
एर्नाकुलम- एनसीसी दाखिले के नियमों में प्रावधान नहीं होने के कारण केरल हाईकोर्ट ने एक 22 वर्षीय ट्रांसजेंडर छात्र के एनसीसी में भर्ती किये जाने को लेकर दायर याचिका खारिज कर दी। हालाँकि कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक अहम सुझाव देते हुए कहा कि ट्रांसजेंडर छात्रों को भी एनसीसी में शामिल होने का मौका मिलना चाहिए।
हाईकोर्ट ने रक्षा मंत्रालय और कानून मंत्रालय को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने का निर्देश दिया है। मौजूदा कानून में ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए एनसीसी में दाखिले का कोई प्रावधान नहीं है, जिसे बदलने की जरूरत पर कोर्ट ने जोर दिया।
जस्टिस एन. नागरेश की पीठ ने ट्रांसजेंडर छात्र जनविन क्लीटस द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, लेकिन साथ ही केंद्र सरकार को इस मुद्दे की समीक्षा करने और आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया। यह फैसला ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए सार्वजनिक जीवन में समान अवसरों की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ रेखांकित करता है।
तिरुवनंतपुरम के वालियाथुरा निवासी जनविन क्लीटस ने 30(K) बटालियन एनसीसी, कालीकट में दाखिले के लिए आवेदन किया था । क्लीटस के पास तिरुवनंतपुरम जिला कलेक्टर द्वारा 14 फरवरी, 2024 को जारी किया गया ट्रांसजेंडर पहचान पत्र है,और उसने सभी पात्रता मानदंडों को पूरा किया और चयन प्रक्रिया में भाग लिया। हालांकि साक्षात्कार के दौरान उसे सूचित किया गया कि एक ट्रांसजेंडर होने के नाते उसे एनसीसी में प्रवेश नहीं दिया जा सकता। याचिकाकर्ता की ओर से वकील धनुजा एम.एस. ने तर्क दिया कि लैंगिक पहचान के आधार पर यह भेदभाव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 15 (भेदभाव का निषेध), 19 (वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का सीधा उल्लंघन है।
एनसीसी और केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा कि वर्तमान में एनसीसी अधिनियम, 1948 की धारा 6 के तहत केवल 'पुरुष' और 'महिला' छात्रों को ही कैडेट के रूप में दाखिला देने का प्रावधान है। उन्होंने तर्क दिया कि एनसीसी की ट्रेनिंग में शारीरिक अभ्यास, खेल और लंबे शिविर शामिल होते हैं, जहाँ कैडेट्स को मैदानी परिस्थितियों में एक साथ रहना पड़ता है। ऐसे में अलग-अलग लिंग के कैडेट्स की सुरक्षा और कल्याण को ध्यान में रखते हुए लैंगिक-विशिष्ट दाखिले की नीति है।
अदालत ने माना कि ट्रांसजेंडर छात्रों को एनसीसी जैसे अवसर से वंचित करना एक चिंता का विषय है। कोर्ट ने अपने फैसले में महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं:
"यह सच है कि ट्रांसजेंडर वर्ग के उम्मीदवार एनसीसी में दाखिले के मामले में पीछे रह जाते हैं और आदर्श रूप से ट्रांसजेंडर छात्रों को भी एनसीसी में दाखिले का अवसर मिलना चाहिए।"
हालाँकि, अदालत ने यह भी कहा कि मौजूदा कानून के प्रावधानों और ट्रेनिंग की प्रकृति को देखते हुए अलग-अलग लिंग के व्यक्तियों के साथ भिन्न व्यवहार करने में एक "बुद्धिमत्तापूर्ण अंतर (intelligible differentia)" है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एनसीसी में ट्रांसजेंडर डिवीजन बनाने के लिए विधायी हस्तक्षेप और एक स्पष्ट नीति की आवश्यकता होगी। न्यायमूर्ति नागरेश ने कहा:
"एनसीसी ट्रांसजेंडर डिवीजन के गठन के लिए अलग डिवीजन बनाने हेतु ट्रांसजेंडर छात्रों की न्यूनतम/पर्याप्त संख्या की आवश्यकता होगी। ये नीति के मामले हैं जिनके लिए पर्याप्त अध्ययन की आवश्यकता है, जो कार्यपालिका का कार्य है। साथ ही इसके क्रियान्वयन के लिए विधायी हस्तक्षेप की भी आवश्यकता है "
याचिका को खारिज करने के बावजूद हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर कार्रवाई का रास्ता सुझाया। अदालत ने निर्देश दिया कि इस निर्णय की एक प्रति रक्षा मंत्रालय और कानून एवं न्याय मंत्रालय, भारत सरकार के सचिवों को "मुद्दे पर विचार और आवश्यक कार्रवाई के लिए" भेजी जाए।
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