'हमारा हक़ छिन जाएगा!' - 6 को ST दर्जा देने के खिलाफ असम में 26 संगठन एकजुट, सरकार को दी बड़ी चेतावनी

26 आदिवासी संगठनों ने 6 नए समुदायों को ST सूची में शामिल करने का किया कड़ा विरोध। कहा- "मौजूदा 14 जनजातियों के अधिकार और पहचान छिन जाएँगे।"
26 organizations unite in Assam against granting ST status to 6 communities.
असम: ST सूची में 6 नए समुदायों को शामिल करने का भारी विरोध, 26 जनजातीय संगठनों ने की रैली(Ai Image)
Published on

गुवाहाटी: असम में अनुसूचित जनजाति (ST) सूची के विस्तार को लेकर विवाद गहरा गया है। राज्य के 26 जनजातीय निकायों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक छत्र संगठन ने सोमवार को गुवाहाटी के पास किसी भी नए समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने के खिलाफ एक विशाल रैली का आयोजन किया।

कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ द ट्राइबल ऑर्गेनाइजेशंस ऑफ असम (CCTOA), जिसका गठन 1996 में हुआ था, के बैनर तले यह विरोध प्रदर्शन किया गया। सोनापुर मिनी स्टेडियम में आयोजित इस रैली में राज्य भर के 14 मौजूदा अनुसूचित जनजातियों के हजारों सदस्य एकत्र हुए।

पारंपरिक वेशभूषा पहने और अपने समुदाय के झंडे लिए हुए कई प्रदर्शनकारियों ने सरकार पर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले "राजनीति से प्रेरित" कदम उठाने का आरोप लगाया।

क्यों हो रहा है यह विरोध?

यह विरोध प्रदर्शन उन रैलियों की श्रृंखला के बीच आया है, जो सितंबर के मध्य से छह अन्य समुदायों द्वारा एसटी दर्जे की मांग को लेकर की जा रही हैं। इन समुदायों में मोरन, मटॉक, कोच राजबोंगशी, ताई अहोम, चुतिया और आदिवासी (चाय जनजाति) शामिल हैं।

इन छह समुदायों का अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 के उस चुनावी वादे से जुड़ा है, जिसमें सरकार बनने के 100 दिनों के भीतर दर्जा देने का वादा किया गया था। उनके नेता अक्सर इस बात को उठाते हैं कि यह वादा अब तक पूरा नहीं हुआ है।

अभी हाल ही में, रविवार को ताई अहोम युवा परिषद (TYPA) ने भी बिश्वनाथ जिले में इसी मांग को लेकर एक बड़ी रैली की थी। राजनीतिक रूप से, अहोम और चाय जनजातियाँ चुनावी तौर पर काफी प्रभावशाली मानी जाती हैं, जिससे यह मुद्दा और भी संवेदनशील हो गया है।

'मौजूदा जनजातियों के अधिकार छिन जाएँगे'

CCTOA के मुख्य समन्वयक और असम ट्राइबल संघ के महासचिव आदित्य खाकलारी ने कहा कि सरकार को आजादी के 78 साल बाद एसटी सूची का और विस्तार करना बंद कर देना चाहिए।

उन्होंने कहा, "अगर नए समुदायों को शामिल किया गया, तो मौजूदा 14 एसटी समुदायों को भारी नुकसान होगा। पुराने और नए एसटी के बीच कोई अंतर नहीं रह जाएगा।"

खाकलारी ने अपने विरोध को सही ठहराने के लिए पिछले उदाहरणों का हवाला दिया। उन्होंने कहा, "जब केंद्र ने 1996 में एक अध्यादेश के माध्यम से कोच-राजबोंगशियों को छह महीने के लिए एसटी का दर्जा दिया, तो अधिकांश आरक्षित नौकरियां और सीटें उन्हीं को मिल गईं।"

उन्होंने हाल की एक घटना का जिक्र करते हुए कहा, "इस साल के पंचायत चुनावों के बाद, एक ताई अहोम समूह ने शिवसागर में एक मिसिंग (Mising) महिला (जो मौजूदा एसटी समुदाय से हैं) के जिला परिषद अध्यक्ष नियुक्त होने पर भी आपत्ति जताई थी।"

खाकलारी ने चेतावनी दी, "ज़रा सोचिए कि अगर सभी छह समुदायों को जोड़ दिया गया तो क्या होगा। हम अपने अधिकार खो देंगे।" उन्होंने स्पष्ट किया कि यह आंदोलन मौजूदा आदिवासी समूहों के "भविष्य और पहचान" की रक्षा के लिए है।

गौरतलब है कि हाल ही में हुए परिसीमन के बाद असम में एसटी के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों की संख्या 16 से बढ़कर 19 हो गई है। राज्य के 14 मौजूदा एसटी समूहों में बोडो, दिमासा, कार्बी, राभा, मिसिंग, सोनोवाल कछारी और थेंगल कछारी समुदाय प्रमुख रूप से शामिल हैं।

26 organizations unite in Assam against granting ST status to 6 communities.
भदोही: शौच के लिए गई दलित महिलाओं से छेड़छाड़, कोर्ट के आदेश पर दो युवकों पर SC/ST एक्ट में केस दर्ज
26 organizations unite in Assam against granting ST status to 6 communities.
'ही-मैन' की रही छवि, समाज के शोषित और वंचित वर्ग की आवाज़ बने: धर्मेंद्र की वो 5 फिल्में जो सामाजिक अन्याय और जातिवाद पर उठाती हैं सवाल
26 organizations unite in Assam against granting ST status to 6 communities.
2018 को SC/ST एक्ट में बदलाव पर दिया था इस्तीफा, पूर्व IPS डॉ. बी.पी. अशोक बोले- नोटबंदी की तरह 'जाति बंदी' कानून बनें

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com