ओडिशा: 15 साल बाद भी राज्यपाल सचिवालय में पूर्णकालिक आदिवासी कल्याण सेल नहीं, अब SCSTRTI को मिली जिम्मेदारी

15 साल से लंबित था केंद्रीय मंत्रालय का प्रस्ताव, अब SCSTRTI को मिली जिम्मेदारी; जानें क्यों दूसरे राज्यों से पिछड़ा ओडिशा.
Odisha still lacks a full-fledged tribal welfare cell in the Governor's Secretariat even after 15 years.
ओडिशा: 15 साल से राज्यपाल सचिवालय में आदिवासी सेल नहीं, SCSTRTI को जिम्मा(Ai Image)
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भुवनेश्वर: ओडिशा को अनुसूचित क्षेत्र का दर्जा प्राप्त है, लेकिन यह गंभीर मसला है कि राज्य के राज्यपाल सचिवालय में आज तक एक पूर्णकालिक आदिवासी कल्याण सेल (Tribal Welfare Cell) का गठन नहीं हो पाया है। यह स्थिति तब है जब केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय (MOTA) ने इस सेल के गठन की सिफारिश 15 साल पहले की थी। इस सेल का मुख्य उद्देश्य राज्यपाल को अनुसूचित जनजाति (ST) आबादी के प्रति अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में मदद करना है।

इस लंबे समय से लंबित प्रस्ताव के बीच, राज्य सरकार ने अब एक नया रास्ता निकाला है। सरकार ने राज्यपाल सचिवालय को इस सेल से संबंधित कार्यों में सहायता प्रदान करने के लिए अपने अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति (ST & SC) विकास विभाग के तहत आने वाले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (SCSTRTI) को अधिकृत करने का निर्णय लिया है।

एसटी और एससी विकास विभाग के आयुक्त-सह-सचिव, बी परमेश्वरन ने हाल ही में राज्यपाल हरि बाबू कम्भमपति के सचिवालय को एक पत्र लिखकर इस फैसले की जानकारी दी है। राज्य सरकार ने अपने इस निर्णय के पीछे यह तर्क दिया है कि SCSTRTI पिछले कई वर्षों से ओडिशा में जनजातीय विकास पर शोध और संबंधित गतिविधियों के लिए समर्पित रूप से काम कर रहा है और उसके पास इस क्षेत्र में विशेषज्ञता है।

गौरतलब है कि MOTA का यह प्रस्ताव साल 2010 का है। इस आदिवासी कल्याण सेल का प्रस्ताव संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत किया गया था, जिसमें अनुसूचित क्षेत्रों में राज्यपाल की विशेष जिम्मेदारियों और भूमिका के बारे में स्पष्ट प्रावधान हैं।

इन जिम्मेदारियों में प्रमुख रूप से कुछ आदिवासी मुद्दों को जनजातीय सलाहकार परिषद (Tribal Advisory Council) को भेजना, अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि के हस्तांतरण को प्रतिबंधित करना या उस पर रोक लगाना, और संसद या राज्य विधानमंडल के किसी भी अधिनियम को संशोधित या निरस्त करना शामिल है, जो उस क्षेत्र पर लागू होते हैं।

सचिवालय के अधिकारियों के अनुसार, पांचवीं अनुसूची के क्लॉज 3 के तहत, राज्यपाल की यह भी जिम्मेदारी है कि वे राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में सालाना एक रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपें।

ऐसा नहीं है कि पहले प्रयास नहीं हुए। साल 2013 में एक आदिवासी सेल का संचालन शुरू भी किया गया था, लेकिन यह केवल एक कामचलाऊ व्यवस्था साबित हुई। इसमें निर्धारित पूर्णकालिक सदस्यों के बजाय मानवशास्त्र (anthropology) के केवल दो सेवानिवृत्त संकाय सदस्य (retired faculty members) शामिल थे। उस दौरान, राज्यपाल का कार्यालय राज्य में विभिन्न आदिवासी विकास योजनाओं और कार्यक्रमों की प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए एक तीसरे पक्ष (Third Party) की सेवाएं लेता था।

अधिकारियों ने बताया कि इसी साल अगस्त महीने में राज्यपाल सचिवालय ने एक बार फिर मुख्य सचिव के कार्यालय से एक पूर्णकालिक और सुसज्जित सेल की स्थापना के लिए आग्रह किया था। यह स्थिति इसलिए भी ध्यान खींचती है क्योंकि महाराष्ट्र, झारखंड, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य, जहाँ की अनुसूचित जनजाति की आबादी ओडिशा से कम है, वहां के राजभवनों में भी समर्पित आदिवासी कल्याण सेल सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं।

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