धोखे से शादी की तो नहीं मिलेगी मान्यता! हाई कोर्ट ने बताया क्यों स्पेशल मैरिज एक्ट ही है एकमात्र रास्ता

हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: फर्जी धर्मांतरण सर्टिफिकेट पर हुआ विवाह 'अवैध' घोषित। स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत दोबारा शादी का निर्देश, वकील पर 25,000 का जुर्माना भी लगा।
Allahabad High Court
इलाहाबाद हाई कोर्ट
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प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि फर्जी धर्मांतरण प्रमाणपत्र के आधार पर किया गया अंतरधार्मिक विवाह अवैध है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे विवाहों का पंजीकरण विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) के तहत ही किया जा सकता है।

दरअसल, मोहम्मद बिन कासिम उर्फ़ अकबर और एक हिंदू महिला ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अधिकारियों को उनके शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप न करने का निर्देश देने की मांग की थी। कोर्ट की कार्यवाही के दौरान, मुस्लिम युवक ने एक धर्मांतरण प्रमाणपत्र पेश किया, जिसके अनुसार हिंदू महिला ने इस्लाम धर्म अपना लिया था और फिर दोनों ने शादी की थी। हालांकि, सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि यह धर्मांतरण प्रमाणपत्र फर्जी है।

न्यायमूर्ति सौरभ कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत धर्मांतरण वैध नहीं है। कोर्ट ने दोनों याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करें, जिसमें धर्मांतरण की किसी रस्म की आवश्यकता नहीं होती। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक इस अधिनियम के तहत प्रमाणपत्र जारी नहीं हो जाता, तब तक महिला को प्रयागराज के महिला संरक्षण गृह में रखा जाए। महिला ने स्वेच्छा से इसके लिए सहमति दी, क्योंकि वह अपने माता-पिता के साथ रहने की इच्छुक नहीं थी।

फर्जी दस्तावेज़ पेश करने पर लगा जुर्माना

कोर्ट ने भविष्य में अदालत के सामने फर्जी प्रमाणपत्र पेश करने के खिलाफ कड़ी चेतावनी देते हुए, 23 सितंबर को अपने फैसले में याचिकाकर्ताओं के वकील पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया। यह जुर्माना कोर्ट के मध्यस्थता केंद्र (Mediation Centre) में जमा करने का निर्देश दिया गया है।

न्यायमूर्ति सौरभ कुमार श्रीवास्तव ने मोहम्मद बिन कासिम उर्फ़ अकबर और अन्य की रिट याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि, "पक्षों के वकीलों द्वारा उठाए गए विरोधी तर्कों और पूरे रिकॉर्ड के अवलोकन के बाद, यह स्पष्ट है कि महिला (दूसरी याचिकाकर्ता) द्वारा दर्ज किए गए बयान के आधार पर धर्मांतरण जाली दस्तावेज़ है। जैसा कि निर्देशों से स्पष्ट है, यह उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम के किसी भी खंड को निर्धारित नहीं करता, जिसमें विशिष्ट प्रक्रिया पहले से ही परिभाषित है।"

कानून की नज़र में विवाह मान्य नहीं

कोर्ट ने अपने अवलोकन में आगे कहा, "इस प्रकार, याचिकाकर्ताओं के बीच किया गया विवाह कानून की नज़र में मान्य नहीं है, क्योंकि मुस्लिम कानून के अनुसार, विवाह इस्लाम के अनुयायियों और मानने वालों के बीच एक अनुबंध है। चूँकि महिला के संबंध में हुआ धर्मांतरण अवैध है, इसलिए इसका परिणामी प्रभाव अपने आप अप्रभावी हो जाएगा, और इस प्रकार पहले और दूसरे याचिकाकर्ता को कानून की दृष्टि में विवाहित जोड़े को मान्यता नहीं दी जा सकती।"

पिछली सुनवाई के आदेश के पालन में, पहले और दूसरे याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से कोर्ट के सामने पेश हुए थे और पूछे जाने पर महिला ने बताया था कि वह युवक के साथ रह रही थी।

कोर्ट ने रजिस्ट्रार (अनुपालन) को यह आदेश दो घंटे के भीतर प्रयागराज के जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त (कमिश्नरेट) और जिला परिवीक्षा अधिकारी को सूचित करने का निर्देश दिया, ताकि महिला को प्रयागराज के महिला संरक्षण गृह में रखने के लिए उचित सुरक्षा और व्यवस्था की जा सके।

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