बिहार चुनाव 2025: चुनाव नहीं लड़ेंगे शरजील इमाम, कानूनी अड़चन को बताई वजह

इमाम ने जोर देकर कहा कि वे पारंपरिक राजनेता नहीं हैं, बल्कि "नई जम्हूरी पैग़ाम" के अलम्बरदार हैं, जो हाशिए पर खड़े लोगों के लिए बुनियादी बदलाव की मांग करते हैं।
शरजील इमाम ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से दूरी बनाने का ऐलान किया है।
शरजील इमाम ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से दूरी बनाने का ऐलान किया है।x हैंडल
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नई दिल्ली- प्रमुख छात्र कार्यकर्ता और राजनीतिक कैदी शरजील इमाम ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से दूरी बनाने का ऐलान किया है। इमाम, जो बहादुरगंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, ने अपनी टीम के साथ फैसला लिया है कि वे इस बार चुनावी मैदान में नहीं उतरेंगे। उनकी जमानत याचिका का दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 2 सितंबर 2025 को खारिज हो जाना इसकी मुख्य वजह बताई गई है। सुप्रीम कोर्ट में अपील के बावजूद अभी तक कोई अंतरिम राहत नहीं मिली है और अगली सुनवाई अक्टूबर के आखिर में तय की गई है।

शरजील इमाम ने एक बयान जारी कर कहा, "हम- मैं और मेरी टीम ने ये तय किया है कि इस साल हम बिहार चुनाव 2025 नहीं लड़ेंगे।" उन्होंने स्पष्ट किया कि चुनाव के समय तक रिहाई की उम्मीद थी, लेकिन कानूनी प्रक्रिया में देरी ने उनके प्लान्स को पटरी से उतार दिया। इमाम ने जोर देकर कहा कि वे पारंपरिक राजनेता नहीं हैं, बल्कि "नई जम्हूरी पैग़ाम" के अलम्बरदार हैं, जो हाशिए पर खड़े लोगों के लिए बुनियादी बदलाव की मांग करते हैं। इनमें सत्ता का विकेंद्रीकरण (डिसेंट्रलाइजेशन), चुनावी सुधार के तौर पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व (प्रोपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन), अल्पसंख्यकों के लिए विभिन्न जातियों में आरक्षण और धार्मिक स्वायत्तता (रिलीजियस ऑटोनॉमी) जैसे मुद्दे शामिल हैं।

शरजील इमाम की गिरफ्तारी नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और एनआरसी के खिलाफ 2019-20 के विरोध प्रदर्शनों से जुड़ी हुई है। 25 जनवरी 2020 को शाहीन बाग में दिए गए एक भाषण को लेकर उन्हें राजद्रोह (सेडिशन) और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत दोषी ठहराया गया। दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया कि इमाम का भाषण "देश को तोड़ने" की साजिश का हिस्सा था, जो बाद में फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़ गया। 28 जनवरी 2020 को गिरफ्तार होने के बाद से वे तिहाड़ जेल में बंद हैं, और अब तक 5 साल से अधिक समय बीत चुका है।

जमानत की मांग पर दिल्ली हाईकोर्ट ने कई बार इनकार किया है। हालिया फैसले में 2 सितंबर 2025 को कोर्ट ने इमाम समेत उमर खालिद और अन्य 7 आरोपियों की जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं, क्योंकि उन्हें "साजिश का हिस्सा" माना गया। सुप्रीम कोर्ट में 9 सितंबर को अपील दायर की गई, लेकिन सुनवाई 22 सितंबर को स्थगित हो गई और अब अक्टूबर अंत तक टल चुकी है। इमाम ने बयान में कहा, "सरकार ने हमारे रास्ते में कई बाधाएं डाल रखी हैं, जिसकी वजह से न तो मैं खुद क्षेत्र में जाकर प्रचार कर पाऊंगा और न ही अपनी क्षेत्र की जनता के साथ आज़ादी से घुल-मिल पाऊंगा।"

चुनाव से दूरी, लेकिन पैगाम जारी रहेगा

इमाम ने स्पष्ट किया कि तैयारी तो की गई थी, लेकिन एक राजनीतिक कैदी के तौर पर लगी सख्त पाबंदियों, खासकर बाहरी दुनिया से संपर्क की मुश्किलों, के बीच सिर्फ एक महीना काफी नहीं था।

उन्होंने अपनी टीम, बहादुरगंज के हजारों समर्थकों और पूरे देश के लाखों लोगों का आभार जताया, जिन्होंने समर्थन दिया।उन्होंने वादा किया, "जैसे ही मुझे रिहाई मिलती है, मैं उनके बीच जाऊंगा।"

चुनाव न लड़ने के फैसले के बावजूद इमाम ने कहा कि उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी अपना "पैग़ाम" लोगों तक पहुंचाना है। वे सिस्टम में असली बदलाव की बात करेंगे और वोट लेने वालों को इन मुद्दों पर बहस के लिए मजबूर करेंगे। पिछले दो-तीन महीनों की मुहिम से सीखे सबक भविष्य के चुनावों के लिए रणनीति बनाने में मददगार साबित होंगे।

उन्होंने कहा, " हमारी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है अपना पैग़ाम लोगों तक पहुँचाना यानी सिस्टम में असली बदलाव की बात करना, जैसे सत्ता का विकेंद्रीकरण (DECENTRALISATION), चुनाव के तरीके के तौर पर, मुनासिब नुमाइंदगी (PROPORTIONAL REPRESENTATION), अल्पसंख्यकों के लिए मुख्तलिफ़ जातियों में रिज़र्वेशन और मज़हबी आज़ादी (RELIGIOUS AUTONOMY) वरौरा। हम इन बुनियादी मुद्दों पर लगातार काम करते रहेंगे, और हमें उन लोगों को मजबूर करना होगा जो हमसे वोट लेते हैं कि वो इन असली मसाइल पर बात करें, न कि बस वादे करें।"

शरजील इमाम का यह बयान बिहार चुनाव 2025 के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, जहां बहादुरगंज सीट पर वे एक नई राजनीतिक लहर पैदा करने की कोशिश कर रहे थे। कार्यकर्ताओं का मानना है कि कानूनी अड़चनों के बावजूद उनका संदेश हिंदुस्तान के हर कोने तक पहुंच रहा है।

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