप्त किए थे।

 सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि चैतन्या ने एमबीबीएस पूरा कर लिया है और सामान्य श्रेणी में पीजी कोर्स कर रही हैं। यदि अपील खारिज की जाती, तो उनका पूरा करियर दांव पर लग जाता।
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने दिया ये फैसला

बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने 24 जुलाई 2023 को रिट याचिका नंबर 8531/2022 पर फैसला सुनाते हुए सत्यापन समिति के 7 जुलाई 2022 के आदेश को बरकरार रखा। हाई कोर्ट ने पाया कि चैतन्या के पिता संजय पालेकर और चाचा राजीव पालेकर के जनजाति दावे 1989 में अस्वीकार किए गए थे, और उनकी अपील 1991 में खारिज हो गई थी। इसके बावजूद, उन्होंने इस तथ्य को छिपाकर 2007 में नए वैधता प्रमाणपत्र प्राप्त किए।

हाई कोर्ट ने इसे संवैधानिक धोखाधड़ी करार दिया और कहा कि चैतन्या के पिता ने समिति के समक्ष झूठा हलफनामा दाखिल किया था, जिसमें दावा किया गया था कि उनके परिवार में किसी का दावा अस्वीकार नहीं हुआ। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के मामले राजू रामसिंग वसावे बनाम महेश देवराव भिवापुरकर (2008) 9 SCC 54 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि धोखाधड़ी से प्राप्त प्रमाणपत्र अमान्य हैं और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए बाध्यकारी नहीं हैं। हाई कोर्ट ने यह भी देखा कि चैतन्या द्वारा प्रस्तुत अन्य रिश्तेदारों के प्रमाणपत्र भी धोखाधड़ी पर आधारित थे, क्योंकि पहले की अस्वीकृतियों को छिपाया गया था।

समिति की समीक्षा शक्ति पर बहस को खारिज करते हुए, अदालत ने स्पष्ट किया कि यह एक स्पष्ट धोखाधड़ी का मामला है, न कि समीक्षा का मुद्दा। हाई कोर्ट ने चैतन्या द्वारा अन्य मामलों के हवाले को खारिज कर दिया, जहां रिश्तेदारों के प्रमाणपत्रों की जांच लंबित होने पर वैधता प्रमाणपत्र जारी करने के निर्देश दिए गए थे। अदालत ने कहा कि यह मामला संविधान पर स्पष्ट धोखाधड़ी का उदाहरण है और चैतन्या अपने पिता और रिश्तेदारों की धोखाधड़ी से लाभ नहीं उठा सकतीं। याचिका खारिज करते हुए, हाई कोर्ट ने कहा कि चैतन्या और उनके पिता द्वारा दाखिल हलफनामे झूठे थे और समिति का दावा खारिज करना उचित था।

 सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि चैतन्या ने एमबीबीएस पूरा कर लिया है और सामान्य श्रेणी में पीजी कोर्स कर रही हैं। यदि अपील खारिज की जाती, तो उनका पूरा करियर दांव पर लग जाता।
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सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जे.बी. परदीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने सिविल अपील नंबर 11196/2025 में चैतन्या की अपील को आंशिक रूप से मंजूर किया। अदालत ने हाई कोर्ट के निष्कर्षों को सही ठहराया, यह कहते हुए कि कोई कानूनी त्रुटि नहीं हुई, लेकिन चैतन्या की शैक्षणिक योग्यता और करियर की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए विशेष परिस्थितियों में राहत दी।

अदालत ने नोट किया कि चैतन्या ने एमबीबीएस पूरा कर लिया है और सामान्य श्रेणी में पीजी कोर्स कर रही हैं। यदि अपील खारिज की जाती, तो उनका पूरा करियर दांव पर लग जाता। अदालत ने चैतन्या के पिता को इस स्थिति के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार ठहराया, जिन्होंने महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाकर अपनी बेटी को मुश्किल में डाला। अपने अंतरिम आदेश (28 नवंबर 2023) का उल्लेख करते हुए, अदालत ने पिता के हलफनामे को रिकॉर्ड पर लिया, जिसमें उन्होंने स्वयं और अपने परिवार के लिए "मन्नेर्वारलू" अनुसूचित जनजाति का दावा छोड़ दिया।

अदालत ने चैतन्या के एमबीबीएस प्रवेश को नियमित कर दिया और विश्वविद्यालय को उनकी डिग्री प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया, जो अंतिम होगा। हालांकि, चैतन्या को भविष्य में कभी भी अनुसूचित जनजाति का दावा करने से रोक दिया गया। यह स्वीकार करते हुए कि इस धोखाधड़ी के कारण एक योग्य अनुसूचित जनजाति उम्मीदवार ने एमबीबीएस कोर्स का अवसर खो दिया, अदालत ने चैतन्या के पिता को दो महीने के भीतर राष्ट्रीय रक्षा कोष में 5 लाख रुपये जमा करने का आदेश दिया।

मामले को अनुपालन रिपोर्ट के लिए दो महीने बाद फिर से सूचीबद्ध किया गया। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि यदि सत्यापन समिति ने समय पर जांच की होती, तो यह स्थिति शायद उत्पन्न नहीं होती। सुप्रीम कोर्ट का आदेश हाई कोर्ट के फैसले को ओवरराइड करता है, केवल चैतन्या के एमबीबीएस प्रवेश को नियमित करता है, जबकि अन्य सभी पहलुओं पर हाई कोर्ट का फैसला बरकरार है।

 सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि चैतन्या ने एमबीबीएस पूरा कर लिया है और सामान्य श्रेणी में पीजी कोर्स कर रही हैं। यदि अपील खारिज की जाती, तो उनका पूरा करियर दांव पर लग जाता।
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