अंबेडकर नगर: पुलिस कस्टडी में युवक की मौत पर NHRC सख्त, यूपी सरकार को मृतक के परिवार को 10 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि पुलिस ने 'जानबूझकर तथ्यों को छिपाया' और शव पर मिली चोटों का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सकी।
NHRC Order UP Govt, Custodial Death Ambedkar Nagar
अंबेडकर नगर पुलिस कस्टडी में मौत पर NHRC सख्त। 'तथ्य छिपाने' पर पुलिस को फटकार, मृतक के परिवार को 10 लाख मुआवजे का आदेश।(Ai Image)
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नई दिल्ली/लखनऊ: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में पुलिस हिरासत में हुई एक युवक की मौत के मामले में कड़ा रुख अपनाया है। आयोग ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि वह मार्च 2021 में पुलिस कस्टडी के दौरान कथित प्रताड़ना के शिकार हुए 36 वर्षीय जियाउद्दीन के परिवार को चार सप्ताह के भीतर 10 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करे और भुगतान का प्रमाण आयोग को सौंपे।

आयोग ने अपने आदेश में यूपी पुलिस को कड़ी फटकार भी लगाई है। NHRC का कहना है कि पुलिस ने इस मामले में "जानबूझकर तथ्यों को छिपाने" की कोशिश की और मृतक के शरीर पर मिले चोटों के कई निशानों के बारे में कोई भी विश्वसनीय स्पष्टीकरण देने में विफल रही।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने खोली पोल

बुधवार को सार्वजनिक किए गए अपने आदेश में NHRC ने स्पष्ट किया कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि युवक को पुलिस द्वारा थाने ले जाया गया था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए आयोग ने बताया कि मृतक के शरीर पर चोट के आठ निशान पाए गए थे।

आयोग ने अपनी टिप्पणी में कहा, "रिपोर्ट इस बात पर खामोश है कि मृतक को ये चोटें कब और कैसे लगीं। सबसे अहम बात यह है कि जब वह पुलिस की हिरासत में थे, तो उनकी इन चोटों के बारे में कोई स्पष्टीकरण या औचित्य नहीं दिया गया।"

यह आदेश तब आया है जब आयोग ने राज्य सरकार द्वारा कारण बताओ नोटिस (show-cause notice) पर दिए गए जवाब को खारिज कर दिया और अपने पुराने निष्कर्ष को सही ठहराया कि जियाउद्दीन की मौत पुलिस हिरासत में ही हुई थी।

"पुलिस ने अपनी चमड़ी बचाने की कोशिश की"

आयोग ने पुलिस की फाइनल रिपोर्ट और दलीलों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। आदेश में कहा गया, "आयोग के समक्ष किसी भी ठोस सामग्री के अभाव में, हम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकते कि मृतक की मृत्यु पुलिस हिरासत में नहीं हुई। ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस ने अपनी चमड़ी बचाने (save the skin) और अपनी गलती पर पर्दा डालने के लिए ऐसी रिपोर्ट तैयार की, जिसका समर्थन गृह विभाग, यूपी सरकार के उप सचिव ने भी अपने जवाब में कर दिया।"

क्या था पूरा मामला?

जियाउद्दीन के भाई शहाबुद्दीन द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के अनुसार, यह घटना 25 मार्च, 2021 की है। शिकायत में आरोप लगाया गया कि सब-इंस्पेक्टर देवेंद्र पाल के नेतृत्व वाली पुलिस की स्वाट (SWAT) टीम ने जियाउद्दीन को उस वक्त उठा लिया था, जब वह अपने एक रिश्तेदार के घर जा रहे थे। इसके कुछ घंटों बाद ही परिवार को उनकी मौत की सूचना दे दी गई। भाई ने यह भी आरोप लगाया कि शुरुआत में न तो कोई मेडिकल जांच कराई गई और न ही पोस्टमार्टम किया गया था।

दूसरी ओर, पुलिस का दावा था कि जियाउद्दीन को हत्या के प्रयास के एक मामले में आरोपी से जुड़े कॉल डिटेल रिकॉर्ड के आधार पर पूछताछ के लिए ले जाया गया था। अधिकारियों ने कहा कि थाने ले जाते समय उनकी तबीयत बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें दत्त अस्पताल ले जाया गया, जहां 26 मार्च, 2021 को देर रात 1:45 बजे उनकी मौत हो गई।

आठ जगहों पर मिलीं चोटें

पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस की कहानी पर सवालिया निशान लगा दिए। रिपोर्ट में जियाउद्दीन के हाथ, पैर और कूल्हों सहित आठ स्थानों पर खरोंच और चोट के निशान दर्ज किए गए। मौत का कारण "फेफड़ों में चोट और शरीर पर कई जगह कुंद हथियार (blunt injuries) से वार के कारण हुआ हाइपोक्सिया और शॉक" बताया गया।

इस मामले में बाद में सब-इंस्पेक्टर देवेंद्र पाल और एक सिपाही के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 364 (अपहरण) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। हालांकि, मई 2022 में पुलिस ने एक 'फाइनल रिपोर्ट' (FR) दाखिल की, जिसमें दावा किया गया कि हिरासत में प्रताड़ना का कोई सबूत नहीं है और तकनीकी रूप से मृतक "पुलिस हिरासत में नहीं था"। जिसे अब आयोग ने सिरे से खारिज कर दिया है।

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