2018 को SC/ST एक्ट में बदलाव पर दिया था इस्तीफा, पूर्व IPS डॉ. बी.पी. अशोक बोले- नोटबंदी की तरह 'जाति बंदी' कानून बनें

डॉ. अशोक ने अपने पुलिस करियर के दौरान जातिगत भेदभाव के कई अनुभव साझा किए। उन्होंने दावा किया कि उनके उत्कृष्ट कार्य के बावजूद उन्हें सेवा मेडल नहीं दिए गए, जबकि कम योग्यता वाले अधिकारियों को उनकी जाति और सिफारिश के आधार पर मेडल मिले।
डॉ. अशोक ने समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने के लिए एक अनोखा सुझाव देते हुए कहा कि हर परिवार के किसी एक सदस्य को कानून की पढ़ाई जरूर करनी चाहिए। उन्होंने कहा, "कानून की जानकारी होने से व्यक्ति को सम्मान मिलता है और उसके साथ अन्याय होने का डर कम हो जाता है। एक वकील से कोई जाति नहीं पूछता, उसका रुतबा होता है।"
डॉ. अशोक ने समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने के लिए एक अनोखा सुझाव देते हुए कहा कि हर परिवार के किसी एक सदस्य को कानून की पढ़ाई जरूर करनी चाहिए। उन्होंने कहा, "कानून की जानकारी होने से व्यक्ति को सम्मान मिलता है और उसके साथ अन्याय होने का डर कम हो जाता है। एक वकील से कोई जाति नहीं पूछता, उसका रुतबा होता है।"
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नई दिल्ली- उत्तर प्रदेश पुलिस सेवा के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी, समाज सुधारक और 'जाति समाप्ति अभियान' के संस्थापक डॉ. बी.पी. अशोक ने कहा है कि देश में वास्तविक समानता तभी आ सकती है जब जाति की पहचान पूरी तरह से खत्म हो जाए। उन्होंने जाति व्यवस्था को समाज के लिए सबसे बड़ा अभिशाप बताते हुए 'जाति बंदी' कानून बनाने की जरूरत पर जोर दिया।

डॉ. अशोक ने 'पावर टॉक विद संजीव' पॉडकास्ट में खुलकर बातचीत में 2018 में SC/ST एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र देने, जातिवाद के चलते अपनी सेवा के दौरान हुई अन्यायपूर्ण घटनाओं और समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव के मुद्दों पर चर्चा की।

डॉ. अशोक ने 2018 की उस घटना को याद किया जब सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में SC/ST एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधान को कमजोर करते हुए जांच को अनिवार्य कर दिया था। डॉ. अशोक उस समय ट्रेनिंग डिपार्टमेंट में थे। उन्होंने बताया, "यह प्रावधान इसलिए बनाया गया था ताकि दबंग वर्ग कमजोर वर्ग को दबाकर समझौता न करा सके। जब यह प्रावधान खत्म हुआ तो पूरे देश के दलित और आदिवासी समाज में रोष था।"

उन्होंने आगे कहा, "2 अप्रैल को देशभर में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की योजना थी, लेकिन कुछ लोगों ने हिंसा कर दी, मेरठ, आगरा, अलीगढ़ जैसे जिलों में हिंसा भड़क उठी जिसके बाद पुलिस कार्रवाई में 13 युवाओं की मौत हो गई। इस घटना से आहत होकर और कानून को मजबूत करने की मांग को लेकर मैंने राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे दिया था।" हालांकि, तत्कालीन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हस्तक्षेप और यह आश्वासन के बाद कि कानून को एक महीने में बहाल कर दिया जाएगा, उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया। डॉ. अशोक ने कहा कि 9 अगस्त, 2018 को संसद ने इस कानून को फिर से बहाल कर दिया।

डॉ. अशोक ने समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने के लिए एक अनोखा सुझाव देते हुए कहा कि हर परिवार के किसी एक सदस्य को कानून की पढ़ाई जरूर करनी चाहिए। उन्होंने कहा, "कानून की जानकारी होने से व्यक्ति को सम्मान मिलता है और उसके साथ अन्याय होने का डर कम हो जाता है। एक वकील से कोई जाति नहीं पूछता, उसका रुतबा होता है।"
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सेवा काल में जातिवाद का सामना

डॉ. अशोक ने अपने पुलिस करियर के दौरान जातिगत भेदभाव के कई अनुभव साझा किए। उन्होंने दावा किया कि उनके उत्कृष्ट कार्य के बावजूद उन्हें सेवा मेडल नहीं दिए गए, जबकि कम योग्यता वाले अधिकारियों को उनकी जाति और सिफारिश के आधार पर मेडल मिले। उन्होंने कहा, "जब गोली खाने की बात आती थी, तब मैं सबसे आगे रहता था, लेकिन जब मेडल मिलने की बात आती थी, तो मुझे नहीं मिलता था।"

हाल ही में आईपीएस अधिकारी पूरन कुमार के आत्महत्या के मामले पर डॉ. अशोक ने कहा कि यह घटना पुलिस विभाग और समाज दोनों के लिए शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि एक आईपीएस अधिकारी जैसा मजबूत व्यक्ति तभी ऐसा कदम उठाता है जब उसके नैतिक बल को बार-बार चोट पहुंचाई जाए। उन्होंने इस मामले की गहन जांच की मांग की। पूर्व IPS प्रसाद का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि प्रसाद 11-12 साल सस्पेंड रहने के बाद डिग्रियां लेकर लौटे। "विल पावर रखो, आत्महत्या मत करो।"

जाति बंदी कानून हो, जैसे नोटबंदी हुई थी

डॉ. अशोक ने जोर देकर कहा कि जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव और अत्याचार को खत्म करने के लिए एक कठोर कानून की जरूरत है। उन्होंने कहा, "हमें 'जाति बंदी' कानून बनाना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे नोटबंदी हुई थी। लोगों की जेब, नामपट्ट, घर, मोहल्ले और दुकानों से जाति का नामोनिशान मिटा देना चाहिए।"

उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस विनोद दिवाकर के उस आदेश की सराहना की, जिसमें गाड़ियों और दुकानों पर जातिगत नाम लिखने पर रोक लगाने का निर्देश दिया गया था। डॉ. अशोक का मानना है कि जब तक साक्षात्कार विहीन परीक्षाएं और जाति बंदी कानून नहीं बनेगा, तब तक जातिवाद खत्म नहीं हो सकता। उन्होंने कहा -अंतरजातीय विवाह बढ़ाओ, साक्षात्कार-रहित भर्तियां करो। मंडल कमीशन लागू होता तो लोकतंत्र मजबूत होता। OBC को हिस्सेदारी मिली होती तो दबंगई रुक जाती।"

वर्ण व्यवस्था पर तीखा प्रहार करते हुए उन्होंने कहा, "100 साल का क्षत्रिय भी ब्राह्मण से नीचे है। महिलाओं की स्थिति और खराब है। कश्मीर में बैठा ब्राह्मण केरल के SC को क्यों हिस्सा दे?" आरक्षण को "हिस्सेदारी" बताया। "आरक्षण बुरा लगता है तो अंतरजातीय विवाह करो। अगली पीढ़ी को लाभ मिलेगा।" निजी क्षेत्र में टॉप-टू-बॉटम आरक्षण, 5-10% टैक्स छूट दें। "जाति जनगणना करो, बैलेंस बनेगा।"

पारिवारिक पृष्ठभूमि: शिक्षा और संघर्ष की विरासत

डॉ. अशोक का जन्म बुलंदशहर के सियाना गांव (लौंग सराय) में हुआ। उनके पिता डॉ. देवी सिंह अशोक रिटायर्ड आईजी हैं, जिन्होंने गांव-गांव जाकर SC/ST बच्चों को स्कूल भेजा। उन्होंने बताया "पिताजी ने जय भीम जपने का डर निकाला। डॉ. अंबेडकर जयंती मनाई, किताबें लिखीं। घर में पढ़ाई की परंपरा रही।"

डॉ. अशोक ने खुद बौद्ध दर्शन पर पीएचडी और डी.लिट. की। उनकी बेटी आईआरएस, दामाद भी सिविल सर्विस में, बेटा आईआईटी कर रहा है। उन्होंने कहा, "अंबेडकरवाद हमारी प्रेरणा है। बुद्ध, फुले, सावित्रीबाई, अंबेडकर- ये हमारे आइकॉन्स हैं। शिक्षित बनो, संघर्ष करो, संगठित रहो"। उनके गांव में 53 फीट ऊंचा "बहुजन क्रांति स्तंभ" भी है, जो 2 अप्रैल 2018 के शहीदों को समर्पित है।

डॉ. अशोक ने युवाओं को सलाह दी कि वे सफलता के लिए अंधविश्वास और भाग्यवाद को छोड़कर वैज्ञानिक सोच अपनाएं। "हम अंधविश्वास पर सालाना 60 घंटे वेस्ट करते हैं। चाइना R&D में निवेश करता, हम बाबाओं पर।111 लोग अंधविश्वास से सुसाइड। बुद्ध ने कहा है कि तर्क पर कसौटी रखो। सरप्लस 25% बचत पर लगाओ, त्योहारों पर उधार मत लो।"

उन्होंने टाइम मैनेजमेंट, स्टेम एजुकेशन (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथ्स), इंग्लिश, इंटरनेट के उपयोग और फाइनेंशियल लिटरेसी पर जोर दिया। उनका कहना था कि इन कौशलों के बिना आज के दौर में तरक्की पाना मुश्किल है।

डॉ. अशोक ने समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने के लिए एक अनोखा सुझाव देते हुए कहा कि हर परिवार के किसी एक सदस्य को कानून की पढ़ाई जरूर करनी चाहिए। उन्होंने कहा, "कानून की जानकारी होने से व्यक्ति को सम्मान मिलता है और उसके साथ अन्याय होने का डर कम हो जाता है। एक वकील से कोई जाति नहीं पूछता, उसका रुतबा होता है।"
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डॉ. अशोक ने समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने के लिए एक अनोखा सुझाव देते हुए कहा कि हर परिवार के किसी एक सदस्य को कानून की पढ़ाई जरूर करनी चाहिए। उन्होंने कहा, "कानून की जानकारी होने से व्यक्ति को सम्मान मिलता है और उसके साथ अन्याय होने का डर कम हो जाता है। एक वकील से कोई जाति नहीं पूछता, उसका रुतबा होता है।"
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