इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: लिव-इन रिलेशनशिप अवैध नहीं, कपल्स को सुरक्षा देना पुलिस की जिम्मेदारी

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 12 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पुलिस को सख्त निर्देश दिए; कहा- बालिग जोड़ों के शांतिपूर्ण जीवन में दखल देने का अधिकार किसी को नहीं, सुरक्षा देना राज्य का कर्तव्य।
Allahabad High Court
इलाहाबाद हाई कोर्ट
Published on

प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया है कि लिव-इन रिलेशनशिप को अवैध नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने कहा कि बिना विवाह के संस्कार के एक साथ रहना कोई अपराध नहीं है। कोर्ट ने राज्य सरकार को याद दिलाया कि प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा करना उसका संवैधानिक दायित्व है, और किसी जोड़े की अविवाहित स्थिति उन्हें उनके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं कर सकती।

12 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई

न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की एकल पीठ उन 12 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जो लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं द्वारा दायर की गई थीं। इन महिलाओं ने अदालत से गुहार लगाई थी कि उनके परिवार, रिश्तेदारों या अन्य सहयोगियों से उनकी जान को खतरा है, इसलिए उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए। अदालत ने सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़ते हुए संबंधित जिलों के पुलिस कप्तानों को आदेश दिया कि यदि कोई भी व्यक्ति इन जोड़ों के शांतिपूर्ण जीवन में खलल डालता है, तो उन्हें तत्काल सुरक्षा मुहैया कराई जाए।

कोर्ट की अहम टिप्पणी: सामाजिक स्वीकार्यता और कानून अलग-अलग

बुधवार को निर्देश जारी करते हुए न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, "यह संभव है कि लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा समाज के हर वर्ग को स्वीकार्य न हो, लेकिन इसे अवैध संबंध नहीं कहा जा सकता। न ही शादी किए बिना साथ रहना किसी तरह का अपराध है।"

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उन्होंने अपने जिलों की पुलिस से मदद मांगी थी, लेकिन उनकी शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। इस पर कोर्ट ने कहा कि चूंकि सभी याचिकाओं में मुद्दा एक ही है, इसलिए इनका निपटारा एक सामान्य निर्णय के माध्यम से किया जा रहा है।

सरकारी पक्ष का तर्क: यह सामाजिक ताने-बाने के खिलाफ

सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने इस तरह के रिश्तों का कड़ा विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि "लिव-इन रिलेशनशिप को हमारे देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता।"

वकील ने कहा कि ऐसे रिश्ते किसी कानून से बंधे नहीं होते और यह एक तरह का समझौता (कॉन्ट्रैक्ट) है, जिसे कोई भी पक्ष अपनी मर्जी से कभी भी तोड़ सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे रिश्तों से पैदा होने वाले बच्चों की कानूनी स्थिति को लेकर जटिलताएं पैदा होंगी, इसलिए कोर्ट से राहत मांगने से पहले जोड़ों को शादी करनी चाहिए।

सरकारी वकील ने यह भी दलील दी कि पुलिस को गैर-वैवाहिक सहजीवन (Non-marital cohabitation) के लिए निजी सुरक्षा गार्ड के रूप में कार्य करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

अदालत का जवाब: पश्चिमी विचारों के लिए दरवाजे खुले हैं

अदालत ने स्वीकार किया कि भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को अभी भी सामाजिक कलंक और नैतिक बहस का सामना करना पड़ता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा, "भारत में पश्चिमी विचारों का स्वागत है और लिव-इन रिलेशनशिप भी उन्ही में से एक है। कुछ लोगों के लिए यह अनैतिक हो सकता है, लेकिन दूसरों के लिए यह आपसी सहमति और अनुकूलता (Compatibility) का एक वैध विकल्प है।"

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 28 अप्रैल, 2023 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की एक खंडपीठ द्वारा दिए गए फैसले (जिसमें सुरक्षा देने से इनकार किया गया था) के तथ्य मौजूदा मामलों से पूरी तरह अलग थे और वह फैसला सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के अनुरूप नहीं था।

घरेलू हिंसा अधिनियम और वयस्कों का अधिकार

अदालत ने 'घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005' का हवाला देते हुए कहा कि इसमें 'पत्नी' शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि घरेलू संबंधों में रहने वाली महिलाओं को सुरक्षा और भरण-पोषण का अधिकार दिया गया है। न्यायमूर्ति ने कहा, "जब दो बालिग व्यक्ति अपना साथी चुन लेते हैं, तो परिवार के किसी सदस्य या अन्य व्यक्ति को इसमें बाधा डालने का अधिकार नहीं है। केवल शादी न करने से नागरिक के तौर पर मिले उनके मौलिक अधिकार खत्म नहीं हो जाते।"

पुलिस को सख्त निर्देश: दस्तावेजों की जांच और सुरक्षा

अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट प्रक्रिया निर्धारित की है:

  1. यदि याचिकाकर्ताओं के शांतिपूर्ण जीवन में कोई गड़बड़ी होती है, तो वे इस आदेश की प्रमाणित प्रति के साथ संबंधित पुलिस आयुक्त, एसएसपी या एसपी से संपर्क कर सकते हैं।

  2. पुलिस अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि याचिकाकर्ता बालिग (Major) हैं और अपनी मर्जी से साथ रह रहे हैं। इसके बाद उन्हें तुरंत सुरक्षा प्रदान की जाएगी।

  3. यदि जोड़े शिक्षित हैं, तो उनके शैक्षिक प्रमाण पत्रों से आयु की पुष्टि की जाएगी।

  4. यदि वे ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं या अशिक्षित हैं, तो पुलिस उनकी सही उम्र का पता लगाने के लिए 'ऑसिफिकेशन टेस्ट' (हड्डी की जांच) करवा सकती है।

  5. जब तक कि उनके खिलाफ किसी अपराध के संबंध में एफआईआर (FIR) दर्ज न हो, पुलिस उनके खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगी।

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ताओं को शांति से साथ रहने की स्वतंत्रता है और किसी भी व्यक्ति को उनके जीवन में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

Allahabad High Court
MP प्रमोशन में आरक्षण विवाद: हाईकोर्ट के सवालों के घेरे में राज्य सरकार, 6 जनवरी को होगी अगली सुनवाई
Allahabad High Court
भारत में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) के छात्रों का ड्रॉपआउट रेट शून्य के करीब, शिक्षा के क्षेत्र में जगी नई उम्मीद
Allahabad High Court
अमेरिका से हैदराबाद तक बाबा साहब की सबसे ऊँची मूर्तियां रचने वाले शिल्पकार राम सुतार नहीं रहे

द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.

The Mooknayak - आवाज़ आपकी
www.themooknayak.com