छत्तीसगढ़ के आदिवासी शिक्षकों का सवाल—जब अपना ही मुख्यमंत्री दर्द नहीं समझे, तो किस पर भरोसा करें? सीएम विष्णुदेव साय ने हमारी उम्मीदें तोड़ीं...

शिक्षकों का कहना है कि मुख्यमंत्री स्वयं आदिवासी समुदाय से हैं, लेकिन अपने ही वर्ग के लोगों का दर्द नहीं समझ रहे हैं। प्रदर्शनकारियों में से कई ने आरोप लगाया कि सरकार केवल आदिवासी वोट बैंक का सहारा लेकर सत्ता में आती है, लेकिन उनके असली मुद्दों से कोई सरोकार नहीं रखती।
हाल ही में शिक्षकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की, लेकिन उनका कहना है कि सीएम विष्णुदेव ने केवल कोरे आश्वासन दिए।
हाल ही में शिक्षकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की, लेकिन उनका कहना है कि सीएम विष्णुदेव ने केवल कोरे आश्वासन दिए।
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रायपुर- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 15-20 किलोमीटर दूर आउटर एरिया में तूता धरना स्थल पर बीएड पास सहायक शिक्षकों का प्रदर्शन एक महीने से जारी है। ये शिक्षक सुप्रीम कोर्ट और बिलासपुर हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, जिसमें प्राथमिक शिक्षकों के लिए बीएड की बजाय डीएड पास उम्मीदवारों को प्राथमिकता देने को कहा गया है। इस फैसले के कारण, पिछले डेढ़ साल से सरकारी प्राइमरी स्कूलों में नौकरी कर रहे 2,897 सहायक शिक्षकों का भविष्य अधर में लटक गया है। इनमें से लगभग 70% शिक्षक आदिवासी समुदाय से आते हैं।

सरकार की ओर से अब इन शिक्षकों को सेवा समाप्ति के नोटिस मिलना शुरू हो गए हैं। पिछले चार हफ्तों से ये शिक्षक रायपुर में डेरा डाले हुए हैं और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से उन्हें अन्य पदों पर समायोजित करने की गुहार लगा रहे हैं। लेकिन सरकार का कोई नुमाइंदा अब तक इनकी समस्याएं सुनने नहीं आया है।

शिक्षकों का कहना है कि मुख्यमंत्री स्वयं आदिवासी समुदाय से हैं, लेकिन अपने ही वर्ग के लोगों का दर्द नहीं समझ रहे हैं। प्रदर्शनकारियों में से कई ने आरोप लगाया कि सरकार केवल आदिवासी वोट बैंक का सहारा लेकर सत्ता में आती है, लेकिन उनके असली मुद्दों से कोई सरोकार नहीं रखती।

आंदोलनकारी शिक्षकों ने सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप भी लगाया. टीचर्स ने बताया कि 2023 में विधानसभा चुनाव से पूर्व अपने घोषणापत्र में भाजपा ने दावा किया है कि यदि उसकी सरकार बनती है तो छत्तीसगढ़ के लिए अगले पांच साल विकास के साल होंगे. इस दौरान सरकार पहले दो साल में ही 1 लाख सरकारी पदों पर भर्ती करेगी लेकिन भर्ती की बजाय यहाँ तो सरकार उलटा युवाओं को टर्मिनेट कर रही है.

हाल ही में, शिक्षकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की, लेकिन उनका कहना है कि मुख्यमंत्री ने केवल कोरे आश्वासन दिए। शिक्षकों ने बताया कि मुख्यमंत्री ने उनसे कहा, “आप लोग धरना-प्रदर्शन की जरूरत से ज्यादा कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद सरकार कुछ नहीं कर सकती। मामले में एक कमेटी बनाई गई है, और कमेटी के सुझावों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी।”

अनशन पर बैठे एक शिक्षक की बिगड़ी तबीयत तो साथियों ने ऐसे सम्भाला.
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स्कूलों में सैकड़ों पद खाली तो क्यों नहीं करते समायोजन ?

प्रदर्शन कर रहे सहायक शिक्षकों का कहना है कि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रदेश में करीब 5500 विद्यालय ऐसे हैं जहां केवल एक ही टीचर लगे हैं जबकि 600 से ज्यादा स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं है, खासकर ग्रामीण इलाकों में अध्यापकों की कमी से पढाई प्रभावित होती है. बताया जाता है कि प्रदेश में टीचर्स के 70 हजार से भी अधिक पोस्ट खाली हैं, ऐसे में अगर सरकार की इच्छा शक्ति हो तो क्या इन खाली पदों पर बीएड पास शिक्षकों का समयोजन नहीं किया जा सकता है?

शिक्षकों ने द मूकनायक को बताई व्यक्तिगत पीड़ा

द मूकनायक ने प्रदर्शन कर रहे कुछ शिक्षकों से उनकी पीड़ा को समझने के लिए बात की। इनमें रायपुर निवासी दिव्य प्रकाश ध्रुव ने अपनी समस्या साझा की। 29 वर्ष के ध्रुव
अविवाहित हैं क्योंकि नौकरी की अनिश्चितता के कारण शादी रुकी हुई है. ध्रुव ने कहा, " “मैं आदिवासी समुदाय से हूं, और मुख्यमंत्री भी आदिवासी हैं। मुझे उनसे बहुत उम्मीदें थीं कि वे हमारा दर्द समझेंगे। लेकिन जब 15 जनवरी को मुझे मेरा टर्मिनेशन लेटर मिला, तो मैं बिल्कुल निराश हो गया। मुझे लगता है कि मुख्यमंत्री का आदिवासी होना या न होना अब कोई मायने नहीं रखता।” आगे कहते हैं, " “मैंने कॉमर्स स्ट्रीम से पढ़ाई की है। अगर समायोजन नहीं हुआ, तो मेरे लिए शिक्षक बनने के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे। वर्ग-3 में बीएड मान्य नहीं है, वर्ग-2 में कॉमर्स का कोई विषय नहीं है, और वर्ग-1 के लिए मास्टर’स डिग्री चाहिए। इतने सालों की पढ़ाई के बाद भी मुझे छोटे-मोटे काम करने पर मजबूर होना पड़ेगा। उम्र के इस पड़ाव पर घर की जिम्मेदारियों के साथ आगे पढ़ाई करना असंभव है।"

"सरकार से मेरी एकमात्र गुजारिश है कि मुझे समायोजित किया जाए। मैंने अपनी मेहनत और मेरिट के दम पर ये नौकरी पाई थी। इस प्रक्रिया में मेरी कोई गलती नहीं है। मुझे रिजल्ट आने के एक महीने बाद पता चला कि हमारा कोर्स (बीएड) प्राथमिक शिक्षक के लिए अमान्य है। मैंने नियमों का पालन करते हुए आवेदन किया, परीक्षा पास की, और नौकरी पाई। अब मेरी आजीविका का साधन मुझसे छीनना न्यायसंगत नहीं है।”

प्रदर्शनकारी शिक्षकों की मांग है कि बीएड सहायक शिक्षकों का समायोजन समान वेतनमान वाले सरकारी पदों पर जल्द से जल्द किया जाए.
प्रदर्शनकारी शिक्षकों की मांग है कि बीएड सहायक शिक्षकों का समायोजन समान वेतनमान वाले सरकारी पदों पर जल्द से जल्द किया जाए.

जशपुर जिले के निमगांव निवासी 28 वर्षीय देवेश राम, जो आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, इस समय गहरे संकट में हैं। उनके परिवार में पांच सदस्य हैं, और उनकी बड़ी बहन की शादी की जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी। देवेश ने सोचा था कि अब नौकरी लगने के बाद बहन की शादी करा पाएंगे, और परिवार को आर्थिक सहारा देंगे। लेकिन नौकरी छिन जाने के बाद उनका परिवार शोक में है। उनके पिता किसान हैं, जिनकी आय इतनी नहीं है कि वह बेटी की शादी का खर्च उठा सकें। अब जब देवेश की नौकरी भी चली गई है, तो पूरा परिवार गहरे संकट और निराशा में डूबा हुआ है।

देवेश ने अपनी व्यथा साझा करते हुए अपील की है कि उनका समायोजन कहीं भी कर दिया जाए। उन्होंने कहा, "इतनी सारी सीटें खाली पड़ी हैं, हमें कहीं भी समायोजित कर दिया जाए ताकि हम इस संकट से उबर सकें।"

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और सरकार पर अपनी राय साझा करते हुए देवेश ने कहा, "मुझे यकीन है कि हमारे मुख्यमंत्री व्यक्तिगत रूप से अच्छे इंसान हैं। वह किसी के साथ अन्याय नहीं होने देंगे। मुझे लगता है कि साय सरकार हमें बचाना चाहती है, लेकिन कोई और ताकत उन्हें रोक रही है। अगर मुख्यमंत्री अपने मन से निर्णय लें, तो सबका भला हो सकता है।"

देवेश ने आगे अपनी निराशा जाहिर करते हुए कहा कि अगर उनका समायोजन नहीं हुआ, तो वह एक बेरोजगार की जिंदगी जीने को मजबूर हो जाएंगे। उन्होंने कहा, "रोजगार पाने के लिए जो मेहनत मैंने की थी, वह सब बेकार हो गया। मेरे मान-सम्मान और प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिला दिया गया है। अब समाज में मैं क्या मुंह दिखाऊंगा? इससे अच्छा तो कुछ भी न करके एक बेरोजगार की जिंदगी जी लूं।"

हाल ही में शिक्षकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की, लेकिन उनका कहना है कि सीएम विष्णुदेव ने केवल कोरे आश्वासन दिए।
न ठंड से डर, ना भूख की परवाह! नौकरी बचाने के लिए जानिए किन-किन चुनौतियों से जूझ रहीं हैं छत्तीसगढ़ की ये सहायक शिक्षिकाएं

जिला कवर्धा के बोड़ला तहसील के ग्राम सोनतरा के निवासी केशर सिंह परते, एक आदिवासी शिक्षक हैं, जो परिवार में माता-पिता और दो बड़े भाइयों के साथ रहते हैं। उनके माता-पिता अशिक्षित और गरीब किसान हैं। 28 वर्षीय केशर अविवाहित हैं और अपने परिवार के लिए आजीविका का प्रमुख साधन बने हुए हैं। वे सरकार से करबद्ध निवेदन करते हैं कि 2897 बीएड सहायक शिक्षकों का समायोजन समान वेतनमान वाले सरकारी पदों पर किया जाए। उन्होंने सरकार से अपील की है कि उनकी आजीविका और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए यह कदम उठाया जाए।

सरकार और मुख्यमंत्री के रवैये से निराश और दुखी केशर ने बताया कि अभी तक न तो कोई सरकारी प्रतिनिधि उनसे मिलने आया है और न ही समायोजन के लिए लिखित आश्वासन दिया गया है। उन्होंने मांग की है कि सरकार द्वारा गठित कमिटी अपनी रिपोर्ट 15 दिनों के भीतर प्रस्तुत करे और उसमें समायोजन के लिए सकारात्मक निर्णय लिया जाए।

भविष्य को लेकर उनकी चिंताएं गहरी हैं। केशर कहते हैं कि अगर उनका समायोजन नहीं हुआ, तो वे बेरोजगार हो जाएंगे और अपने बुजुर्ग माता-पिता का लालन-पालन करने में असमर्थ होंगे। वे यह भी मानते हैं कि इस स्थिति में वे दूसरी परीक्षाओं की तैयारी नहीं कर पाएंगे और दोबारा सरकारी नौकरी पाना उनके लिए असंभव हो जाएगा। ऐसी स्थिति में उन्हें मेहनत-मजदूरी के लिए मजबूर होना पड़ेगा। यह सब उनके आत्मसम्मान और स्वाभिमान को पूरी तरह से धूमिल कर देगा।

भाजपा ने 2023 चुनावी मेनिफेस्टो में महतारी बंदन योजना के तहत हर विवाहित महिला को 12,000 रुपये देने की भी घोषणा की थी लेकिन दूसरी ओर एक हजार से भी अधिक बीएड पास सहायक शिक्षिकाएं सरकारी नौकरी खो चुकी हैं और उनकेआत्मनिर्भर बनने के सपने चूर हो गये हैं.
भाजपा ने 2023 चुनावी मेनिफेस्टो में महतारी बंदन योजना के तहत हर विवाहित महिला को 12,000 रुपये देने की भी घोषणा की थी लेकिन दूसरी ओर एक हजार से भी अधिक बीएड पास सहायक शिक्षिकाएं सरकारी नौकरी खो चुकी हैं और उनकेआत्मनिर्भर बनने के सपने चूर हो गये हैं.

बलोदा बाजार की रहने वाली 28 वर्षीय साधना पैकरा के लिए यह समय बेहद कठिन है। अपने पांच सदस्यीय परिवार की आर्थिक जिम्मेदारियों का सहारा बनने का सपना देखने वाली साधना इस समय नौकरी छिनने की आशंका में डूबी हुई हैं। अविवाहित साधना ने अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए कड़ी मेहनत से यह नौकरी पाई थी, लेकिन अब उनकी आजीविका पर खतरा मंडरा रहा है।

सरकार से अपील करते हुए साधना ने कहा, "हमारी आजीविका को बचाने या कहीं समायोजन करने की सटीक तिथि बताई जाए।" उन्होंने कहा कि सरकार के रवैये से उन्हें कुछ भी स्पष्ट समझ नहीं आ रहा है। "कैमरे पर मुख्यमंत्री कहते हैं कि समाधान निकाला जा रहा है, लेकिन दूसरी ओर हमें टर्मिनेट भी कर दिया गया है," साधना ने अपनी निराशा जाहिर की।

भविष्य की योजना के बारे में साधना का कहना है कि उन्होंने अभी तक कुछ तय नहीं किया है। उन्होंने कहा, "यह नौकरी मैंने बहुत मेहनत और ईमानदारी से पाई थी। अब दोबारा इस स्थिति में तैयारी करना बहुत मुश्किल है।" साधना जैसी मेहनती शिक्षिकाएं सरकार से स्पष्टता और न्यायपूर्ण निर्णय की उम्मीद कर रही हैं।

हाल ही में शिक्षकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की, लेकिन उनका कहना है कि सीएम विष्णुदेव ने केवल कोरे आश्वासन दिए।
हवन से लेकर मुंडन तक: छत्तीसगढ़ में B.Ed सहायक शिक्षक नौकरी बचाने के लिए क्या-क्या कर रहे हैं जतन

कोरबा के निवासी रविंद्र कुमार, जिनके परिवार में कुल सात सदस्य हैं, इस समय गहरे संकट से गुजर रहे हैं। परिवार की पूरी जिम्मेदारी उनके कंधों पर है, और इस कारण वे अपनी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकते। रविंद्र कुमार का कहना है कि सरकार को उनकी नौकरी के बदले उन्हें किसी अन्य पद पर समायोजित करना चाहिए ताकि उनका और उनके परिवार का जीवन सामान्य रह सके। उन्होंने कहा, "सरकार बीएड प्रशिक्षित सहायक शिक्षकों के प्रति बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही है, लेकिन हम समायोजन लेकर ही रहेंगे।"

इसी जिले के 28 वर्षीय बोट सिंह भी ऐसी ही परिस्थिति से गुजर रहे हैं। अविवाहित बोट सिंह के परिवार में छह सदस्य हैं, और वे चाहते हैं कि सरकार उन्हें समायोजन दे या ब्रिज कोर्स करवाकर उसी स्कूल में सेवा के लिए बहाल करे। बोट सिंह ने सरकार और मुख्यमंत्री के रवैये पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा, "सरकार का रवैया समायोजन नहीं करने का है, लेकिन हम बीएड धारक सहायक शिक्षक समायोजन लेकर रहेंगे, चाहे इसके लिए मुख्यमंत्री को अपने पद से इस्तीफा ही क्यों न देना पड़े।"

भविष्य की योजना के बारे में, दोनों शिक्षकों ने स्पष्ट किया कि अगर समायोजन नहीं होता है तो वे उग्र आंदोलन करेंगे। बोट सिंह ने चेतावनी दी कि वे बीजेपी सरकार के खिलाफ आवाज उठाएंगे । इन शिक्षकों की पीड़ा और उनका संघर्ष सरकार के प्रति उनकी उम्मीद और नाराजगी को साफ जाहिर करता है।

हाल ही में शिक्षकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की, लेकिन उनका कहना है कि सीएम विष्णुदेव ने केवल कोरे आश्वासन दिए।
'अरन बरन कोदो दरन, समायोजन देबे तभे टरन' — छत्तीसगढ़ के सहायक शिक्षकों ने छेरछेरा पर्व पर यूं मांगा नौकरी का दान!

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